15. कामिका/पवित्रा एकादशी
(श्रावण कृष्ण एकादशी)
कुंतीपुत्र
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे
कि हे भगवन,
आषाढ़ शुक्ल देवशयनी
एकादशी तथा चातुर्मास्य
माहात्म्य मैंने भली प्रकार
से सुना। अब
कृपा करके श्रावण
कृष्ण एकादशी का
क्या नाम है,
सो बताइए।
श्रीकृष्ण भगवान कहने लगे
कि हे युधिष्ठिर!
इस एकादशी की
कथा एक समय
स्वयं ब्रह्माजी ने
देवर्षि नारद से
कही थी, वही
मैं तुमसे कहता
हूँ। नारदजी ने
ब्रह्माजी से पूछा
था कि हे
पितामह! श्रावण मास के
कृष्ण पक्ष की
एकादशी की कथा
सुनने की मेरी
इच्छा है, उसका
क्या नाम है?
क्या विधि है
और उसका माहात्म्य
क्या है, सो
कृपा करके कहिए।
नारदजी के ये
वचन सुनकर ब्रह्माजी
ने कहा- हे
नारद! लोकों के
हित के लिए
तुमने बहुत सुंदर
प्रश्न किया है।
श्रावण मास की
कृष्ण एकादशी का
नाम कामिका है।
उसके सुनने मात्र
से वाजपेय यज्ञ
का फल मिलता
है। इस दिन
शंख, चक्र, गदाधारी
विष्णु भगवान का पूजन
होता है, जिनके
नाम श्रीधर, हरि,
विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं।
उनकी पूजा करने
से जो फल
मिलता है सो
सुनो।
जो फल गंगा,
काशी, नैमिषारण्य और
पुष्कर स्नान से मिलता
है, वह विष्णु
भगवान के पूजन
से मिलता है।
जो फल सूर्य
व चंद्र ग्रहण
पर कुरुक्षेत्र और
काशी में स्नान
करने से, समुद्र,
वन सहित पृथ्वी
दान करने से,
सिंह राशि के
बृहस्पति में गोदावरी
और गंडकी नदी
में स्नान से
भी प्राप्त नहीं
होता वह भगवान
विष्णु के पूजन
से मिलता है।
जो मनुष्य श्रावण में
भगवान का पूजन
करते हैं, उनसे
देवता, गंधर्व और सूर्य
आदि सब पूजित
हो जाते हैं।
अत: पापों से
डरने वाले मनुष्यों
को कामिका एकादशी
का व्रत और
विष्णु भगवान का पूजन
अवश्यमेव करना चाहिए।
पापरूपी कीचड़ में फँसे
हुए और संसाररूपी
समुद्र में डूबे
मनुष्यों के लिए
इस एकादशी का
व्रत और भगवान
विष्णु का पूजन
अत्यंत आवश्यक है। इससे
बढ़कर पापों के
नाशों का कोई
उपाय नहीं है।
हे नारद! स्वयं भगवान
ने यही कहा
है कि कामिका
व्रत से जीव
कुयोनि को प्राप्त
नहीं होता। जो
मनुष्य इस एकादशी
के दिन भक्तिपूर्वक
तुलसी दल भगवान
विष्णु को अर्पण
करते हैं, वे
इस संसार के
समस्त पापों से
दूर रहते हैं।
विष्णु भगवान रत्न, मोती,
मणि तथा आभूषण
आदि से इतने
प्रसन्न नहीं होते
जितने तुलसी दल
से।
तुलसी दल पूजन
का फल चार
भार चाँदी और
एक भार स्वर्ण
के दान के
बराबर होता है।
हे नारद! मैं
स्वयं भगवान की
अतिप्रिय तुलसी को सदैव
नमस्कार करता हूँ।
तुलसी के पौधे
को सींचने से
मनुष्य की सब
यातनाएँ नष्ट हो
जाती हैं। दर्शन
मात्र से सब
पाप नष्ट हो
जाते हैं और
स्पर्श से मनुष्य
पवित्र हो जाता
है।
कामिका एकादशी की रात्रि
को दीपदान तथा
जागरण के फल
का माहात्म्य चित्रगुप्त
भी नहीं कह
सकते। जो इस
एकादशी की रात्रि
को भगवान के
मंदिर में दीपक
जलाते हैं उनके
पितर स्वर्गलोक में
अमृतपान करते हैं
तथा जो घी
या तेल का
दीपक जलाते हैं,
वे सौ करोड़
दीपकों से प्रकाशित
होकर सूर्य लोक
को जाते हैं।
ब्रह्माजी कहते हैं
कि हे नारद!
ब्रह्महत्या तथा भ्रूण
हत्या आदि पापों
को नष्ट करने
वाली इस कामिका
एकादशी का व्रत
मनुष्य को यत्न
के साथ करना
चाहिए। कामिका एकादशी के
व्रत का माहात्म्य
श्रद्धा से सुनने
और पढ़ने वाला
मनुष्य सभी पापों
से मुक्त होकर
विष्णु लोक को
जाता है।
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एकादशी की पावन आरती
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्ना" होती
।
शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफला" नाम कहैं।
शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
नाम "षटतिला" माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में "जया" कहावै, विजय सदा पावै ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"विजया" फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी" ।
"पापमोचनी" कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र मास बल की ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
चैत्र शुक्ल में नाम "कामदा" धन देने वाली ।
नाम "बरुथिनी" कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपरा" ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम"निर्जला" सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"योगिनी" नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
"देवशयनी" नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"कामिका" श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"अजा" भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनी" शुक्ला।
"इन्द्रा" आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"पापांकुशा" है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
"रमा" मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"देवोत्थानी" शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"परमा" कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु:ख दारिद्र हरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन "गुरदिता" स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
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