21. रमा एकादशी
(कार्तिक कृष्ण एकादशी)
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे
कि हे भगवान!
कार्तिक कृष्ण एकादशी का
क्या नाम है?
इसकी विधि क्या
है? इसके करने
से क्या फल
मिलता है। सो
आप विस्तारपूर्वक बताइए।
भगवान श्रीकृष्ण बोले
कि कार्तिक कृष्ण
पक्ष की एकादशी
का नाम रमा
है। यह बड़े-बड़े पापों
का नाश करने
वाली है। इसका
माहात्म्य मैं तुमसे
कहता हूँ, ध्यानपूर्वक
सुनो।
रमा एकादशी व्रत कथा:
हे राजन! प्राचीनकाल में
मुचुकुंद नाम का
एक राजा था।
उसकी इंद्र के
साथ मित्रता थी
और साथ ही
यम, कुबेर, वरुण
और विभीषण भी
उसके मित्र थे।
यह राजा बड़ा
धर्मात्मा, विष्णुभक्त और न्याय
के साथ राज
करता था। उस
राजा की एक
कन्या थी, जिसका
नाम चंद्रभागा था।
उस कन्या का
विवाह चंद्रसेन के
पुत्र शोभन के
साथ हुआ था।
एक समय वह
शोभन ससुराल आया।
उन्हीं दिनों जल्दी ही
पुण्यदायिनी एकादशी (रमा) भी
आने वाली थी।
जब व्रत का
दिन समीप आ
गया तो चंद्रभागा
के मन में
अत्यंत सोच उत्पन्न
हुआ कि मेरे
पति अत्यंत दुर्बल
हैं और मेरे
पिता की आज्ञा
अति कठोर है।
दशमी को राजा
ने ढोल बजवाकर
सारे राज्य में
यह घोषणा करवा
दी कि एकादशी
को भोजन नहीं
करना चाहिए। ढोल
की घोषणा सुनते
ही शोभन को
अत्यंत चिंता हुई औ
अपनी पत्नी से
कहा कि हे
प्रिये! अब क्या
करना चाहिए, मैं
किसी प्रकार भी
भूख सहन नहीं
कर सकूँगा। ऐसा
उपाय बतलाओ कि
जिससे मेरे प्राण
बच सकें, अन्यथा
मेरे प्राण अवश्य
चले जाएँगे।
चंद्रभागा कहने लगी
कि हे स्वामी!
मेरे पिता के
राज में एकादशी
के दिन कोई
भी भोजन नहीं
करता। हाथी, घोड़ा,
ऊँट, बिल्ली, गौ
आदि भी तृण,
अन्न, जल आदि
ग्रहण नहीं कर
सकते, फिर मनुष्य
का तो कहना
ही क्या है।
यदि आप भोजन
करना चाहते हैं
तो किसी दूसरे
स्थान पर चले
जाइए, क्योंकि यदि
आप यहीं रहना
चाहते हैं तो
आपको अवश्य व्रत
करना पड़ेगा। ऐसा
सुनकर शोभन कहने
लगा कि हे
प्रिये! मैं अवश्य
व्रत करूँगा, जो
भाग्य में होगा,
वह देखा जाएगा।
धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा कार्तिक
कृष्ण एकादशी का
नाम, इसकी विधि,
उसका फल कैसे
मिलता हैं यह
मिलता है यह
विस्तारपूर्वक बताइए। ऐसा पूछने
पर भगवान श्रीकृष्ण
बोले कि कार्तिक
कृष्ण पक्ष की
एकादशी का नाम
रमा है। यह
बड़े-बड़े पापों
का नाश करने
वाली है।
इस प्रकार से विचार
कर शोभन ने
व्रत रख लिया
और वह भूख
व प्यास से
अत्यंत पीडि़त होने लगा।
जब सूर्य नारायण
अस्त हो गए
और रात्रि को
जागरण का समय
आया जो वैष्णवों
को अत्यंत हर्ष
देने वाला था,
परंतु शोभन के
लिए अत्यंत दु:खदायी हुआ। प्रात:काल होते
शोभन के प्राण
निकल गए। तब
राजा ने सुगंधित
काष्ठ से उसका
दाह संस्कार करवाया।
परंतु चंद्रभागा ने
अपने पिता की
आज्ञा से अपने
शरीर को दग्ध
नहीं किया और
शोभन की अंत्येष्टि
क्रिया के बाद
अपने पिता के
घर में ही
रहने लगी।
रमा एकादशी के प्रभाव
से शोभन को
मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त
तथा शत्रुओं से
रहित एक सुंदर
देवपुर प्राप्त हुआ। वह
अत्यंत सुंदर रत्न और
वैदुर्यमणि जटित स्वर्ण
के खंभों पर
निर्मित अनेक प्रकार
की स्फटिक मणियों
से सुशोभित भवन
में बहुमूल्य वस्त्राभूषणों
तथा छत्र व
चँवर से विभूषित,
गंधर्व और अप्सराअओं
से युक्त सिंहासन
पर आरूढ़ ऐसा
शोभायमान होता था
मानो दूसरा इंद्र
विराजमान हो।
एक समय मुचुकुंद
नगर में रहने
वाले एक सोम
शर्मा नामक ब्राह्मण
तीर्थयात्रा करता हुआ
घूमता-घूमता उधर
जा निकला और
उसने शोभन को
पहचान कर कि
यह तो राजा
का जमाई शोभन
है, उसके निकट
गया। शोभन भी
उसे पहचान कर
अपने आसन से
उठकर उसके पास
आया और प्रणामादि
करके कुशल प्रश्न
किया। ब्राह्मण ने
कहा कि राजा
मुचुकुंद और आपकी
पत्नी कुशल से
हैं। नगर में
भी सब प्रकार
से कुशल हैं,
परंतु हे राजन!
हमें आश्चर्य हो
रहा है। आप
अपना वृत्तांत कहिए
कि ऐसा सुंदर
नगर जो न
कभी देखा, न
सुना, आपको कैसे
प्राप्त हुआ।
तब शोभन बोला
कि कार्तिक कृष्ण
की रमा एकादशी
का व्रत करने
से मुझे यह
नगर प्राप्त हुआ,
परंतु यह अस्थिर
है। यह स्थिर
हो जाए ऐसा
उपाय कीजिए। ब्राह्मण
कहने लगा कि
हे राजन! यह
स्थिर क्यों नहीं
है और कैसे
स्थिर हो सकता
है आप बताइए,
फिर मैं अवश्यमेव
वह उपाय करूँगा।
मेरी इस बात
को आप मिथ्या
न समझिए। शोभन
ने कहा कि
मैंने इस व्रत
को श्रद्धारहित होकर
किया है। अत:
यह सब कुछ
अस्थिर है। यदि
आप मुचुकुंद की
कन्या चंद्रभागा को
यह सब वृत्तांत
कहें तो यह
स्थिर हो सकता
है।
ऐसा सुनकर उस श्रेष्ठ
ब्राह्मण ने अपने
नगर लौटकर चंद्रभागा
से सब वृत्तांत
कह सुनाया। ब्राह्मण
के वचन सुनकर
चंद्रभागा बड़ी प्रसन्नता
से ब्राह्मण से
कहने लगी कि
हे ब्राह्मण! ये
सब बातें आपने
प्रत्यक्ष देखी हैं
या स्वप्न की
बातें कर रहे
हैं। ब्राह्मण कहने
लगा कि हे
पुत्री! मैंने महावन में
तुम्हारे पति को
प्रत्यक्ष देखा है।
साथ ही किसी
से विजय न
हो ऐसा देवताओं
के नगर के
समान उनका नगर
भी देखा है।
उन्होंने यह भी
कहा कि यह
स्थिर नहीं है।
जिस प्रकार वह
स्थिर रह सके
सो उपाय करना
चाहिए।
चंद्रभागा कहने लगी
हे विप्र! तुम
मुझे वहाँ ले
चलो, मुझे पतिदेव
के दर्शन की
तीव्र लालसा है।
मैं अपने किए
हुए पुण्य से
उस नगर को
स्थिर बना दूँगी।
आप ऐसा कार्य
कीजिए जिससे उनका
हमारा संयोग हो
क्योंकि वियोगी को मिला
देना महान पु्ण्य
है। सोम शर्मा
यह बात सुनकर
चंद्रभागा को लेकर
मंदराचल पर्वत के समीप
वामदेव ऋषि के
आश्रम पर गया।
वामदेवजी ने सारी
बात सुनकर वेद
मंत्रों के उच्चारण
से चंद्रभागा का
अभिषेक कर दिया।
तब ऋषि के
मंत्र के प्रभाव
और एकादशी के
व्रत से चंद्रभागा
का शरीर दिव्य
हो गया और
वह दिव्य गति
को प्राप्त हुई।
इसके बाद बड़ी
प्रसन्नता के साथ
अपने पति के
निकट गई। अपनी
प्रिय पत्नी को
आते देखकर शोभन
अति प्रसन्न हुआ।
और उसे बुलाकर
अपनी बाईं तरफ
बिठा लिया। चंद्रभागा
कहने लगी कि
हे प्राणनाथ! आप
मेरे पुण्य को
ग्रहण कीजिए। अपने
पिता के घर
जब मैं आठ
वर्ष की थी
तब से विधिपूर्वक
एकादशी के व्रत
को श्रद्धापूर्वक करती
आ रही हूँ।
इस पुण्य के
प्रताप से आपका
यह नगर स्थिर
हो जाएगा तथा
समस्त कर्मों से
युक्त होकर प्रलय
के अंत तक
रहेगा। इस प्रकार
चंद्रभागा ने दिव्य
आभूषणों और वस्त्रों
से सुसज्जित होकर
अपने पति के
साथ आनंदपूर्वक रहने
लगी।
हे राजन! यह मैंने
रमा एकादशी का
माहात्म्य कहा है,
जो मनुष्य इस
व्रत को करते
हैं, उनके ब्रह्म
हत्यादि समस्त पाप नष्ट
हो जाते हैं।
कृष्ण पक्ष और
शुक्ल पक्ष दोनों
की एकादशियाँ समान
हैं, इनमें कोई
भेदभाव नहीं है।
दोनों समान फल
देती हैं। जो
मनुष्य इस माहात्म्य
को पढ़ते अथवा
सुनते हैं, वे
समस्त पापों से
छूटकर विष्णुलोक को
प्राप्त होता हैं।
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एकादशी की पावन आरती
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्ना" होती
।
शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफला" नाम कहैं।
शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
नाम "षटतिला" माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में "जया" कहावै, विजय सदा पावै ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"विजया" फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी" ।
"पापमोचनी" कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र मास बल की ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
चैत्र शुक्ल में नाम "कामदा" धन देने वाली ।
नाम "बरुथिनी" कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपरा" ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम"निर्जला" सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"योगिनी" नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
"देवशयनी" नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"कामिका" श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"अजा" भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनी" शुक्ला।
"इन्द्रा" आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"पापांकुशा" है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
"रमा" मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"देवोत्थानी" शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"परमा" कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु:ख दारिद्र हरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन "गुरदिता" स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
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