बुध त्रयोदशी / प्रदोष व्रत



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बुध त्रयोदशी / प्रदोष व्रत


सूत जी आगे बोले- “बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत से सर्व कामनाएं पूर्ण होती हैं इस व्रत में हरी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए शंकर भगवान की आराधना धूप, बेल-पत्रादि से करनी चाहिए।
व्रत कथा:

एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ विवाह के दो दिनों बाद उसकी पत्नी मायके चली गई कुछ दिनों के बाद वह पुरुष पत्नी को लेने उसके यहां गया बुधवार जो जब वह पत्नी के साथ लौटने लगा तो ससुराल पक्ष ने उसे रोकने का प्रयत्न किया कि विदाई के लिए बुधवार शुभ नहीं होता लेकिन वह नहीं माना और पत्नी के साथ चल पड़ा नगर के बाहर पहुंचने पर पत्नी को प्यास लगी पुरुष लोटा लेकर पानी की तलाश में चल पड़ा पत्नी एक पेड़ के नीचे बैठ गई थोड़ी देर बाद पुरुष पानी लेकर वापस लौटा उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी के साथ हंस-हंसकर बातें कर रही है और उसके लोटे से पानी पी रही है उसको क्रोध गया वह निकट पहुंचा तो उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना रहा उस आदमी की सूरत उसी की भांति थी पत्नी भी सोच में पड़ गई दोनों पुरुष झगड़ने लगे भीड़ इकट्ठी हो गई सिपाही गए हमशक्ल आदमियों को देख वे भी आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने स्त्री से पूछाउसका पति कौन है?’ वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई तब वह पुरुष शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा- ‘हे भगवान! हमारी रक्षा करें। मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने सास-ससुर की बात नहीं मानी और बुधवार को पत्नी को विदा करा लिया मैं भविष्य में ऐसा कदापि नहीं करूंगा जैसे ही उसकी प्रार्थना पूरी हुई, दूसरा पुरुष अन्तर्धान हो गया पति- पत्नी सकुशल अपने घर पहुंच गए उस दिन के बाद से पति-पत्नी नियमपूर्वक बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत रखने लगे
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