Extremely Powerful
Shiv Mrit Sanjeevan Stotram is some times referred as Mruta Sanjeevani Kavacham or Mrit Sanjeevan Mantra.
* Rishi Vashishth
wrote this extremely powerful and usefl mantra.
* This kavach has the
power to defeat even if the war is with demigods.
* This remarkable and
very powerful armour is supposed to help prevent untimely death.
* It can rejuvenate
even the sick bodies and has the marvelous power to heal any kind of disease.
* This Mrit Sanjeevani
Mantra can fill you with evlerasting positive vibrations.
Mritsanjeevan Stotram
evamaradhy
gaurishan devan mrityungjayameshvaran ।
mritasangjivanan namna kavachan prajapet sada ॥ (1)
mritasangjivanan namna kavachan prajapet sada ॥ (1)
sarat
sarataran punyan guhyadguhyataran shubhan ।
mahadevasy kavachan mritasangjivanamakan ॥ (2)
mahadevasy kavachan mritasangjivanamakan ॥ (2)
samahitamana
bhootva shrinushv kavachan shubhan ।
shritvaitaddivy kavachan rahasyan kuru sarvada ॥ (3)
shritvaitaddivy kavachan rahasyan kuru sarvada ॥ (3)
varabhayakaro
yajva sarvadevanishevitah ।
mrityungjayo mahadevah prachyan man patu sarvada ॥ (4)
mrityungjayo mahadevah prachyan man patu sarvada ॥ (4)
dadhaanah
shaktimabhayan trimukhan shadbhujah prabhuh ।
sadashivo-a-gniroopi mamagneyyan patu sarvada ॥ (5)
sadashivo-a-gniroopi mamagneyyan patu sarvada ॥ (5)
ashtadasabhujopeto
dandabhayakaro vibhuh ।
yamaroopi mahadevo dakshinnasyan sadavatu ॥ (6)
yamaroopi mahadevo dakshinnasyan sadavatu ॥ (6)
khadgabhayakaro
dhiro rakshogannanishevitah ।
rakshoroopi mahesho man nairrityan sarvadavatu ॥ (7)
rakshoroopi mahesho man nairrityan sarvadavatu ॥ (7)
pashabhayabhujah
sarvaratnakaranishevitah ।
varunatma mahadevah pashchime man sadavatu ॥ (8)
varunatma mahadevah pashchime man sadavatu ॥ (8)
gadabhayakarah
prannanayakah sarvadagatih ।
vayavyan marutatma man shangkarah patu sarvada ॥ (9)
vayavyan marutatma man shangkarah patu sarvada ॥ (9)
shangkhabhayakarastho
man nayakah parameshvarah ।
sarvatmantaradigbhage patu man shangkarah prabhuh ॥ (10)
sarvatmantaradigbhage patu man shangkarah prabhuh ॥ (10)
shoolabhayakarah
sarvavidyanamadhinayakah ।
eeshanatma tathaishanyan patu man parameshvarah ॥ (11)
eeshanatma tathaishanyan patu man parameshvarah ॥ (11)
oordhvabhage
brahmaroopi vishvatma-a-dhah sadavatu ।
shiro me shangkarah patu lalatan chandrashekharah ॥ (12)
shiro me shangkarah patu lalatan chandrashekharah ॥ (12)
bhoomadhyan
sarvalokeshastrinetro lochane-a-vatu ।
bhrooyugman girishah patu karnau patu maheshvarah ॥ (13)
bhrooyugman girishah patu karnau patu maheshvarah ॥ (13)
nasikan
me mahadev oshthau patu vrishadhvajah ।
jihvan me dakshinamoortirdantanme girisho-a-vatu ॥ (14)
jihvan me dakshinamoortirdantanme girisho-a-vatu ॥ (14)
mrituyngjayo
mukhan patu kanthan me nagabhooshannah ।
pinaki matkarau patu trishooli hridayan mam ॥ (15)
pinaki matkarau patu trishooli hridayan mam ॥ (15)
pangchavaktrah
stanau patu udaran jagadishvarah ।
nabhin patu viroopakshah parshvau me parvatipatih ॥ (16)
nabhin patu viroopakshah parshvau me parvatipatih ॥ (16)
katadvayan
girishau me prishthan me pramathadhipah ।
guhyan maheshvarah patu mamoroo patu bhairavah ॥ (17)
guhyan maheshvarah patu mamoroo patu bhairavah ॥ (17)
januni
me jagaddarta jangghe me jagadambika ।
padau me satatan patu lokavandyah sadashivah ॥ (18)
padau me satatan patu lokavandyah sadashivah ॥ (18)
girishah
patu me bharyan bhavah patu sutanmam ।
mrityungjayo mamayushyan chittan me gannanayakah ॥ (19)
mrityungjayo mamayushyan chittan me gannanayakah ॥ (19)
sarvanggan
me sada patu kalakalah sadashivah ।
etatte kavachan punyan devatanan ch durlabham ॥ (20)
etatte kavachan punyan devatanan ch durlabham ॥ (20)
mritasangjivanan
namna mahadeven keertitam ।
sahsravartanan chasy purashcharannamiritam ॥ (21)
sahsravartanan chasy purashcharannamiritam ॥ (21)
yah pathechchhrinuyannityan shravayetsu
samahitah ।
sakalamrityun nirjity sadayushyan samashnute ॥ (22)
sakalamrityun nirjity sadayushyan samashnute ॥ (22)
hasten
va yada sprishtva mritan sangjivayatyasau ।
aadhayovyadhyastasy n bhavanti kadachan ॥ (23)
aadhayovyadhyastasy n bhavanti kadachan ॥ (23)
kalamriyumapi
praptamasau jayati sarvada ।
animadigunaishvaryan labhate manavottamah ॥ (24)
animadigunaishvaryan labhate manavottamah ॥ (24)
yuddarambhe
pathitvedamashtavishativarakan ।
yuddamadhye sthitah shatruh sadyah sarvairn drishyate ॥ (25)
yuddamadhye sthitah shatruh sadyah sarvairn drishyate ॥ (25)
n
brahmadini chastrani kshayan kurvanti tasy vai ।
vijayan labhate devayuddamadhye-a-pi sarvada ॥ (26)
vijayan labhate devayuddamadhye-a-pi sarvada ॥ (26)
pratarootthay
satatan yah pathetkavachan shubhan ।
akshayyan labhate saukhyamih loke paratr ch ॥ (27)
akshayyan labhate saukhyamih loke paratr ch ॥ (27)
sarvavyadhivinirmriktah
sarvarogavivarjitah ।
ajaramarano bhootva sada shodashavarshikah ॥ (28)
ajaramarano bhootva sada shodashavarshikah ॥ (28)
vicharavyakhilan
lokan prapy bhoganshch durlabhan ।
tasmadidan mahagopyan kavacham samudahritam ॥ (29)
tasmadidan mahagopyan kavacham samudahritam ॥ (29)
mritasangjivanan
namna devatairapi durlabham ॥ (30)
॥ iti vasishth krit mritasangjivan stotram ॥
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मृतसञ्जीवनस्तोत्रम्
एवमाराध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयेश्वरम् ।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत्सदा ॥ १॥
गौरीपति मृत्युञ्जयेश्र्वर भगवान् शंकरकी विधिपूर्वक आराधना करनेके पश्र्चात भक्तको सदा मृतसञ्जीवन नामक कवचका सुस्पष्ट पाठ करना चाहिये ॥१॥
सारात्सारतरं पुण्यं गुह्याद्गुह्यतरं शुभम् ।
महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकम् ॥ २॥
महादेव भगवान् शङ्करका यह मृतसञ्जीवन नामक कवचका तत्त्वका भी तत्त्व है, पुण्यप्रद है गुह्य और मङ्गल प्रदान करनेवाला है ॥२॥
समाहितमना भूत्वा शृणुष्व कवचं शुभम् ।
शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ॥ ३॥
[आचार्य शिष्यको उपदेश करते हैं कि – हे वत्स! ] अपने मनको एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवचको सुनो । यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है । इसकी गोपनीयता सदा बनाये रखना ॥३॥
वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवितः ।
मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥ ४॥
जरासे अभय करनेवाले, निरन्तर यज्ञ करनेवाले, सभी देवतओंसे आराधित हे मृत्युञ्जय महादेव ! आप पर्व-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥४॥
दधानः शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुजः प्रभुः ।
सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ॥ ५॥
अभय प्रदान करनेवाली शक्तिको धारण करनेवाले, तीन मुखोंवाले तथा छ: भुजओंवाले, अग्रिरूपी प्रभु सदाशिव अग्रिकोणमें मेरी सदा रक्षा करें ॥५॥
अष्टादशभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभुः ।
यमरूपी महादेवो दक्षिणस्यां सदाऽवतु ॥ ६॥
अट्ठारह भुजाओंसे युक्त, हाथमें दण्ड और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, सर्वत्र व्याप्त यमरुपी महादेव शिव दक्षिण-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥६॥
खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवितः ।
रक्षोरूपी महेशो मां नैरृत्यां सर्वदाऽवतु ॥ ७॥
हाथमें खड्ग और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, धैर्यशाली, दैत्यगणोंसे आराधित रक्षोरुपी महेश नैर्ऋत्यकोणमें मेरी सदा रक्षा करें ॥७॥
पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकरनिषेवितः ।
वरूणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदाऽवतु ॥ ८॥
हाथमें अभयमुद्रा और पाश धारण करनेवाले, शभी रत्नाकरोंसे सेवित, वरुणस्वरूप महादेव भगवान् शंकर पश्चिम- दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥८॥
गदाभयकरः प्राणनायकः सर्वदागतिः ।
वायव्यां मारुतात्मा मां शङ्करः पातु सर्वदा ॥ ९॥
हाथोंमें गदा और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, प्राणोमके रक्षाक, सर्वदा गतिशील वायुस्वरूप शंकरजी वायव्यकोणमें मेरी सदा रक्षा करें ॥९॥
शङ्खाभयकरस्थो मां नायकः परमेश्वरः ।
सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्करः प्रभुः ॥ १०॥
हाथोंमें शंख और अभयमुद्रा धारण करनेवाले नायक (सर्वमार्गद्रष्टा) सर्वात्मा सर्वव्यापक परमेश्वर भगवान् शिव समस्त दिशाओंके मध्यमें मेरी रक्षा करें ॥१०॥
शूलाभयकरः सर्वविद्यानमधिनायकः ।
ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वरः ॥ ११॥
हाथोंमें शंख और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, सभी विद्याओंके स्वामी, ईशानस्वरूप भगवान् परमेश्व शिव ईशानकोणमें मेरी रक्षा करें ॥११॥
ऊर्ध्वभागे ब्रह्मरूपी विश्वात्माऽधः सदाऽवतु ।
शिरो मे शङ्करः पातु ललाटं चन्द्रशेखरः ॥ १२॥
ब्रह्मरूपी शिव मेरी ऊर्ध्वभागमें तथा विश्वात्मस्वरूप शिव अधोभागमें मेरी सदा रक्षा करें । शंकर मेरे सिरकी और चन्द्रशेखर मेरे ललाटकी रक्षा करें ॥१२॥
भ्रूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिनेत्रो लोचनेऽवतु ।
भ्रूयुग्मं गिरिशः पातु कर्णौ पातु महेश्वरः ॥ १३॥
मेरे भौंहोंके मध्यमें सर्वलोकेश और दोनों नेत्रोंकी त्रिनेत्र भगवान् शंकर रक्षा करें, दोनों भौंहोंकी रक्षा गिरिश एवं दोनों कानोंको रक्षा भगवान् महेश्वर करें ॥१३॥
नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वजः ।
जिह्वां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु ॥ १४॥
महादेव मेरी नासीकाकी तथा वृषभध्वज मेरे दोनों ओठोंकी सदा रक्षा करें । दक्षिणामूर्ति मेरी जिह्वाकी तथा गिरिश मेरे दाँतोंकी रक्षा करें ॥१४॥
मृतुय्ञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः ।
पिनाकी मत्करौ पातु त्रिशूली हृदयं मम ॥ १५॥
मृत्युञ्जय मेरे मुखकी एवं नागभूषण भगवान् शिव मेरे कण्ठकी रक्षा करें । पिनाकी मेरे दोनों हाथोंकी तथा त्रिशूली मेरे हृदयकी रक्षा करें ॥१५॥
पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वरः ।
नाभिं पातु विरूपाक्षः पार्श्वौ मे पार्वतीपतिः ॥ १६॥
पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनोकी और जगदीश्वर मेरे उदरकी रक्षा करें । विरूपाक्ष नाभिकी और पार्वतीपति पार्श्वभागकी रक्षा करें ॥१६॥
कटिद्वयं गिरीशो मे पृष्ठं मे प्रमथाधिपः ।
गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरू पातु भैरवः ॥ १७॥
गिरीश मेरे दोनों कटिभागकी तथा प्रमथाधिप पृष्टभागकी रक्षा करें । महेश्वर मेरे गुह्यभागकी और भैरव मेरे दोनों ऊरुओंकी रक्षा करें ॥१७॥
जानुनी मे जगद्धर्ता जङ्घे मे जगदम्बिका ।
पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्यः सदाशिवः ॥ १८॥
जगद्धर्ता मेरे दोनों घुटनोंकी, जगदम्बिका मेरे दोनों जंघोकी तथा लोकवन्दनीय सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरोंकी रक्षा करें ॥१८॥
गिरिशः पातु मे भार्यां भवः पातु सुतान्मम ।
मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः ॥ १९॥
गिरीश मेरी भार्याकी रक्षा करें तथा भव मेरे पुत्रोंकी रक्षा करें । मृत्युञ्जय मेरे आयुकी गणनायक मेरे चित्तकी रक्षा करें ॥१९॥
सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकालः सदाशिवः ।
एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम् ॥ २०॥
कालोंके काल सदाशिव मेरे सभी अंगोकी रक्षा करें । [ हे वत्स ! ] देवताओंके लिये भी दुर्लभ इस पवित्र कवचका वर्णन मैंने तुमसे किया है ॥२०॥
मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् ।
सहस्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ॥ २१॥
महादेवजीने मृतसञ्जीवन नामक इस कवचको कहा है । इस कवचकी सहस्त्र आवृत्तिको पुरश्चरण कहा गया है ॥२१॥
यः पठेच्छृणुयान्नित्यं श्रावयेत्सुसमाहितः ।
स कालमृत्युं निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ॥ २२॥
जो अपने मनको एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथावा दूसरोंको सुनाता है, वह अकाल मृत्युको जीतकर पूर्ण आयुका उपयोग करता है ॥ २२॥
हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ ।
आधयो व्याधयस्तस्य न भवन्ति कदाचन ॥ २३॥
जो व्यक्ति अपने हाथसे मरणासन्न व्यक्तिके शरीर का स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवचका पाठ करता है, उस आसन्नमृत्यु प्राणीके भीतर चेतनता आ जाती है । फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं ॥२३॥
कालमृत्युमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा ।
अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तमः ॥ २४॥
यह मृतसञ्जीवन कवच कालके गालमें गये हुए व्यक्तिको भी जीवन प्रदान कर देता है और वह मानवोत्तम अणिमा आदि गुणोंसे युक्त ऐश्वर्यको प्राप्त करता है ॥२४॥
युद्धारम्भे पठित्वेदमष्टाविंशतिवारकम् ।
युद्धमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वैर्न दृश्यते ॥ २५॥
युद्ध आरम्भ होनेके पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवचका २८ बार पाठ करके रणभूमिमें उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुऔंसे अदृश्य रहता है ॥२५॥
न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै ।
विजयं लभते देवयुद्धमध्येऽपि सर्वदा ॥ २६॥
यदि देवतऔंके भी साथ युद्ध छिड जाय तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नही कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है ॥२६॥
प्रातरुत्थाय सततं यः पठेत्कवचं शुभम् ।
अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र च ॥ २७॥
जो प्रात:काल उठकर इस कल्याणकारी कवच सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोकमें भी अक्षय्य सुख प्राप्त होता है ॥२७॥
सर्वव्याधिविनिर्मृक्तः सर्वरोगविवर्जितः ।
अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिकः ॥ २८॥
वह सम्पूर्ण व्याधियोंसे मुक्त हो जाता है, सब प्रकारके रोग उसके शरीरसे भाग जाते हैं । वह अजर-अमर होकर सदाके लिये सोलह वर्षवाला व्यक्ति बन जाता है ॥२८॥
विचरत्यखिलाँलोकान्प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् ।
तस्मादिदं महागोप्यं कवचं समुदाहृतम् ॥ २९॥
इस लोकमें दुर्लभ भोगोंको प्राप्त कर सम्पूर्ण लोकोंमें विचरण करता रहता है । इसलिये इस महागोपनीय कवचको मृतसञ्जीवन नामसे कहा है ॥२९॥
मृतसञ्जीवनं नाम्ना देवतैरपि दुर्लभम् ॥ ३०॥
यह देवतओंके लिय भी दुर्लभ है ॥३०॥
॥ इति श्रीवसिष्ठप्रणितं मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
॥ इस प्रकार मृतसञ्जीवन कवच सम्पूर्ण हुआ ॥
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