9. वरुथिनी
एकादशी
(वैशाख कृष्ण
एकादशी)
धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि
हे भगवन्! वैशाख
मास के कृष्ण
पक्ष की एकादशी
का क्या नाम
है, उसकी विधि
क्या है तथा
उसके करने से
क्या फल प्राप्त
होता है? आप
विस्तारपूर्वक मुझसे कहिए, मैं
आपको नमस्कार करता
हूँ। श्रीकृष्ण कहने
लगे कि हे
राजेश्वर! इस एकादशी
का नाम वरुथिनीहै।
यह सौभाग्य देने
वाली, सब पापों
को नष्ट करने
वाली तथा अंत
में मोक्ष देने
वाली है।
इस व्रत को
यदि कोई अभागिनी
स्त्री करे तो
उसको सौभाग्य मिलता
है। इसी वरुथिनी
एकादशी के प्रभाव
से राजा मान्धाता
स्वर्ग को गया
था। वरुथिनी एकादशी
का फल दस
हजार वर्ष तक
तप करने के
बराबर होता है।
कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण
के समय एक
मन स्वर्णदान करने
से जो फल
प्राप्त होता है
वही फल वरुथिनी
एकादशी के व्रत
करने से मिलता
है। वरूथिनी एकादशी
के व्रत को
करने से मनुष्य
इस लोक में
सुख भोगकर परलोक
में स्वर्ग को
प्राप्त होता है।
शास्त्रों में कहा
गया है कि
हाथी का दान
घोड़े के दान
से श्रेष्ठ है।
हाथी के दान
से भूमि दान,
भूमि के दान
से तिलों का
दान, तिलों के
दान से स्वर्ण
का दान तथा
स्वर्ण के दान
से अन्न का
दान श्रेष्ठ है।
अन्न दान के
बराबर कोई दान
नहीं है। अन्नदान
से देवता, पितर
और मनुष्य तीनों
तृप्त हो जाते
हैं। शास्त्रों में
अन्नदान को कन्यादान
के बराबर माना
है।
वरुथिनी एकादशी के व्रत
से अन्नदान तथा
कन्यादान दोनों के बराबर
फल मिलता है।
जो मनुष्य लोभ
के वश होकर
कन्या का धन
लेते हैं वे
प्रलयकाल तक नरक
में वास करते
हैं या उनको
अगले जन्म में
बिलाव का जन्म
लेना पड़ता है।
जो मनुष्य प्रेम
एवं धन सहित
कन्या का दान
करते हैं, उनके
पुण्य को चित्रगुप्त
भी लिखने में
असमर्थ हैं, उनको
कन्यादान का फल
मिलता है।
वरुथिनी एकादशी का व्रत
करने वालों को
दशमी के दिन
निम्नलिखित वस्तुओं का त्याग
करना चाहिए:
1. कांसे के बर्तन
में भोजन करना
2. मांस
3. मसूर की दाल
4. चने का शाक,
5. कोदों का शाक
6. मधु (शहद)
7. मैदा
8. दूसरे का अन्न
9. दूसरी बार भोजन
करना
10. स्त्री
प्रसंग
वरुथिनी एकादशी व्रत
विधि:
व्रत वाले दिन
जुआ नहीं खेलना
चाहिए। उस दिन
पान खाना, दातुन
करना, दूसरे की
निंदा करना तथा
चुगली करना एवं
पापी मनुष्यों के
साथ बातचीत सब
त्याग देना चाहिए।
उस दिन क्रोध,
मिथ्या भाषण का
त्याग करना चाहिए।
इस व्रत में
नमक, तेल अथवा
अन्न वर्जित है।
हे राजन्! जो मनुष्य
विधिवत इस एकादशी
को करते हैं
उनको स्वर्गलोक की
प्राप्ति होती है।
अत: मनुष्यों को
पापों से डरना
चाहिए। इस व्रत
के महात्म्य को
पढ़ने से एक
हजार गोदान का
फल मिलता है।
इसका फल गंगा
स्नान के फल
से भी अधिक
है।
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एकादशी की पावन आरती
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्ना" होती
।
शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफला" नाम कहैं।
शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
नाम "षटतिला" माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में "जया" कहावै, विजय सदा पावै ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"विजया" फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी" ।
"पापमोचनी" कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र मास बल की ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
चैत्र शुक्ल में नाम "कामदा" धन देने वाली ।
नाम "बरुथिनी" कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपरा" ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम"निर्जला" सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"योगिनी" नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
"देवशयनी" नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"कामिका" श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"अजा" भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनी" शुक्ला।
"इन्द्रा" आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"पापांकुशा" है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
"रमा" मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"देवोत्थानी" शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"परमा" कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु:ख दारिद्र हरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन "गुरदिता" स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
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