Shri Kanakdhara Stotram:
Shri Kanakdhara Stotra was written in the 5th century BC by Adi Shankaracarya, a revered Hindu philosopher.
Shri Kanakdhara Stotra was written in the 5th century BC by Adi Shankaracarya, a revered Hindu philosopher.
Shankara took Sanyasa (renunciation) at the age of eight.
He one day, for bhikshatan, visited the house of a poor Brahmin lady, whose
husband also went to the village for bhiksha and nothing was available in the
house to offer. She was very much upset and worried that she could not
offer any thing. She earnestly searched for some thing to be given in her
house. At last she found an amla fruit (Amalak, gooseberry). She
hesitated but gave it with all humility and respect in the bowl of
Sankaracarya. Adi Shankaracarya was very much moved at the sight of the
poverty, stricken woman.
He immediately
recited twenty two slokas in praise of Goddess Lakshmi Who was very much
pleased and appeared before Sankaracarya and asked for his cause and all of
prayer. Sankaracarya pleaded her to grant riches to the Brahmin lady.
Goddess Lakshmi said
that this Brahmin lady did not qualify to get any riches in this life as she
did not to do any charities in her previous life and carry consideration and
she deserves sufferance and justified her stand of not confering any wealth on
her.
Sankaracarya requested that in this life she gave him amla fruit
with very great reverence inspite of not having any thing due to her extreme
poverty and this act of her alone will justify to shower riches on her.
Sankara requested the
Goddess that She is the only one who is capable of changing the fate of someone
. The Goddess was so pleased that she instantly showered the brahmin lady's
house with amla fruits made of pure gold.
Thus this sacred, famous and popular stotra of Sankaracarya
towards Goddess Lakshmi was known as Kanakadhara Stotra/ Surarnadhara/Swarndhara
Stotra.
श्री कनकधारास्तोत्रम्
जो व्यक्ति आर्थिक तंगी से बेहद परेशान रहते हैं, वे धन प्राप्ति के लिए हरसंभव श्रेष्ठ उपाय करना चाहते हैं। 'कनक' का अर्थ है सोना अतः कनक धारा का अर्थ है सोने धारा । मां लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए जितने भी यंत्र हैं, उनमें कनकधारा यंत्र तथा स्तोत्र सबसे ज्यादा प्रभावशाली एवं अतिशीघ्र फलदायी है। इस यंत्र की विशेषता भी यही है कि यह किसी भी प्रकार की विशेष माला, जाप, पूजन, विधि-विधान की मांग नहीं करता बल्कि सिर्फ दिन में एक बार इसको पढ़ना पर्याप्त है।
साथ ही प्रतिदिन इसके सामने दीपक और अगरबत्ती लगाना आवश्यक है। क्योंकि यह सिद्ध मंत्र होने के कारण चैतन्य माना जाता है।
साथ ही प्रतिदिन इसके सामने दीपक और अगरबत्ती लगाना आवश्यक है। क्योंकि यह सिद्ध मंत्र होने के कारण चैतन्य माना जाता है।
यहां प्रस्तुत है कनकधारा स्तोत्र का संस्कृत पाठ:--
|| श्री कनकधारास्तोत्रम्
॥
Kanakdhara Stotram
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥ १॥
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मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसंभवायाः ॥ २॥
~*~*~*~*~
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दं
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥ ३॥
~*~*~*~*~
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥ ४॥
~*~*~*~*~
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेः
धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुस्समस्तजगतां महनीयमूर्तिः
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥ ५॥
~*~*~*~*~
प्राप्तं पदं प्रथमतः खलु यत्प्रभावात्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥ ६॥
~*~*~*~*~
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षं
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥ ७॥
~*~*~*~*~
इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र-
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥ ८॥
~*~*~*~*~
दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारां
अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥ ९॥
~*~*~*~*~
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥ १०॥
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श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥ ११॥
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नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूम्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥ १२॥
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नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै ।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै ॥ १३॥
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नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ॥ १४॥
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नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै ।
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥ १५॥
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सम्पत्कराणि
सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरितोद्धरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥ १६॥
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यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसंपदः ।
संतनोति वचनाङ्गमानसैः
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥ १७॥
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सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥ १८॥
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दिग् हस्तिभिः कनककुंभमुखावसृष्ट-
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष-
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥ १९॥
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कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥ २०॥
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देवि प्रसीद जगदीश्वरि लोकमातः
कल्याणगात्रि कमलेक्षणजीवनाथे ।
दारिद्र्यभीतिहृदयं शरणागतं माम्
आलोकय प्रतिदिनं सदयैरपाङ्गैः ॥ २१॥
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स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमीभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥ २२॥
कनकधारा स्तोत्रं यच्छङ्कराचार्य निर्मितं
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं
सः कुबेर समो भवेत् ॥
।। इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृत श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
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यहां प्रस्तुत है कनकधारा स्तोत्र का हिन्दी और अंग्रेजी अनुवाद :--
|| श्री कनकधारास्तोत्रम् ॥
Kanakdhara Stotram
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥ १॥
* जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल-तरु का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो प्रकाश श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी का वह कटाक्ष मेरे लिए मंगलदायी हो।।1।।
The dark Tamala tree in full bloom attracts the femalebeetle and even so Mahalakshmi is attracted and finds happiness in the fragrant and dark-complexioned body of Hari and makes it tingle with joy. May she bestow on me prosperity by her auspicious glance. Note: The poet in Shankara compares the dark Tamala tree to the dark beautiful form of Vishnu, the dark beetle to the black lustrous eyes of Mahalakshmi. The glance of Lakshmi's eyes on Vishnu gives him great happiness. A mere momentary flash of her eyes on anybody will bless him with prosperity || 1 ||
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मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसंभवायाः ॥ २॥
* जैसे भ्रमरी महान कमल दल पर मंडराती रहती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्ति प्रदान करें ।।2।।
The shy love-laden sidelong glance of the beauteous dark eyes of the daughter oof the Milky Ocean, returns again and again to the beauteous lotus face of Murari,
just like the black bee constantly returning and flitting about the beautiful blue lotus flower. I pray that these glances be bestowed upon me to bless me with prosperity.
Note: The dark beauteous face of the Lord is likened to the blue lotus. The dark glance rests upon the handsome face of the Lord and out of shyness the eyes are turned away but love again makes the glance rest upon the Lord. This series of sidelong glances are likened here to a string or Mala and they further look like the series of trips which the honey seeking black bee makes to the blue lotus. The devotee hopes that he will be prosperous if a sidelong glance of the Goddess
of Wealth falls at least momentarily on him || 2 ||
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आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दं
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥ ३॥
* शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्री लक्ष्मीजी के नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हों, जिनकी पुतली तथा बरौनियां अनंग के वशीभूत हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष (अपलक) नयनों से देखने वाले आनंदकंद श्री मुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।।3।।
The eyes of Mukunda remain closed in ecstasy. The beauteous dark eyes of Lakshmi remain fixed on Mukunda in love and wonder and remain open without blinking| May these eyes of Mahalakshmi fall on me and bless me with prosperity and happiness || 3 ||
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बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥ ४॥
* जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करने वाली है, वह कमल-कुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।।4।।
Lord Vishnu whose chest is adorned by the Kaustubha Mala is also adorned by the series of the beauteous glances of Goddess Mahalakshmi. This string of glances
resembles a necklace of precious blue stones of Indraneela and they are capable of fulfilling all the wishes of Hari Himself. May this string of glances be directed
towards me so that it will bring me auspiciousness.|| 4 ||
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कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेः
धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुस्समस्तजगतां महनीयमूर्तिः
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥ ५॥
* जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के श्यामसुंदर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती है, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी है, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीय मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।।5।
Mahalakshmi shining on the dark broad chest of Mahavishnu is like the streak of lightning illuminating the dark rain clouds. May she, the daughter of the Sage Bhargava worshipped as Mother by the entire universe, bring me auspiciousness|| 5 ||
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प्राप्तं पदं प्रथमतः खलु यत्प्रभावात्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥ ६॥
* समुद्र कन्या कमला की वह मंद, अलस, मंथर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहां मुझ पर पड़े।।6।।
The God of Love, Manmatha, could gain access to Madhusudana (the destroyer of the demon Madhu, i.e. Vishnu) only because he was favored with the blessing
glance from Mahalakshmi. May her auspicious indolent sideglance fall on me (May she bless me with prosperity by looking at me in passing at least for a moment || 6 ||
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विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षं
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥ ७॥
* जो संपूर्ण देवताओं के अधिपति इंद्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मधुहन्ता श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनंद प्रदान करने वाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, उन लक्ष्मीजी के अधखुले नेत्रों की दृष्टि क्षण भर के लिए मुझ पर थोड़ी सी अवश्य पड़े।।7।।
The status of the king of kings or the exal;ted position of an Indra are given effortlessly by Mahalakshmi by a mere momentary glance. Murari (Vishnu) who is supreme bliss itself is made happy by it. May this glance from the blue-lotus eyes of Lakshmi fall on me for a moment at least. Note: The beautepus lotus eyes flashing momentarily on someone is capable of making him a king of kings ir even an Indra. Murari the seat of all bliss is thrown into ecstasy by it. Will she not glance at me , even for a second? || 7||
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इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र-
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥ ८॥
* विशिष्ट बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीति पात्र होकर जिस दया दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग पद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल-गर्भ के समान कांतिमयी दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करें।।8।।
The higher worlds like Swarga which are difficult of attainment and for which great sacrifices like Ashwamedha are performed become easily attainable by the compassion filled look of the lotus eyes of Mahalakshmi. May she look at me so that I may attain my heart's desires. || 8 ||
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दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारां
अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥ ९॥
* भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करें।। 9।।
The dark rain clouds driven by the monsoon winds releases rain on the parched earth and quench the thirst of the Chataka bird and brings prosperity on the earth. In like manner may the dark eyes of Mahalakshmi resembling the rain cloud wafted by the breeze of compassion relese the rain of prosperity on this devotee of a Chataka
bird stricken with the load of accumulated sins so that the sins are washed away and prosperity bestowed upon him. || 9 ||
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गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥ १०॥
* जो सृष्टि लीला के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में विराजमान होती है तथा प्रलय लीला के काल में शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में अवस्थित होती है, त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की उन नित्य यौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।।10।।
We offer obeisance to the Goddess Mahalakshmi, the consort of Narayana, the preceptor of all the three worlds. She is variously known as Saraswati the Goddess
of Learning, as Goddess Lakshmi, the Divine consort of Mahavishnu, as Shakambhari or as Parvati the consort of Lord Maheshwara. Verily it is she who is playfully engaged in creation, protaction and final destruction of the Universe || 10 ||
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श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥ ११॥
* मात:। शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है।।11।।
O Goddess as the very manifestation of the Vedas, you grant the fruits of godd action. Beautiful in form like Rati Devi you are the very ocean of superlatively beautiful qualities. Having your abode in the beautiful lotus of a hundred petals, you are Shakti personified. O consort of Purushottama, You are the Goddess of plenty. Please accept my obeisance || 11 ||
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नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूम्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥ १२॥
* कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सम्भूता श्रीदेवी को नमस्कार है। चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है। ।।12।।
O Consort of Narayana! Whose face is as beautiful as the lotus in bloom, I bow down to thee. Born out of the milky ocean, along with the moon and the Divine nectar, O Goddess! accept my pranams|| 12 ||
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नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै ।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै ॥ १३॥
* सुनहरे कमल पर आसीत लक्ष्मीजी को नमस्कार है। समस्त ब्रहमाण्ड की रचयिता देवी को नमस्कार है।
देवताओं का कल्याण करनेवाली देवी को नमस्कार है। सारंग धनुष को धारण करने वाले श्री विष्णु जी की प्रिया लक्ष्मीजी को नमस्कार है। ।।13।।
I prostrate before you, O Goddess, who is seated on the Golden Lotus, who is Goddess of the universe, who is compassionate to the Devas And who is the consort of Narayana (who has the bow saranga) || 13 ||
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नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ॥ १४॥
* भृगुॠषि की पुत्री को नमस्कार है। कमल पर आसीन देवी को नमस्कार है। महा विष्णु के पवित्र उर में रहने वाली लक्ष्मी जी को नमस्कार है। दामोदर (श्री विष्णु जी) की सहचरी को नमस्कार है। ।।14।।
My obeisance to you, O daughter of Bhrigu, consort of Damodara, O Lakshmi, seated on Lotus and adorning the broad chest of Mahavishnu, my salutations to Thee || 14 ||
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नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै ।
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥ १५॥
* कमल के पुष्प में रहने वाली कान्तिमयी देवी को नमस्कार है। ब्रहमाण्ड की रचयिता और सम्पन्नता की प्रतीक को नमस्कार है। देवताओं द्वारा पूजित को नमस्कार है। नंद-नंदन गोपाल (श्री विष्णु जी) की प्रिया (लक्ष्मी) जी को नमस्कार है। ।।15।।
Please accept my salutations O Consort of Gopala, the son of Nanda, you are worshipped by the Devas. You are Jyoti incarnate, I prostrate before Thee. Your eyes are like lotus petals. You have created the world and you bestow prosperity. || 15 ||
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सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरितोद्धरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥ १६॥
* कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय मां ! आपके चरणों में किए गए प्रणाम संपत्ति प्रदान करने वाले, संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाले, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत हैं, वे सदा मुझे ही अवलम्बन दें। (मुझे ही आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे)।।16।।
May I always have the desire to prostrate before you because a pranam to you is capable of bestowing all prosperity and will bring happiness to all the senses. Worshipping O Lotus-eyed Goddess not only removes all miseries but it confers happiness and plenty || 16 ||
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यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसंपदः ।
संतनोति वचनाङ्गमानसैः
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥ १७॥
* जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूं।।17।।
The devotee who worships your Kataksha (sidelong glance) is blessed with wealth and prosperity. To you, the queen who dominates the heart of Vishnu, my pranamas, through word, thought, and deed|| 17 ||
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सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥ १८॥
* भगवती हरिप्रिया! तुम कमल वन में निवास करने वाली हो, तुम्हारे हाथों में नीला कमल सुशोभित है। तुम अत्यंत उज्ज्वल वस्त्र, गंध और माला आदि से सुशोभित हो। तुम्हारी झांकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी, मुझ पर प्रसन्न हो जाओ।।18।।
Seated on the lotus with the lotus flower in your hand, dresed in dazzling white and adorned with garlands andsandalwood paste, you gladden our hearts. O Goddess,
the consort of Vishnu you who confer prosperity on all the three worlds, please show compassion towards me|| 18 ||
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दिग् हस्तिभिः कनककुंभमुखावसृष्ट-
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष-
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥ १९॥
* दिग्गजों द्वारा सुवर्ण-कलश के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्री अंगों का अभिषेक (स्नान) संपादित होता है, संपूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रात:काल प्रणाम करता हूं।।19।।
O mother of all the worlds, consort of Vishnu the lord of the Universe, the Dig-gajas (the celestial elephants guarding various directions) bathe you everyday with waters of the Deva Ganga poured ouitfrom golden vessels. O daughter of the milky ocean, I prostrate before Thee || 19 ||
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कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥ २०॥
* कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले! मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूं, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूं। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरह तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।।20।।
O Goddess Lakshmi, consort of the Lotus-eyed Mahavishnu, direct your gaze filled with compassion at me, your devotee who am the poorest of the poor, so that I may become the true recipient of the benefits of your compassion|| 20 ||
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देवि प्रसीद जगदीश्वरि लोकमातः
कल्याणगात्रि कमलेक्षणजीवनाथे ।
दारिद्र्यभीतिहृदयं शरणागतं माम्
आलोकय प्रतिदिनं सदयैरपाङ्गैः ॥ २१॥
* सारे जगत की स्वामिनी और लोकमाता, अपने वरद हस्त से वरदान देने वाली, अपने कमल रूपी नयनों से देखने वाली देवी मुझ पर प्रसन्न हों। मैं अपने दारिद्र्य से डरे हुए हृदय से आपकी शरण में हूँ मुझ पर प्रतिदिन अपनी कृपादृष्टि डालो । ।।21।।
O Goddess, controller of the Universe and protector of the people, blessing with your limbs, and gazing with your lotus-like eyes, forgive me. With my heart filled with fear of poverty, I surrender myself wholly to you, that you may watch over me every day with unbroken compassion || 21 ||
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स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमीभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥ २२॥
* जो मनुष्य इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।। 22।।
Those who sing the praise of Mahalakshmi who is the vedas personified, by these stotras everyday will be blessed with all good qualities, unsurpassed good fortune and powers of the intellect which will earn praise from even the learned. || 22 ||
कनकधारा स्तोत्रं यच्छङ्कराचार्य निर्मितं
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं सः कुबेर समो भवेत् ॥
।। इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृत श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
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