एकादशी व्रत
‘एकादशी’ संस्कृत शब्द ‘एकादश’
से लिया गया
है। एकादश का
शाब्दिक अर्थ है-
‘ग्यारह’ (11)।
प्रत्येक चंद्रमास के शुक्ल
और कृष्ण पक्ष
की ग्यारहवीं तिथि
को एकादशी कहते
हैं। प्रत्येक मास
में दो एकादशी
होती हैं, इसलिए
प्रत्येक वर्ष में
चौबीस (24) एकादशियाँ होती हैं।
जब अधिक मास
या मलमास आता
है तब इनकी
संख्या बढ़कर छब्बीस (26) हो
जाती है। अधिक
मास या मलमास
को जोड़कर वर्ष
में 26 एकादशी होती है।
अधिक मास में
दो एकादशी होती
है जो पद्मिनी
एकादशी (शुक्ल पक्ष) और
परमा एकादशी (कृष्ण
पक्ष) के नाम
से जानी जाती
है।
अधिक मास
या मलमास या
पुरुषोत्तम मास
*एक चंद्र मास में
29.26 से 29.80 दिन होते
हैं, औसतन एक
चंद्र मास में
29.53 दिन होते हैं
और एक सौर
मास में 30 से
31 दिन होते हैं,
औसतन एक सौर
मास में 30.75 दिन
होते हैं। इसलिए
एक सौर वर्ष
में 365 और 6 घंटे
होते हैं जबकि
चंद्र वर्ष में
354 दिन, इसी कारण
सौर और चंद्र
वर्ष के बीच
11 दिनों का अंतर
है। 3 साल में
यह अंतर बढ़कर
लगभग 1 महीना हो जाता
है।
*लिहाजा चंद्र वर्ष और
सौर वर्ष में
तालमेल बनाने के लए
चंद्र वर्ष में
हर तीसरे साल
1 मास अधिक होता
है जिसे अधिक
मास/पुरुषोत्तम मास
/मलमास भी कहते
हैं।
*मांगलिक कार्यों पर रोक-
दरअसल अधिक मास
के दौरान सभी
तरह के मांगलिक
कार्यों जैसे- विवाह, गृहप्रवेश,
नामकरण, अन्नप्राशण, मुंडन संस्कार,
नया घर या
नया सामान खरीदने
पर रोक रहती
है। चूंकि इस
मास को शुद्ध
नहीं माना जाता
इसलिए इस मास
को मलमास भी
कहते हैं।
*अधिक मास या
मलमास को भगवान
विष्णु की पूजा
के लिए श्रेष्ठ
माना जाता है।
भगवान विष्णु से
जुड़ने की वजह
से ही इसे
पुरुषोत्तम मास भी
कहा जाता है।
*मलमास के दौरान
मांगलिक कार्य नहीं होते
लेकिन इस माह
में जप, तप,
तीर्थ यात्रा, कथा
श्रवण का बड़ा
महत्व होता है।
*अधिक मास में
हर दिन भागवत
कथा सुनने से
अभय फल की
प्राप्ति होती है।
अधिक मास में
दान देने का
भी बहुत महत्व
है। भगवान की
आराधना, जप-तप,
तीर्थ यात्रा करने
से ईश्वर की
कृपा प्राप्त होती
है तथा जप,
तप व दान
का कई गुना
पुण्य मिलता है।
अधिक मास में
की गई साधना
से मोक्ष की
प्राप्ति होती है।
अधिक मास का
समय:
सूर्य के एक
राशि से दूसरी
राशि में परिवर्तन
को संक्रान्ति कहते
हैं। जब दो
पक्षों में संक्रान्ति
नहीं होती है,
तब अधिक मास
होता है, जिसे
मलमास भी कहते
है। यह स्थिति
32 माह और 16 दिन में
होती है यानि
लगभग हर तीन
वर्ष बाद अधिक
मास पड़ता है।
उदाहरण:
इस वर्ष 2015 में 17 जून
2015 से 16 जुलाई 2015 तक अधिक
मास है।
इस दौरान मांगलिक कार्य
तो वर्जित रहते
हैं, लेकिन भगवान
की आराधना, जप-तप, तीर्थ
यात्रा करने से
ईश्वर की कृपा
प्राप्त होती है।
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एकादशी व्रत
* एकादशी के दिन
उपवास या व्रत
का विधान है।
* एकादशी का व्रत
भगवान विष्णु जी
या भगवान कृष्ण
जी का होता
है।
* सनातन धर्म में
एकादशी व्रत का
अत्यधिक महत्व है। एकादशी
व्रत का पालन
करने वाले जातक
को दशमी के
दिन से ही
शास्त्रों के अनुरूप
नियमों का पालन
करना चाहिए :-
* एकादशी से एक
दिन पूर्व मांस,
लहसुन, प्याज और मसूर
की दाल का
सेवन न करें।
* दशमी, एकादशी और द्वादशी
के दिन पूर्ण
ब्रह्मचार्य का पालन
करना चाहिए तथा
भोग-विलास से
दूर रहना चाहिए।
* एकादशी के दिन
सुबह दांत और
मुंह साफ करने
के लिए नींबू,
जामुन या आम
के पत्तों को
चबाएं और अंगुली
से कंठ साफ
कर लें। एकादशी
के दिन पेड़
से पत्ते नहीं
तोड़ने चाहिए। यदि पत्ते
मिलना संभव न
हो तो पानी
से बारह बार
कुल्ला कर के
स्नानादि से निवृत
होकर गीता का
पाठ या श्रवण
करें।
* सारा दिन मन
ही मन 'ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय' का
जाप करें। राम,
कृष्ण, नारायण आदि विष्णु
के सहस्रनाम का
जाप करें।
* रात को
जागरण कर कीर्तन
करना चाहिए।
* एकादशी के दिन
यदि भूलवश कोई
गलत काम हो
जाए तो सूर्य
देव के दर्शन
कर धूप-दीप
से श्री हरि
विष्णु की पूजा
कर क्षमा मांग
लेनी चाहिए।
* एकादशी से एक
दिन पहले ही
घर को अच्छी
तरह साफ कर
लें, एकादशी के
दिन घर में
झाड़ू नहीं लगाना
चाहिए क्योंकि चींटी
आदि सूक्ष्म जीवों
की अनजाने में
मृत्यु का भय
बना रहता है।
* इस दिन बाल
न कटवाएं, नाखून न
काटें और जहां
तक संभव हो
मौन धारण करें।
परनिन्दा, कटुवचन और फालतू
बातों से बचें।
*एकादशी के
दिन व्रतधारी व्यक्ति
को अन्न, चावल,
गाजर, शलजम, गोभी,
पालक, इत्यादि का
सेवन नहीं करना
चाहिए।
* केला, आम, अंगूर,
बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत
फलों का सेवन
करें।
* अपने सामर्थ्य के अनुसार
दान आदि पुण्य
कर्म करें। याद
रखें एकादशी के
दिन किसी का
दिया हुआ अन्न
आदि कदापि ग्रहण
न करें।
* एकादशी के दिन
कुछ भी खाने
से पहले भगवान
श्री हरि विष्णु
को भोग लगाकर
तथा तुलसीदल को
छोड़कर ही ग्रहण
करना चाहिए।
* द्वादशी के दिन
ब्राह्मणों को मिष्ठान्न,
यथासंभव दान -दक्षिणा
दान देना चाहिए।
इस व्रत को
करने से समस्त
इच्छाएं पूर्ण होती हैं
और श्री हरि
विष्णु प्रसन्न होते हैं।
धन, विद्या, पुत्र
तथा मनोवांछित फलों
की प्राप्ति होती
है। परिवार में
सुख तथा शांति
रहती है इसलिए
यह व्रत सर्वश्रेष्ठ
और अतिफलदायक है।
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प्रश्न:एकादशी व्रत का आरम्भ से कब करना चाहिएॽ
उत्तर:एकादशी व्रत का आरम्भ उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा (मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी) से करना चाहिए।
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एक वर्ष में निम्न एकादशियाँ होती
हैं:
पढ़ने के लिए कृपया लिंक पर क्लिक करें।
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एकादशी की पावन आरती
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्ना" होती ।
शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफला" नाम कहैं।
शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
नाम "षटतिला" माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में "जया" कहावै, विजय सदा पावै ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"विजया" फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी" ।
"पापमोचनी" कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र मास बल की ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
चैत्र शुक्ल में नाम "कामदा" धन देने वाली ।
नाम "बरुथिनी" कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपरा" ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम"निर्जला" सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"योगिनी" नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
"देवशयनी" नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"कामिका" श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"अजा" भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनी" शुक्ला।
"इन्द्रा" आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"पापांकुशा" है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
"रमा" मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"देवोत्थानी" शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"परमा" कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु:ख दारिद्र हरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन "गुरदिता" स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
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