19. इंदिरा एकादशी
(आश्विन कृष्ण एकादशी)
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे
कि हे भगवान!
आश्विन कृष्ण एकादशी का
क्या नाम है?
इसकी विधि तथा
फल क्या है?
सो कृपा करके
कहिए। भगवान श्रीकृष्ण
कहने लगे कि
इस एकादशी का
नाम इंदिरा एकादशी
है। यह एकादशी
पापों को नष्ट
करने वाली तथा
पितरों को अधोगति
से मुक्ति देने
वाली होती है।
हे राजन! ध्यानपूर्वक
इसकी कथा सुनो।
इसके सुनने मात्र
से ही वायपेय
यज्ञ का फल
मिलता है।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा:
प्राचीनकाल
में सतयुग के
समय में महिष्मति
नाम की एक
नगरी में इंद्रसेन
नाम का एक
प्रतापी राजा धर्मपूर्वक
अपनी प्रजा का
पालन करते हुए
शासन करता था।
वह राजा पुत्र,
पौत्र और धन
आदि से संपन्न
और विष्णु का
परम भक्त था।
एक दिन जब
राजा सुखपूर्वक अपनी
सभा में बैठा
था तो आकाश
मार्ग से महर्षि
नारद उतरकर उसकी
सभा में आए।
राजा उन्हें देखते
ही हाथ जोड़कर
खड़ा हो गया
और विधिपूर्वक आसन
व अर्घ्य दिया।
सुख से बैठकर
मुनि ने राजा
से पूछा कि
हे राजन! आपके
सातों अंग कुशलपूर्वक
तो हैं? तुम्हारी
बुद्धि धर्म में
और तुम्हारा मन
विष्णु भक्ति में तो
रहता है? देवर्षि
नारद की ऐसी
बातें सुनकर राजा
ने कहा- हे
महर्षि! आपकी कृपा
से मेरे राज्य
में सब कुशल
है तथा मेरे
यहाँ यज्ञ कर्मादि
सुकृत हो रहे
हैं। आप कृपा
करके अपने आगमन
का कारण कहिए।
तब ऋषि कहने
लगे कि हे
राजन! आप आश्चर्य
देने वाले मेरे
वचनों को सुनो।
मैं एक समय
ब्रह्मलोक से यमलोक
को गया, वहाँ
श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित
होकर मैंने धर्मशील
और सत्यवान धर्मराज
की प्रशंसा की।
उसी यमराज की
सभा में महान
ज्ञानी और धर्मात्मा
तुम्हारे पिता को
एकादशी का व्रत
भंग होने के
कारण देखा। उन्होंने
संदेशा दिया सो
मैं तुम्हें कहता
हूँ। उन्होंने कहा
कि पूर्व जन्म
में कोई विघ्न
हो जाने के
कारण मैं यमराज
के निकट रह
रहा हूँ, सो
हे पुत्र यदि
तुम आश्विन कृष्णा
इंदिरा एकादशी का व्रत
मेरे निमित्त करो
तो मुझे स्वर्ग
की प्राप्ति हो
सकती है।
इतना सुनकर राजा कहने
लगा कि हे
महर्षि आप इस
व्रत की विधि
मुझसे कहिए। नारदजी
कहने लगे- आश्विन
माह की कृष्ण
पक्ष की दशमी
के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक
स्नानादि से निवृत्त
होकर पुन: दोपहर
को नदी आदि
में जाकर स्नान
करें। फिर श्रद्धापूर्व
पितरों का श्राद्ध
करें और एक
बार भोजन करें।
प्रात:काल होने
पर एकादशी के
दिन दातून आदि
करके स्नान करें,
फिर व्रत के
नियमों को भक्तिपूर्वक
ग्रहण करता हुआ
प्रतिज्ञा करें कि
‘मैं आज संपूर्ण
भोगों को त्याग
कर निराहार एकादशी
का व्रत करूँगा।
हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष!
मैं आपकी शरण
हूँ, आप मेरी
रक्षा कीजिए, इस
प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की
मूर्ति के आगे
विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य
ब्राह्मणों को फलाहार
का भोजन कराएँ
और दक्षिणा दें।
पितरों के श्राद्ध
से जो बच
जाए उसको सूँघकर
गौ को दें
तथा ध़ूप, दीप,
गंध, पुष्प, नैवेद्य
आदि सब सामग्री
से ऋषिकेश भगवान
का पूजन करें।
रात में भगवान
के निकट जागरण
करें। इसके पश्चात
द्वादशी के दिन
प्रात:काल होने
पर भगवान का
पूजन करके ब्राह्मणों
को भोजन कराएँ।
भाई-बंधुओं, स्त्री
और पुत्र सहित
आप भी मौन
होकर भोजन करें।
नारदजी कहने लगे
कि हे राजन!
इस विधि से
यदि तुम आलस्य
रहित होकर इस
एकादशी का व्रत
करोगे तो तुम्हारे
पिता अवश्य ही
स्वर्गलोक को जाएँगे।
इतना कहकर नारदजी
अंतर्ध्यान हो गए।
नारदजी के कथनानुसार
राजा द्वारा अपने
बाँधवों तथा दासों
सहित व्रत करने
से आकाश से
पुष्पवर्षा हुई और
उस राजा का
पिता गरुड़ पर
चढ़कर विष्णुलोक को
गया। राजा इंद्रसेन
भी एकादशी के
व्रत के प्रभाव
से निष्कंटक राज्य
करके अंत में
अपने पुत्र को
सिंहासन पर बैठाकर
स्वर्गलोक को गया।
हे युधिष्ठिर! यह इंदिरा
एकादशी के व्रत
का माहात्म्य मैंने
तुमसे कहा। इसके
पढ़ने और सुनने
से मनुष्य सब
पापों से छूट
जाते हैं और
सब प्रकार के
भोगों को भोगकर
बैकुंठ को प्राप्त
होते हैं।
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एकादशी की पावन आरती
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्ना" होती
।
शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफला" नाम कहैं।
शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
नाम "षटतिला" माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में "जया" कहावै, विजय सदा पावै ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"विजया" फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी" ।
"पापमोचनी" कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र मास बल की ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
चैत्र शुक्ल में नाम "कामदा" धन देने वाली ।
नाम "बरुथिनी" कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपरा" ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम"निर्जला" सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"योगिनी" नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
"देवशयनी" नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"कामिका" श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"अजा" भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनी" शुक्ला।
"इन्द्रा" आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"पापांकुशा" है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
"रमा" मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"देवोत्थानी" शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"परमा" कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु:ख दारिद्र हरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन "गुरदिता" स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
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