शनि त्रयोदशी / प्रदोष व्रत



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शनि त्रयोदशी / प्रदोष व्रत


सूत जी बोले
पुत्र कामना हेतु यदि, हो विचार शुभ शुद्ध
शनि प्रदोष व्रत परायण, करे सुभक्त विशुद्ध
व्रत कथा:


प्राचीन समय की बात है एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था वह अत्यन्त दयालु था उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्नी स्वयं काफी दुखी थे दुःख का कारण था- उनके सन्तान का होना सन्तानहीनता के कारण दोनों घुले जा रहे थे एक दिन उन्होंने तीर्थ-यात्रा पर जाने का निश्चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पडे अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए पति-पत्नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी मगर सेठ पति-पत्नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े पूर्ववत बैठे रहे अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे सेठ पति-पत्नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले- ‘मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं।साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई और शंकर भगवान की निम्न वन्दना बताई:

हे रुद्रदेव शिव नमस्कार शिव शंकर जगगुरु नमस्कार

हे नीलकंठ सुर नमस्कार शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार

हे उमाकान्त सुधि नमस्कार उग्रत्व रूप मन नमस्कार

ईशान ईश प्रभु नमस्कार विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार

तीर्थयात्रा के बाद दोनों वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे कालान्तर में सेठ की पत्नी ने एक सुन्दर पुत्र जो जन्म दिया शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके यहां छाया अन्धकार लुप्त हो गया दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे।
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