सुखमनी साहिब - २




असटपदी : ४ - ६
(४)
सलोकु
निरगुनीआर इआनिआ सो प्रभु सदा समालि
जिनि कीआ तिसु चीति रखु नानक निबही नालि ॥१॥
असटपदी
रमईआ के गुन चेति परानी
कवन मूल ते कवन द्रिसटानी
जिनि तूं साजि सवारि सीगारिआ
गरभ अगनि महि जिनहि उबारिआ
बार बिवसथा तुझहि पिआरै दूध
भरि जोबन भोजन सुख सूध
बिरधि भइआ ऊपरि साक सैन
मुखि अपिआउ बैठ कउ दैन
इहु निरगुनु गुनु कछू बूझै
बखसि लेहु तउ नानक सीझै ॥१॥
जिह प्रसादि धर ऊपरि सुखि बसहि
सुत भ्रात मीत बनिता संगि हसहि
जिह प्रसादि पीवहि सीतल जला
सुखदाई पवनु पावकु अमुला
जिह प्रसादि भोगहि सभि रसा
सगल समग्री संगि साथि बसा
दीने हसत पाव करन नेत्र रसना
तिसहि तिआगि अवर संगि रचना
ऐसे दोख मूड़ अंध बिआपे
नानक काढि लेहु प्रभ आपे ॥२॥
आदि अंति जो राखनहारु
तिस सिउ प्रीति करै गवारु
जा की सेवा नव निधि पावै
ता सिउ मूड़ा मनु नही लावै
जो ठाकुरु सद सदा हजूरे
ता कउ अंधा जानत दूरे
जा की टहल पावै दरगह मानु
तिसहि बिसारै मुगधु अजानु
सदा सदा इहु भूलनहारु
नानक राखनहारु अपारु ॥३॥
रतनु तिआगि कउडी संगि रचै
साचु छोडि झूठ संगि मचै
जो छडना सु असथिरु करि मानै
जो होवनु सो दूरि परानै
छोडि जाइ तिस का स्रमु करै
संगि सहाई तिसु परहरै
चंदन लेपु उतारै धोइ
गरधब प्रीति भसम संगि होइ
अंध कूप महि पतित बिकराल
नानक काढि लेहु प्रभ दइआल ॥४॥
करतूति पसू की मानस जाति
लोक पचारा करै दिनु राति
बाहरि भेख अंतरि मलु माइआ
छपसि नाहि कछु करै छपाइआ
बाहरि गिआन धिआन इसनान
अंतरि बिआपै लोभु सुआनु
अंतरि अगनि बाहरि तनु सुआह
गलि पाथर कैसे तरै अथाह
जा कै अंतरि बसै प्रभु आपि
नानक ते जन सहजि समाति ॥५॥
सुनि अंधा कैसे मारगु पावै
करु गहि लेहु ओड़ि निबहावै
कहा बुझारति बूझै डोरा
निसि कहीऐ तउ समझै भोरा
कहा बिसनपद गावै गुंग
जतन करै तउ भी सुर भंग
कह पिंगुल परबत पर भवन
नही होत ऊहा उसु गवन
करतार करुणा मै दीनु बेनती करै
नानक तुमरी किरपा तरै ॥६॥
संगि सहाई सु आवै चीति
जो बैराई ता सिउ प्रीति
बलूआ के ग्रिह भीतरि बसै
अनद केल माइआ रंगि रसै
द्रिड़ु करि मानै मनहि प्रतीति
कालु आवै मूड़े चीति
बैर बिरोध काम क्रोध मोह
झूठ बिकार महा लोभ ध्रोह
इआहू जुगति बिहाने कई जनम
नानक राखि लेहु आपन करि करम ॥७॥
तू ठाकुरु तुम पहि अरदासि
जीउ पिंडु सभु तेरी रासि
तुम मात पिता हम बारिक तेरे
तुमरी क्रिपा महि सूख घनेरे
कोइ जानै तुमरा अंतु
ऊचे ते ऊचा भगवंत
सगल समग्री तुमरै सूत्रि धारी
तुम ते होइ सु आगिआकारी
तुमरी गति मिति तुम ही जानी
नानक दास सदा कुरबानी ॥८॥४॥
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(५)
सलोकु
देनहारु प्रभ छोडि कै लागहि आन सुआइ
नानक कहू सीझई बिनु नावै पति जाइ ॥१॥
असटपदी
दस बसतू ले पाछै पावै
एक बसतु कारनि बिखोटि गवावै
एक भी देइ दस भी हिरि लेइ
तउ मूड़ा कहु कहा करेइ
जिसु ठाकुर सिउ नाही चारा
ता कउ कीजै सद नमसकारा
जा कै मनि लागा प्रभु मीठा
सरब सूख ताहू मनि वूठा
जिसु जन अपना हुकमु मनाइआ
सरब थोक नानक तिनि पाइआ ॥१॥
अगनत साहु अपनी दे रासि
खात पीत बरतै अनद उलासि
अपुनी अमान कछु बहुरि साहु लेइ
अगिआनी मनि रोसु करेइ
अपनी परतीति आप ही खोवै
बहुरि उस का बिस्वासु होवै
जिस की बसतु तिसु आगै राखै
प्रभ की आगिआ मानै माथै
उस ते चउगुन करै निहालु
नानक साहिबु सदा दइआलु ॥२॥
अनिक भाति माइआ के हेत
सरपर होवत जानु अनेत
बिरख की छाइआ सिउ रंगु लावै
ओह बिनसै उहु मनि पछुतावै
जो दीसै सो चालनहारु
लपटि रहिओ तह अंध अंधारु
बटाऊ सिउ जो लावै नेह
ता कउ हाथि आवै केह
मन हरि के नाम की प्रीति सुखदाई
करि किरपा नानक आपि लए लाई ॥३॥
मिथिआ तनु धनु कुट्मबु सबाइआ
मिथिआ हउमै ममता माइआ
मिथिआ राज जोबन धन माल
मिथिआ काम क्रोध बिकराल
मिथिआ रथ हसती अस्व बसत्रा
मिथिआ रंग संगि माइआ पेखि हसता
मिथिआ ध्रोह मोह अभिमानु
मिथिआ आपस ऊपरि करत गुमानु
असथिरु भगति साध की सरन
नानक जपि जपि जीवै हरि के चरन ॥४॥
मिथिआ स्रवन पर निंदा सुनहि
मिथिआ हसत पर दरब कउ हिरहि
मिथिआ नेत्र पेखत पर त्रिअ रूपाद
मिथिआ रसना भोजन अन स्वाद
मिथिआ चरन पर बिकार कउ धावहि
मिथिआ मन पर लोभ लुभावहि
मिथिआ तन नही परउपकारा
मिथिआ बासु लेत बिकारा
बिनु बूझे मिथिआ सभ भए
सफल देह नानक हरि हरि नाम लए ॥५॥
बिरथी साकत की आरजा
साच बिना कह होवत सूचा
बिरथा नाम बिना तनु अंध
मुखि आवत ता कै दुरगंध
बिनु सिमरन दिनु रैनि ब्रिथा बिहाइ
मेघ बिना जिउ खेती जाइ
गोबिद भजन बिनु ब्रिथे सभ काम
जिउ किरपन के निरारथ दाम
धंनि धंनि ते जन जिह घटि बसिओ हरि नाउ
नानक ता कै बलि बलि जाउ ॥६॥
रहत अवर कछु अवर कमावत
मनि नही प्रीति मुखहु गंढ लावत
जाननहार प्रभू परबीन
बाहरि भेख काहू भीन
अवर उपदेसै आपि करै
आवत जावत जनमै मरै
जिस कै अंतरि बसै निरंकारु
तिस की सीख तरै संसारु
जो तुम भाने तिन प्रभु जाता
नानक उन जन चरन पराता ॥७॥
करउ बेनती पारब्रहमु सभु जानै
अपना कीआ आपहि मानै
आपहि आप आपि करत निबेरा
किसै दूरि जनावत किसै बुझावत नेरा
उपाव सिआनप सगल ते रहत
सभु कछु जानै आतम की रहत
जिसु भावै तिसु लए लड़ि लाइ
थान थनंतरि रहिआ समाइ
सो सेवकु जिसु किरपा करी
निमख निमख जपि नानक हरी ॥८॥५॥
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(६)
सलोकु
काम क्रोध अरु लोभ मोह बिनसि जाइ अहमेव
नानक प्रभ सरणागती करि प्रसादु गुरदेव ॥१॥
असटपदी
जिह प्रसादि छतीह अम्रित खाहि
तिसु ठाकुर कउ रखु मन माहि
जिह प्रसादि सुगंधत तनि लावहि
तिस कउ सिमरत परम गति पावहि
जिह प्रसादि बसहि सुख मंदरि
तिसहि धिआइ सदा मन अंदरि
जिह प्रसादि ग्रिह संगि सुख बसना
आठ पहर सिमरहु तिसु रसना
जिह प्रसादि रंग रस भोग
नानक सदा धिआईऐ धिआवन जोग ॥१॥
जिह प्रसादि पाट पट्मबर हढावहि
तिसहि तिआगि कत अवर लुभावहि
जिह प्रसादि सुखि सेज सोईजै
मन आठ पहर ता का जसु गावीजै
जिह प्रसादि तुझु सभु कोऊ मानै
मुखि ता को जसु रसन बखानै
जिह प्रसादि तेरो रहता धरमु
मन सदा धिआइ केवल पारब्रहमु
प्रभ जी जपत दरगह मानु पावहि
नानक पति सेती घरि जावहि ॥२॥
जिह प्रसादि आरोग कंचन देही
लिव लावहु तिसु राम सनेही
जिह प्रसादि तेरा ओला रहत
मन सुखु पावहि हरि हरि जसु कहत
जिह प्रसादि तेरे सगल छिद्र ढाके
मन सरनी परु ठाकुर प्रभ ता कै
जिह प्रसादि तुझु को पहूचै
मन सासि सासि सिमरहु प्रभ ऊचे
जिह प्रसादि पाई द्रुलभ देह
नानक ता की भगति करेह ॥३॥
जिह प्रसादि आभूखन पहिरीजै
मन तिसु सिमरत किउ आलसु कीजै
जिह प्रसादि अस्व हसति असवारी
मन तिसु प्रभ कउ कबहू बिसारी
जिह प्रसादि बाग मिलख धना
राखु परोइ प्रभु अपुने मना
जिनि तेरी मन बनत बनाई
ऊठत बैठत सद तिसहि धिआई
तिसहि धिआइ जो एक अलखै
ईहा ऊहा नानक तेरी रखै ॥४॥
जिह प्रसादि करहि पुंन बहु दान
मन आठ पहर करि तिस का धिआन
जिह प्रसादि तू आचार बिउहारी
तिसु प्रभ कउ सासि सासि चितारी
जिह प्रसादि तेरा सुंदर रूपु
सो प्रभु सिमरहु सदा अनूपु
जिह प्रसादि तेरी नीकी जाति
सो प्रभु सिमरि सदा दिन राति
जिह प्रसादि तेरी पति रहै
गुर प्रसादि नानक जसु कहै ॥५॥
जिह प्रसादि सुनहि करन नाद
जिह प्रसादि पेखहि बिसमाद
जिह प्रसादि बोलहि अम्रित रसना
जिह प्रसादि सुखि सहजे बसना
जिह प्रसादि हसत कर चलहि
जिह प्रसादि स्मपूरन फलहि
जिह प्रसादि परम गति पावहि
जिह प्रसादि सुखि सहजि समावहि
ऐसा प्रभु तिआगि अवर कत लागहु
गुर प्रसादि नानक मनि जागहु ॥६॥
जिह प्रसादि तूं प्रगटु संसारि
तिसु प्रभ कउ मूलि मनहु बिसारि
जिह प्रसादि तेरा परतापु
रे मन मूड़ तू ता कउ जापु
जिह प्रसादि तेरे कारज पूरे
तिसहि जानु मन सदा हजूरे
जिह प्रसादि तूं पावहि साचु
रे मन मेरे तूं ता सिउ राचु
जिह प्रसादि सभ की गति होइ
नानक जापु जपै जपु सोइ ॥७॥
आपि जपाए जपै सो नाउ
आपि गावाए सु हरि गुन गाउ
प्रभ किरपा ते होइ प्रगासु
प्रभू दइआ ते कमल बिगासु
प्रभ सुप्रसंन बसै मनि सोइ
प्रभ दइआ ते मति ऊतम होइ
सरब निधान प्रभ तेरी मइआ
आपहु कछू किनहू लइआ
जितु जितु लावहु तितु लगहि हरि नाथ
नानक इन कै कछू हाथ ॥८॥६॥
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