सुखमनी साहिब – ७




असटपदी : १९ - २१
(१९)
सलोकु
साथि चालै बिनु भजन बिखिआ सगली छारु
हरि हरि नामु कमावना नानक इहु धनु सारु ॥१॥
असटपदी
संत जना मिलि करहु बीचारु
एकु सिमरि नाम आधारु
अवरि उपाव सभि मीत बिसारहु
चरन कमल रिद महि उरि धारहु
करन कारन सो प्रभु समरथु
द्रिड़ु करि गहहु नामु हरि वथु
इहु धनु संचहु होवहु भगवंत
संत जना का निरमल मंत
एक आस राखहु मन माहि
सरब रोग नानक मिटि जाहि ॥१॥
जिसु धन कउ चारि कुंट उठि धावहि
सो धनु हरि सेवा ते पावहि
जिसु सुख कउ नित बाछहि मीत
सो सुखु साधू संगि परीति
जिसु सोभा कउ करहि भली करनी
सा सोभा भजु हरि की सरनी
अनिक उपावी रोगु जाइ
रोगु मिटै हरि अवखधु लाइ
सरब निधान महि हरि नामु निधानु
जपि नानक दरगहि परवानु ॥२॥
मनु परबोधहु हरि कै नाइ
दह दिसि धावत आवै ठाइ
ता कउ बिघनु लागै कोइ
जा कै रिदै बसै हरि सोइ
कलि ताती ठांढा हरि नाउ
सिमरि सिमरि सदा सुख पाउ
भउ बिनसै पूरन होइ आस
भगति भाइ आतम परगास
तितु घरि जाइ बसै अबिनासी
कहु नानक काटी जम फासी ॥३॥
ततु बीचारु कहै जनु साचा
जनमि मरै सो काचो काचा
आवा गवनु मिटै प्रभ सेव
आपु तिआगि सरनि गुरदेव
इउ रतन जनम का होइ उधारु
हरि हरि सिमरि प्रान आधारु
अनिक उपाव छूटनहारे
सिम्रिति सासत बेद बीचारे
हरि की भगति करहु मनु लाइ
मनि बंछत नानक फल पाइ ॥४॥
संगि चालसि तेरै धना
तूं किआ लपटावहि मूरख मना
सुत मीत कुट्मब अरु बनिता
इन ते कहहु तुम कवन सनाथा
राज रंग माइआ बिसथार
इन ते कहहु कवन छुटकार
असु हसती रथ असवारी
झूठा ड्मफु झूठु पासारी
जिनि दीए तिसु बुझै बिगाना
नामु बिसारि नानक पछुताना ॥५॥
गुर की मति तूं लेहि इआने
भगति बिना बहु डूबे सिआने
हरि की भगति करहु मन मीत
निरमल होइ तुम्हारो चीत
चरन कमल राखहु मन माहि
जनम जनम के किलबिख जाहि
आपि जपहु अवरा नामु जपावहु
सुनत कहत रहत गति पावहु
सार भूत सति हरि को नाउ
सहजि सुभाइ नानक गुन गाउ ॥६॥
गुन गावत तेरी उतरसि मैलु
बिनसि जाइ हउमै बिखु फैलु
होहि अचिंतु बसै सुख नालि
सासि ग्रासि हरि नामु समालि
छाडि सिआनप सगली मना
साधसंगि पावहि सचु धना
हरि पूंजी संचि करहु बिउहारु
ईहा सुखु दरगह जैकारु
सरब निरंतरि एको देखु
कहु नानक जा कै मसतकि लेखु ॥७॥
एको जपि एको सालाहि
एकु सिमरि एको मन आहि
एकस के गुन गाउ अनंत
मनि तनि जापि एक भगवंत
एको एकु एकु हरि आपि
पूरन पूरि रहिओ प्रभु बिआपि
अनिक बिसथार एक ते भए
एकु अराधि पराछत गए
मन तन अंतरि एकु प्रभु राता
गुर प्रसादि नानक इकु जाता ॥८॥१९॥
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(२०)
सलोकु
फिरत फिरत प्रभ आइआ परिआ तउ सरनाइ
नानक की प्रभ बेनती अपनी भगती लाइ ॥१॥
असटपदी
जाचक जनु जाचै प्रभ दानु
करि किरपा देवहु हरि नामु
साध जना की मागउ धूरि
पारब्रहम मेरी सरधा पूरि
सदा सदा प्रभ के गुन गावउ
सासि सासि प्रभ तुमहि धिआवउ
चरन कमल सिउ लागै प्रीति
भगति करउ प्रभ की नित नीति
एक ओट एको आधारु
नानकु मागै नामु प्रभ सारु ॥१॥
प्रभ की द्रिसटि महा सुखु होइ
हरि रसु पावै बिरला कोइ
जिन चाखिआ से जन त्रिपताने
पूरन पुरख नही डोलाने
सुभर भरे प्रेम रस रंगि
उपजै चाउ साध कै संगि
परे सरनि आन सभ तिआगि
अंतरि प्रगास अनदिनु लिव लागि
बडभागी जपिआ प्रभु सोइ
नानक नामि रते सुखु होइ ॥२॥
सेवक की मनसा पूरी भई
सतिगुर ते निरमल मति लई
जन कउ प्रभु होइओ दइआलु
सेवकु कीनो सदा निहालु
बंधन काटि मुकति जनु भइआ
जनम मरन दूखु भ्रमु गइआ
इछ पुनी सरधा सभ पूरी
रवि रहिआ सद संगि हजूरी
जिस का सा तिनि लीआ मिलाइ
नानक भगती नामि समाइ ॥३॥
सो किउ बिसरै जि घाल भानै
सो किउ बिसरै जि कीआ जानै
सो किउ बिसरै जिनि सभु किछु दीआ
सो किउ बिसरै जि जीवन जीआ
सो किउ बिसरै जि अगनि महि राखै
गुर प्रसादि को बिरला लाखै
सो किउ बिसरै जि बिखु ते काढै
जनम जनम का टूटा गाढै
गुरि पूरै ततु इहै बुझाइआ
प्रभु अपना नानक जन धिआइआ ॥४॥
साजन संत करहु इहु कामु
आन तिआगि जपहु हरि नामु
सिमरि सिमरि सिमरि सुख पावहु
आपि जपहु अवरह नामु जपावहु
भगति भाइ तरीऐ संसारु
बिनु भगती तनु होसी छारु
सरब कलिआण सूख निधि नामु
बूडत जात पाए बिस्रामु
सगल दूख का होवत नासु
नानक नामु जपहु गुनतासु ॥५॥
उपजी प्रीति प्रेम रसु चाउ
मन तन अंतरि इही सुआउ
नेत्रहु पेखि दरसु सुखु होइ
मनु बिगसै साध चरन धोइ
भगत जना कै मनि तनि रंगु
बिरला कोऊ पावै संगु
एक बसतु दीजै करि मइआ
गुर प्रसादि नामु जपि लइआ
ता की उपमा कही जाइ
नानक रहिआ सरब समाइ ॥६॥
प्रभ बखसंद दीन दइआल
भगति वछल सदा किरपाल
अनाथ नाथ गोबिंद गुपाल
सरब घटा करत प्रतिपाल
आदि पुरख कारण करतार
भगत जना के प्रान अधार
जो जो जपै सु होइ पुनीत
भगति भाइ लावै मन हीत
हम निरगुनीआर नीच अजान
नानक तुमरी सरनि पुरख भगवान ॥७॥
सरब बैकुंठ मुकति मोख पाए
एक निमख हरि के गुन गाए
अनिक राज भोग बडिआई
हरि के नाम की कथा मनि भाई
बहु भोजन कापर संगीत
रसना जपती हरि हरि नीत
भली सु करनी सोभा धनवंत
हिरदै बसे पूरन गुर मंत
साधसंगि प्रभ देहु निवास
सरब सूख नानक परगास ॥८॥२०॥
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(२१)
सलोकु
सरगुन निरगुन निरंकार सुंन समाधी आपि
आपन कीआ नानका आपे ही फिरि जापि ॥१॥
असटपदी
जब अकारु इहु कछु द्रिसटेता
पाप पुंन तब कह ते होता
जब धारी आपन सुंन समाधि
तब बैर बिरोध किसु संगि कमाति
जब इस का बरनु चिहनु जापत
तब हरख सोग कहु किसहि बिआपत
जब आपन आप आपि पारब्रहम
तब मोह कहा किसु होवत भरम
आपन खेलु आपि वरतीजा
नानक करनैहारु दूजा ॥१॥
जब होवत प्रभ केवल धनी
तब बंध मुकति कहु किस कउ गनी
जब एकहि हरि अगम अपार
तब नरक सुरग कहु कउन अउतार
जब निरगुन प्रभ सहज सुभाइ
तब सिव सकति कहहु कितु ठाइ
जब आपहि आपि अपनी जोति धरै
तब कवन निडरु कवन कत डरै
आपन चलित आपि करनैहार
नानक ठाकुर अगम अपार ॥२॥
अबिनासी सुख आपन आसन
तह जनम मरन कहु कहा बिनासन
जब पूरन करता प्रभु सोइ
तब जम की त्रास कहहु किसु होइ
जब अबिगत अगोचर प्रभ एका
तब चित्र गुपत किसु पूछत लेखा
जब नाथ निरंजन अगोचर अगाधे
तब कउन छुटे कउन बंधन बाधे
आपन आप आप ही अचरजा
नानक आपन रूप आप ही उपरजा ॥३॥
जह निरमल पुरखु पुरख पति होता
तह बिनु मैलु कहहु किआ धोता
जह निरंजन निरंकार निरबान
तह कउन कउ मान कउन अभिमान
जह सरूप केवल जगदीस
तह छल छिद्र लगत कहु कीस
जह जोति सरूपी जोति संगि समावै
तह किसहि भूख कवनु त्रिपतावै
करन करावन करनैहारु
नानक करते का नाहि सुमारु ॥४॥
जब अपनी सोभा आपन संगि बनाई
तब कवन माइ बाप मित्र सुत भाई
जह सरब कला आपहि परबीन
तह बेद कतेब कहा कोऊ चीन
जब आपन आपु आपि उरि धारै
तउ सगन अपसगन कहा बीचारै
जह आपन ऊच आपन आपि नेरा
तह कउन ठाकुरु कउनु कहीऐ चेरा
बिसमन बिसम रहे बिसमाद
नानक अपनी गति जानहु आपि ॥५॥
जह अछल अछेद अभेद समाइआ
ऊहा किसहि बिआपत माइआ
आपस कउ आपहि आदेसु
तिहु गुण का नाही परवेसु
जह एकहि एक एक भगवंता
तह कउनु अचिंतु किसु लागै चिंता
जह आपन आपु आपि पतीआरा
तह कउनु कथै कउनु सुननैहारा
बहु बेअंत ऊच ते ऊचा
नानक आपस कउ आपहि पहूचा ॥६॥
जह आपि रचिओ परपंचु अकारु
तिहु गुण महि कीनो बिसथारु
पापु पुंनु तह भई कहावत
कोऊ नरक कोऊ सुरग बंछावत
आल जाल माइआ जंजाल
हउमै मोह भरम भै भार
दूख सूख मान अपमान
अनिक प्रकार कीओ बख्यान
आपन खेलु आपि करि देखै
खेलु संकोचै तउ नानक एकै ॥७॥
जह अबिगतु भगतु तह आपि
जह पसरै पासारु संत परतापि
दुहू पाख का आपहि धनी
उन की सोभा उनहू बनी
आपहि कउतक करै अनद चोज
आपहि रस भोगन निरजोग
जिसु भावै तिसु आपन नाइ लावै
जिसु भावै तिसु खेल खिलावै
बेसुमार अथाह अगनत अतोलै
जिउ बुलावहु तिउ नानक दास बोलै ॥८॥२१॥

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