13. योगिनी एकादशी
(आषाढ़ कृष्ण एकादशी)
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे
कि भगवन, मैंने
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के
व्रत का माहात्म्य
सुना। अब कृपया
आषाढ़ कृष्ण एकादशी
की कथा सुनाइए।
इसका नाम क्या
है? माहात्म्य क्या
है? यह भी
बताइए।
श्रीकृष्ण कहने लगे
कि हे राजन!
आषाढ़ कृष्ण एकादशी
का नाम योगिनी
है। इसके व्रत
से समस्त पाप
नष्ट हो जाते
हैं। यह इस
लोक में भोग
और परलोक में
मुक्ति देने वाली
है। यह तीनों
लोकों में प्रसिद्ध
है। मैं तुमसे
पुराणों में वर्णन
की हुई कथा
कहता हूँ। ध्यानपूर्वक
सुनो-
योगिनी एकादशी व्रत कथा:
स्वर्गधाम की अलकापुरी
नामक नगरी में
कुबेर नाम का
एक राजा रहता
था। वह शिव
भक्त था और
प्रतिदिन शिव की
पूजा किया करता
था। हेम नाम
का एक माली
पूजन के लिए
उसके यहाँ फूल
लाया करता था।
हेम की विशालाक्षी
नाम की सुंदर
स्त्री थी। एक
दिन वह मानसरोवर
से पुष्प तो
ले आया लेकिन
कामासक्त होने के
कारण वह अपनी
स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण
करने लगा।
इधर राजा उसकी
दोपहर तक राह
देखता रहा। अंत
में राजा कुबेर
ने सेवकों को
आज्ञा दी कि
तुम लोग जाकर
माली के न
आने का कारण
पता करो, क्योंकि
वह अभी तक
पुष्प लेकर नहीं
आया। सेवकों ने
कहा कि महाराज
वह पापी अतिकामी
है, अपनी स्त्री
के साथ हास्य-विनोद और रमण
कर रहा होगा।
यह सुनकर कुबेर
ने क्रोधित होकर
उसे बुलाया।
हेम माली राजा
के भय से
काँपता हुआ उपस्थित
हुआ। राजा कुबेर
ने क्रोध में
आकर कहा- ‘अरे
पापी! नीच! कामी!
तूने मेरे परम
पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर
श्री शिवजी महाराज
का अनादर किया
है, इसलिए मैं
तुझे शाप देता
हूँ कि तू
स्त्री का वियोग
सहेगा और मृत्युलोक
में जाकर कोढ़ी
होगा।’
कुबेर के शाप
से हेम माली
का स्वर्ग से
पतन हो गया
और वह उसी
क्षण पृथ्वी पर
गिर गया। भूतल
पर आते ही
उसके शरीर में
श्वेत कोढ़ हो
गया। उसकी स्त्री
भी उसी समय
अंतर्ध्यान हो गई।
मृत्युलोक में आकर
माली ने महान
दु:ख भोगे,
भयानक जंगल में
जाकर बिना अन्न
और जल के
भटकता रहा।
रात्रि को निद्रा
भी नहीं आती
थी, परंतु शिवजी
की पूजा के
प्रभाव से उसको
पिछले जन्म की
स्मृति का ज्ञान
अवश्य रहा। घूमते-घ़ूमते एक दिन
वह मार्कण्डेय ऋषि
के आश्रम में
पहुँच गया, जो
ब्रह्मा से भी
अधिक वृद्ध थे
और जिनका आश्रम
ब्रह्मा की सभा
के समान लगता
था। हेम माली
वहाँ जाकर उनके
पैरों में पड़
गया।
उसे देखकर मारर्कंडेय ऋषि
बोले तुमने ऐसा
कौन-सा पाप
किया है, जिसके
प्रभाव से यह
हालत हो गई।
हेम माली ने
सारा वृत्तांत कह
सुनाया। यह सुनकर
ऋषि बोले- निश्चित
ही तूने मेरे
सम्मुख सत्य वचन
कहे हैं, इसलिए
तेरे उद्धार के
लिए मैं एक
व्रत बताता हूँ।
यदि तू आषाढ़
मास के कृष्ण
पक्ष की योगिनी
नामक एकादशी का
विधिपूर्वक व्रत करेगा
तो तेरे सब
पाप नष्ट हो
जाएँगे।
यह सुनकर हेम माली
ने अत्यंत प्रसन्न
होकर मुनि को
साष्टांग प्रणाम किया। मुनि
ने उसे स्नेह
के साथ उठाया।
हेम माली ने
मुनि के कथनानुसार
विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का
व्रत किया। इस
व्रत के प्रभाव
से अपने पुराने
स्वरूप में आकर
वह अपनी स्त्री
के साथ सुखपूर्वक
रहने लगा।
भगवान कृष्ण ने कहा-
हे राजन! यह
योगिनी एकादशी का व्रत
88 हजार ब्राह्मणों को भोजन
कराने के बराबर
फल देता है।
इसके व्रत से
समस्त पाप दूर
हो जाते हैं
और अंत में
स्वर्ग प्राप्त होता है।
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एकादशी की पावन आरती
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्ना" होती
।
शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफला" नाम कहैं।
शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
नाम "षटतिला" माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में "जया" कहावै, विजय सदा पावै ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"विजया" फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी" ।
"पापमोचनी" कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र मास बल की ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
चैत्र शुक्ल में नाम "कामदा" धन देने वाली ।
नाम "बरुथिनी" कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपरा" ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम"निर्जला" सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"योगिनी" नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
"देवशयनी" नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"कामिका" श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"अजा" भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनी" शुक्ला।
"इन्द्रा" आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"पापांकुशा" है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
"रमा" मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"देवोत्थानी" शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"परमा" कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु:ख दारिद्र हरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन "गुरदिता" स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
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