12. निर्जला एकादशी
(ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी)
निर्जला एकादशी व्रत
की कथा इस
प्रकार है-
भीमसेन व्यासजी से कहने
लगे कि हे
पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता
कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल
और सहदेव आदि
सब एकादशी का
व्रत करते हैं
और मुझे भी
करने को
कहते हैं, परंतु
महाराज मैं उनसे
कहता हूं कि
मैं भगवान की
शक्ति पूजा आदि
तो कर सकता
हूं, दान भी
दे सकता हूं
परंतु भोजन के
बिना नहीं रह
सकता।
इस पर व्यासजी
कहने लगे कि
हे भीमसेन! यदि
तुम नरक को
बुरा और स्वर्ग
को अच्छा समझते
हो तो प्रति
मास की दोनों
एकादशियों को अन्न
मत खाया करो।
भीम कहने लगे
कि हे पितामह!
मैं तो पहले
ही कह चुका
हूं कि मैं
भूख सहन नहीं
कर सकता। यदि
वर्षभर में कोई
एक ही व्रत
हो तो वह
मैं रख सकता
हूँ, क्योंकि मेरे
पेट में वृक
नाम वाली अग्नि
है सो मैं
भोजन किए बिना
नहीं रह सकता।
भोजन करने से
वह शांत रहती
है, इसलिए पूरा
उपवास तो क्या
एक समय भी
बिना भोजन किए
रहना कठिन है।
अत: आप मुझे
कोई ऐसा सरल
व्रत बताइए जो
वर्ष में केवल
एक बार ही
करना पड़े और
मुझे स्वर्ग की
प्राप्ति हो जाए।
श्री व्यासजी कहने
लगे कि हे
पुत्र! बड़े-बड़े
ऋषियों ने बहुत
शास्त्र आदि बनाए
हैं जिनसे बिना
धन के थोड़े
परिश्रम से ही
स्वर्ग की प्राप्ति
हो सकती है।
इसी प्रकार शास्त्रों
में दोनों पक्षों
की एकादशी का
व्रत मुक्ति के
लिए रखा जाता
है। कृष्ण पक्ष
और शुक्ल पक्ष
दोनों पक्षों की
एकादशी में अन्न
खाना वर्जित है।
व्यास जी
के वचन सुनकर
भीमसेन नरक
में जाने के
नाम से भयभीत
हो गए और
कांपकर कहने लगे
कि अब क्या
करूं? मास में
दो व्रत तो
मैं कर नहीं
सकता, हां वर्ष
में एक व्रत
करने का प्रयत्न
अवश्य कर सकता
हूं। अत: वर्ष
में एक दिन
व्रत करने से
यदि मेरी मुक्ति
हो जाए तो
ऐसा कोई व्रत बताइए।
यह सुनकर व्यासजी कहने
लगे कि वृषभ
और मिथुन की
संक्रांति के बीच
ज्येष्ठ मास के
शुक्ल पक्ष की
जो एकादशी आती
है, उसका नाम
निर्जला है। तुम
उस एकादशी का
व्रत करो। इस
एकादशी के व्रत
में स्नान और
आचमन के सिवा
जल वर्जित है।
आचमन में छ:
मासे से अधिक
जल नहीं होना
चाहिए अन्यथा वह
मद्यपान के सदृश
हो जाता है।
इस दिन भोजन
नहीं करना चाहिए,
क्योंकि भोजन करने
से व्रत नष्ट
हो जाता है।
यदि एकादशी को
सूर्योदय से लेकर
द्वादशी के सूर्योदय
तक जल ग्रहण
न करे तो
उसे सारी एकादशियों
के व्रत का
फल प्राप्त होता
है। इसका फल
पूरे एक वर्ष
की संपूर्ण एकादशियों
के बराबर होता
है।
व्यासजी कहने लगे
कि हे भीमसेन!
यह मुझको स्वयं
भगवान ने बताया
है। इस एकादशी
का पुण्य समस्त
तीर्थों और दानों
से अधिक है।
केवल एक दिन
मनुष्य निर्जल रहने से
पापों से मुक्त
हो जाता है।
जो मनुष्य निर्जला एकादशी
का व्रत करते
हैं उनकी मृत्यु
के समय भगवान
के पार्षद उसे
पुष्पक विमान में बिठाकर
स्वर्ग को ले
जाते हैं। अत:
संसार में सबसे
श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का
व्रत है।
हे कुंतीपुत्र! जो पुरुष
या स्त्री श्रद्धापूर्वक
इस व्रत को
करते हैं उन्हें
निम्नलिखित कर्म करने
चाहिए।: ज्येष्ठ मास में
सूर्य वृष राशि
पर हो या
मिथुन राशि पर,
शुक्लपक्ष में जो
एकादशी हो, उस
दिन यत्न के
साथ इस व्रत
को करना चाहिए।
प्रथम भगवान का पूजन,
फिर गौदान, ब्राह्मणों
को मिष्ठान्न व
दक्षिणा देनी चाहिए
तथा जल से
भरे कलश का
दान अवश्य करना
चाहिए। निर्जला के दिन अन्न,
वस्त्र, गौ, जल,
शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु,
छाता तथा उपाहन
(जूती) आदि का
दान भी करना
चाहिए। जो मनुष्य
भक्तिपूर्वक इस कथा
को पढ़ते या
सुनते हैं, उन्हें
निश्चय ही स्वर्ग
की प्राप्ति होती
है। इस दिन
जल से भरा
हुआ एक घड़ा
वस्त्र से ढंक
कर स्वर्ण सहित
दान करना चाहिए।
तत्पश्चात्
द्वादशी के दिन
सूर्योदय से पहले
उठकर स्नान करके
पवित्र हो और
फूलों से भगवान
केशव की पूजा
करे। फिर नित्य
कर्म समाप्त होने
के पश्चात् पहले
सत्पात्र ब्राह्मणों को दान
आदि देना चाहिए।
ब्राह्मणों को भोजन
देकर अन्त में
स्वयं भोजन करे।
इस प्रकार व्यासजी की
आज्ञानुसार भीमसेन ने इस
व्रत को किया।
इसलिए इस एकादशी
को भीमसेनी या
पांडव एकादशी भी
कहते हैं।
विधि:
निर्जला व्रत करने
से पूर्व भगवान
से प्रार्थना करें
कि हे भगवन!
आज मैं निर्जला
व्रत करता हूं,
दूसरे दिन भोजन
करूंगा। मैं इस
व्रत को श्रद्धापूर्वक
करूंगा, अत: आपकी
कृपा से मेरे
सब पाप नष्ट
हो जाएं। उस
दिन ॐ नमो
भगवते वासुदेवाय मंत्र
का उच्चारण करना
चाहिए। उस दिन
निर्जल व्रत करना
चाहिए।
उस दिन श्रेष्ठ
ब्राह्मणों को शक्कर
के साथ जल
के घड़े दान
करने चाहिए। तथा
यथाशक्ति अन्न, वस्त्र, गौ,
जल, शैय्या, सुन्दर
आसन, कमण्डलु, छाता
तथा उपाहन (जूती)
आदि का दान
भी करना चाहिए।
तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण
भोजन कराने के
बाद स्वयं भोजन
करे। {कुछ व्रती इस दिन
एक भुक्त व्रत
भी रखते हैं
यानि सांय दान-दर्शन के बाद
फलाहार और दूध
का सेवन करते
हैं।}
महत्त्व:
निर्जला यानि यह
व्रत बिना जल
ग्रहण किए और
उपवास रखकर किया
जाता है। इसलिए
यह व्रत कठिन
तप और साधना
के समान महत्त्व
रखता है। जो
मनुष्य इस व्रत
को करते हैं
उनको करोड़ पल
सोने के दान
का फल मिलता
है और जो
इस दिन यज्ञादिक
करते हैं उनका
फल तो वर्णन
ही नहीं किया
जा सकता। इस
एकादशी के व्रत
से मनुष्य विष्णुलोक
को प्राप्त होता
है। जो इस
एकादशी की महिमा
को भक्तिपूर्वक सुनता
अथवा उसका वर्णन
करता है, वह
स्वर्गलोक में जाता
है। चतुर्दशीयुक्त अमावस्या
को सूर्यग्रहण के
समय श्राद्ध करके
मनुष्य जिस फल
को प्राप्त करता
है, वही फल
इसके श्रवण से
भी प्राप्त होता
है।
ऐसी धार्मिक मान्यता है
कि कोई भी
व्यक्ति मात्र निर्जला एकादशी
का व्रत करने
से साल भर
की पच्चीस एकादशी
का फल पा
सकता है। यहाँ
तक कि अन्य
एकादशी के व्रत
भंग होने के
दोष भी निर्जला
एकादशी के व्रत
से दूर हो
जाते हैं।
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एकादशी की पावन आरती
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्ना" होती
।
शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफला" नाम कहैं।
शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
नाम "षटतिला" माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में "जया" कहावै, विजय सदा पावै ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"विजया" फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी" ।
"पापमोचनी" कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र मास बल की ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
चैत्र शुक्ल में नाम "कामदा" धन देने वाली ।
नाम "बरुथिनी" कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपरा" ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम"निर्जला" सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"योगिनी" नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
"देवशयनी" नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"कामिका" श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"अजा" भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनी" शुक्ला।
"इन्द्रा" आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"पापांकुशा" है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
"रमा" मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"देवोत्थानी" शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"परमा" कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु:ख दारिद्र हरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन "गुरदिता" स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
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