20. पापांकुशा एकादशी व्रत कथा
आश्विन शुक्ल एकादशी
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे
कि हे भगवान!
आश्विन शुक्ल एकादशी का
क्या नाम है?
अब आप कृपा
करके इसकी विधि
तथा फल कहिए।
भगवान श्रीकृष्ण कहने
लगे कि हे
युधिष्ठिर! पापों का नाश
करने वाली इस
एकादशी का नाम
पापांकुशा एकादशी है। हे
राजन! इस दिन
मनुष्य को विधिपूर्वक
भगवान पद्मनाभ की
पूजा करनी चाहिए।
यह एकादशी मनुष्य
को मनवांछित फल
देकर स्वर्ग को
प्राप्त कराने वाली है।
मनुष्य को बहुत
दिनों तक कठोर
तपस्या से जो
फल मिलता है,
वह फल भगवान
गरुड़ध्वज को नमस्कार
करने से प्राप्त
हो जाता है।
जो मनुष्य अज्ञानवश
अनेक पाप करते
हैं परंतु हरि
को नमस्कार करते
हैं, वे नरक
में नहीं जाते।
विष्णु के नाम
के कीर्तन मात्र
से संसार के
सब तीर्थों के
पुण्य का फल
मिल जाता है।
जो मनुष्य शार्ङ्ग
धनुषधारी भगवान विष्णु की
शरण में जाते
हैं, उन्हें कभी
भी यम यातना
भोगनी नहीं पड़ती।
जो मनुष्य वैष्णव होकर
शिव की और
शैव होकर विष्णु
की निंदा करते
हैं, वे अवश्य
नरकवासी होते हैं।
सहस्रों वाजपेय और अश्वमेध
यज्ञों से जो
फल प्राप्त होता
है, वह एकादशी
के व्रत के
सोलहवें भाग के
बराबर भी नहीं
होता है। संसार
में एकादशी के
बराबर कोई पुण्य
नहीं। इसके बराबर
पवित्र तीनों लोकों में
कुछ भी नहीं।
इस एकादशी के
बराबर कोई व्रत
नहीं। जब तक
मनुष्य पद्मनाभ की एकादशी
का व्रत नहीं
करते हैं, तब
तक उनकी देह
में पाप वास
कर सकते हैं।
हे राजेन्द्र! यह एकादशी
स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्यता, सुंदर
स्त्री तथा अन्न
और धन की
देने वाली है।
एकादशी के व्रत
के बराबर गंगा,
गया, काशी, कुरुक्षेत्र
और पुष्कर भी
पुण्यवान नहीं हैं।
हरिवासर तथा एकादशी
का व्रत करने
और जागरण करने
से सहज ही
में मनुष्य विष्णु
पद को प्राप्त
होता है। हे
युधिष्ठिर! इस व्रत
के करने वाले
दस पीढ़ी मातृ
पक्ष, दस पीढ़ी
पितृ पक्ष, दस
पीढ़ी स्त्री पक्ष
तथा दस पीढ़ी
मित्र पक्ष का
उद्धार कर देते
हैं। वे दिव्य
देह धारण कर
चतुर्भुज रूप हो,
पीतांबर पहने और
हाथ में माला
लेकर गरुड़ पर
चढ़कर विष्णुलोक को
जाते हैं।
हे नृपोत्तम! बाल्यावस्था, युवावस्था
और वृद्धावस्था में
इस व्रत को
करने से पापी
मनुष्य भी दुर्गति
को प्राप्त न
होकर सद्गति को
प्राप्त होता है।
आश्विन मास की
शुक्ल पक्ष की
इस पापांकुशा एकादशी
का व्रत जो
मनुष्य करते हैं,
वे अंत समय
में हरिलोक को
प्राप्त होते हैं
तथा समस्त पापों
से मुक्त हो
जाते हैं। सोना,
तिल, भूमि, गौ,
अन्न, जल, छतरी
तथा जूती दान
करने से मनुष्य
यमराज को नहीं
देखता।
जो मनुष्य किसी प्रकार
के पुण्य कर्म
किए बिना जीवन
के दिन व्यतीत
करता है, वह
लोहार की भट्टी
की तरह साँस
लेता हुआ निर्जीव
के समान ही
है। निर्धन मनुष्यों
को भी अपनी
शक्ति के अनुसार
दान करना चाहिए
तथा धनवालों को
सरोवर, बाग, मकान
आदि बनवाकर दान
करना चाहिए। ऐसे
मनुष्यों को यम
का द्वार नहीं
देखना पड़ता तथा
संसार में दीर्घायु
होकर धनाढ्य, कुलीन
और रोगरहित रहते
हैं।
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एकादशी की पावन आरती
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्ना" होती
।
शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफला" नाम कहैं।
शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
नाम "षटतिला" माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में "जया" कहावै, विजय सदा पावै ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"विजया" फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी" ।
"पापमोचनी" कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र मास बल की ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
चैत्र शुक्ल में नाम "कामदा" धन देने वाली ।
नाम "बरुथिनी" कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपरा" ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम"निर्जला" सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"योगिनी" नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
"देवशयनी" नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"कामिका" श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"अजा" भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनी" शुक्ला।
"इन्द्रा" आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"पापांकुशा" है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
"रमा" मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"देवोत्थानी" शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"परमा" कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु:ख दारिद्र हरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन "गुरदिता" स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
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