10. मोहिनी एकादशी
व्रत
(वैशाख शुक्ल एकादशी)
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे
कि हे कृष्ण!
वैशाख मास की
शुक्ल पक्ष की
एकादशी का क्या
नाम है तथा
उसकी कथा क्या
है? इस व्रत
की क्या विधि
है, यह सब
विस्तारपूर्वक बताइए।
श्रीकृष्ण कहने लगे
कि हे धर्मराज!
मैं आपसे एक
कथा कहता हूं,
जिसे महर्षि वशिष्ठ
ने श्री रामचंद्रजी
से कही थी।
एक समय श्रीराम
बोले कि हे
गुरुदेव! कोई ऐसा
व्रत बताइए, जिससे
समस्त पाप और
दुख का नाश
हो जाए। मैंने
सीताजी के वियोग
में बहुत दुख
भोगे हैं।
महर्षि वशिष्ठ बोले- हे
राम! आपने बहुत
सुंदर प्रश्न किया
है। आपकी बुद्धि
अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र
है। यद्यपि आपका
नाम स्मरण करने
से मनुष्य पवित्र
और शुद्ध हो
जाता है तो
भी लोकहित में
यह प्रश्न अच्छा
है। वैशाख मास
में जो एकादशी
आती है उसका
नाम मोहिनी एकादशी
है। इसका व्रत
करने से मनुष्य
सब पापों तथा
दुखों से छूटकर
मोहजाल से मुक्त
हो जाता है।
मैं इसकी कथा
कहता हूं। ध्यानपूर्वक
सुनो:-
मोहिनी एकादशी व्रत कथा:
सरस्वती नदी के
तट पर भद्रावती
नाम की एक
नगरी में द्युतिमान
नामक चंद्रवंशी राजा
राज करता था।
वहां धन-धान्य
से संपन्न व
पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य
भी रहता है।
वह अत्यंत धर्मालु
और विष्णु भक्त
था। उसने नगर
में अनेक भोजनालय,
प्याऊ, कुएं, सरोवर, धर्मशाला
आदि बनवाए थे।
सड़कों पर आम,
जामुन, नीम आदि
के अनेक वृक्ष
भी लगवाए थे।
उसके पाँच पुत्र
थे- सुमना, सद्बुद्धि,
मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि।
इनमें से पांचवां
पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह
पितर आदि को
नहीं मानता था।
वह वेश्या, दुराचारी
मनुष्यों की संगति
में रहकर जुआ
खेलता और पर-स्त्री के साथ
भोग-विलास करता
तथा मद्य-मांस
का सेवन करता
था। इसी प्रकार
अनेक कुकर्मों में
वह पिता के
धन को नष्ट
करता रहता था।
इन्हीं कारणों से त्रस्त
होकर पिता ने
उसे घर से
निकाल दिया था।
घर से बाहर
निकलने के बाद
वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना
निर्वाह करने लगा।
जब सबकुछ नष्ट
हो गया तो
वेश्या और दुराचारी
साथियों ने उसका
साथ छोड़ दिया।
अब वह भूख-प्यास से अति
दुखी रहने लगा।
कोई सहारा न
देख चोरी करना
सीख गया।
एक बार वह
पकड़ा गया तो
वैश्य का पुत्र
जानकर चेतावनी देकर
छोड़ दिया गया।
मगर दूसरी बार
फिर पकड़ में
आ गया। राजाज्ञा
से इस बार
उसे कारागार में
डाल दिया गया।
कारागार में उसे
अत्यंत दु:ख
दिए गए। बाद
में राजा ने
उसे नगरी से
निकल जाने का
कहा।
वह नगरी से
निकल वन में
चला गया। वहां
वन्य पशु-पक्षियों
को मारकर खाने
लगा। कुछ समय
पश्चात वह बहेलिया
बन गया और
धनुष-बाण लेकर
पशु-पक्षियों को
मार-मारकर खाने
लगा।
एक दिन भूख-प्यास से व्यथित
होकर वह खाने
की तलाश में
घूमता हुआ कौडिन्य
ऋषि के आश्रम
में पहुंच गया।
उस समय वैशाख
मास था और
ऋषि गंगा स्नान
कर आ रहे
थे। उनके भीगे
वस्त्रों के छींटे
उस पर पड़ने
से उसे कुछ
सद्बुद्धि प्राप्त हुई।
वह कौडिन्य मुनि से
हाथ जोड़कर कहने
लगा कि हे
मुने! मैंने जीवन
में बहुत पाप
किए हैं। आप
इन पापों से
छूटने का कोई
साधारण बिना धन
का उपाय बताइए।
उसके दीन वचन
सुनकर मुनि ने
प्रसन्न होकर कहा
कि तुम वैशाख
शुक्ल की मोहिनी
नामक एकादशी का
व्रत करो। इससे
समस्त पाप नष्ट
हो जाएंगे। मुनि
के वचन सुनकर
वह अत्यंत प्रसन्न
हुआ और उनके
द्वारा बताई गई
विधि के अनुसार
व्रत किया।
हे राम! इस
व्रत के प्रभाव
से उसके सब
पाप नष्ट हो
गए और अंत
में वह गरुड़
पर बैठकर विष्णुलोक
को गया। इस
व्रत से मोह
आदि सब नष्ट
हो जाते हैं।
संसार में इस
व्रत से श्रेष्ठ
कोई व्रत नहीं
है।
महत्त्व:
इसके माहात्म्य को पढ़ने
से अथवा सुनने
से एक हजार
गौदान का फल
प्राप्त होता है।
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एकादशी की पावन आरती
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्ना" होती
।
शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफला" नाम कहैं।
शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
नाम "षटतिला" माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में "जया" कहावै, विजय सदा पावै ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"विजया" फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी" ।
"पापमोचनी" कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र मास बल की ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
चैत्र शुक्ल में नाम "कामदा" धन देने वाली ।
नाम "बरुथिनी" कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपरा" ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम"निर्जला" सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"योगिनी" नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
"देवशयनी" नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"कामिका" श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"अजा" भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनी" शुक्ला।
"इन्द्रा" आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"पापांकुशा" है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
"रमा" मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"देवोत्थानी" शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"परमा" कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु:ख दारिद्र हरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन "गुरदिता" स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
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