शुक्र त्रयोदशी/प्रदोष व्रत



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शुक्र त्रयोदशी/प्रदोष व्रत



सूत जी बोले-
अभीष्ट सिद्धि की कामना, यदि हो ह्रदय विचार

धर्म, अर्थ, कामादि, सुख, मिले पदारथ चार

व्रत कथा प्राचीनकाल की बात है, एक नगर में तीन मित्र रहते थेएक राजकुमार, दूसरा ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र राजकुमार ब्राह्मण कुमार का विवाह हो चुका था धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, किन्तु गौना शेष था एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है।धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरन्त ही अपनी पत्नी को लाने का निश्चय किया माता-पिता ने उसे समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं होता किन्तु धनिक पुत्र नहीं माना और ससुराल जा पहुंचा ससुराल में भी उसे रोकने की बहुत कोशिश की गई, मगर उसने जिद नहीं छोड़ी माता-पिता को विवश होकर अपनी कन्या की विदाई करनी पड़ी ससुराल से विदा हो पति-पत्नी नगर से बाहर निकले ही थे कि उनकी बैलगाड़ी का पहिया अलग हो गया और एक बैल की टांग टूट गई दोनों को काफी चोटें आईं फिर भी वे आगे बढ़ते रहे कुछ दूर जाने पर उनकी भेंट डाकुओं से हो गई डाकू धन-धान्य लूट ले गए दोनों रोते-पीटते घर पहूंचे वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया उसके पिता ने वैद्य को बुलवाया वैद्य ने निरीक्षण के बाद घोषणा की कि धनिक पुत्र तीन दिन में मर जाएगा  जब ब्राह्मण कुमार को यह समाचार मिला तो वह तुरन्त आया उसने माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने का परामर्श दिया और कहा- ‘इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें यह सारी बाधाएं इसलिए आई हैं क्योंकि आपका पुत्र शुक्रास्त में अपनी पत्नी को विदा करा लाया है यदि यह वहां पहुंच जाएगा तो बच जाएगा।धनिक को ब्राह्मण कुमार की बात ठीक लगी उसने वैसा ही किया ससुराल पहुंचते ही धनिक कुमार की हालत ठीक होती चली गई शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट टल गए
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