2. पौष पुत्रदा एकादशी
(पौष शुक्ल एकादशी)
महाराज युधिष्ठिर ने पूछा-
हे भगवान! आपने
सफला एकादशी का
माहात्म्य बताकर बड़ी कृपा
की। अब कृपा
करके यह बतलाइए
कि पौष शुक्ल
एकादशी का क्या
नाम है उसकी
विधि क्या है
और उसमें कौन-से देवता
का पूजन किया
जाता है।
भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण बोले-
हे राजन! इस
एकादशी का नाम
पुत्रदा एकादशी है। इसमें
भी नारायण भगवान
की पूजा की
जाती है। इस
चर और अचर
संसार में पुत्रदा
एकादशी के व्रत
के समान दूसरा
कोई व्रत नहीं
है। इसके पुण्य
से मनुष्य तपस्वी,
विद्वान और लक्ष्मीवान
होता है। इसकी
मैं एक कथा
कहता हूँ सो
तुम ध्यानपूर्वक सुनो।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत
कथा:
भद्रावती नामक नगरी
में सुकेतुमान नाम
का एक राजा
राज्य करता था।
उसके कोई पुत्र
नहीं था। उसकी
स्त्री का नाम
शैव्या था। वह
निपुत्री होने के
कारण सदैव चिंतित
रहा करती थी।
राजा के पितर
भी रो-रोकर
पिंड लिया करते
थे और सोचा
करते थे कि
इसके बाद हमको
कौन पिंड देगा।
राजा को भाई,
बाँधव, धन, हाथी,
घोड़े, राज्य और मंत्री
इन सबमें से
किसी से भी
संतोष नहीं होता
था।
वह सदैव यही
विचार करता था
कि मेरे मरने
के बाद मुझको
कौन पिंडदान करेगा।
बिना पुत्र के
पितरों और देवताओं
का ऋण मैं
कैसे चुका सकूँगा।
जिस घर में
पुत्र न हो
उस घर में
सदैव अँधेरा ही
रहता है। इसलिए
पुत्र उत्पत्ति के
लिए प्रयत्न करना
चाहिए।
जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था।
एक समय तो
राजा ने अपने
शरीर को त्याग
देने का निश्चय
किया परंतु आत्मघात
को महान पाप
समझकर उसने ऐसा
नहीं किया। एक
दिन राजा ऐसा
ही विचार करता
हुआ अपने घोड़े
पर चढ़कर वन
को चल दिया
तथा पक्षियों और
वृक्षों को देखने
लगा। उसने देखा
कि वन में
मृग, व्याघ्र, सूअर,
सिंह, बंदर, सर्प
आदि सब भ्रमण
कर रहे हैं।
हाथी अपने बच्चों
और हथिनियों के
बीच घूम रहा
है।
इस वन में
कहीं तो गीदड़
अपने कर्कश स्वर
में बोल रहे
हैं, कहीं उल्लू
ध्वनि कर रहे
हैं। वन के
दृश्यों को देखकर
राजा सोच-विचार
में लग गया।
इसी प्रकार आधा
दिन बीत गया।
वह सोचने लगा
कि मैंने कई
यज्ञ किए, ब्राह्मणों
को स्वादिष्ट भोजन
से तृप्त किया
फिर भी मुझको
दु:ख प्राप्त
हुआ, क्यों?
राजा प्यास के मारे
अत्यंत दु:खी
हो गया और
पानी की तलाश
में इधर-उधर
फिरने लगा। थोड़ी
दूरी पर राजा
ने एक सरोवर
देखा। उस सरोवर
में कमल खिले
थे तथा सारस,
हंस, मगरमच्छ आदि
विहार कर रहे
थे। उस सरोवर
के चारों तरफ
मुनियों के आश्रम
बने हुए थे।
उसी समय राजा
के दाहिने अंग
फड़कने लगे। राजा
शुभ शकुन समझकर
घोड़े से उतरकर
मुनियों को दंडवत
प्रणाम करके बैठ
गया।
राजा को देखकर
मुनियों ने कहा-
हे राजन! हम
तुमसे अत्यंत प्रसन्न
हैं। तुम्हारी क्या
इच्छा है, सो
कहो। राजा ने
पूछा- महाराज आप
कौन हैं, और
किसलिए यहाँ आए
हैं। कृपा करके
बताइए। मुनि कहने
लगे कि हे
राजन! आज संतान
देने वाली पुत्रदा
एकादशी है, हम
लोग विश्वदेव हैं
और इस सरोवर
में स्नान करने
के लिए आए
हैं।
यह सुनकर राजा कहने
लगा कि महाराज
मेरे भी कोई
संतान नहीं है,
यदि आप मुझ
पर प्रसन्न हैं
तो एक पुत्र
का वरदान दीजिए।
मुनि बोले- हे
राजन! आज पुत्रदा
एकादशी है। आप
अवश्य ही इसका
व्रत करें, भगवान
की कृपा से
अवश्य ही आपके
घर में पुत्र
होगा।
मुनि के वचनों
को सुनकर राजा
ने उसी दिन
एकादशी का व्रत
किया और द्वादशी
को उसका पारण
किया। इसके पश्चात
मुनियों को प्रणाम
करके महल में
वापस आ गया।
कुछ समय बीतने
के बाद रानी
ने गर्भ धारण
किया और नौ
महीने के पश्चात
उनके एक पुत्र
हुआ। वह राजकुमार
अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और
प्रजापालक हुआ।
श्रीकृष्ण बोले- हे राजन!
पुत्र की प्राप्ति
के लिए पौष
पुत्रदा एकादशी का व्रत
करना चाहिए। जो
मनुष्य इस माहात्म्य
को पढ़ता या
सुनता है उसे
अंत में स्वर्ग
की प्राप्ति होती
है।
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एकादशी की पावन आरती
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्ना" होती
।
शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफला" नाम कहैं।
शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
नाम "षटतिला" माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में "जया" कहावै, विजय सदा पावै ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"विजया" फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी" ।
"पापमोचनी" कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र मास बल की ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
चैत्र शुक्ल में नाम "कामदा" धन देने वाली ।
नाम "बरुथिनी" कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपरा" ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम"निर्जला" सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"योगिनी" नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
"देवशयनी" नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"कामिका" श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"अजा" भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनी" शुक्ला।
"इन्द्रा" आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"पापांकुशा" है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
"रमा" मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"देवोत्थानी" शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"परमा" कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु:ख दारिद्र हरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन "गुरदिता" स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
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