त्रयोदशी/प्रदोष व्रत कथाएँ
प्रदोष वार – परिचय एवं महत्व
१. रवि प्रदोष – आयु वृद्धि व आरोग्य के लिए
२. सोम प्रदोष – अभीष्ट सिद्धि के लिए
३. मंगल प्रदोष – रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य के लिए
४. बुध प्रदोष – सर्व कामना सिद्धि के लिए
५. गुरु प्रदोष – शत्रु विनाश के लिए
६. शुक्र प्रदोष – सौभाग्य और स्त्री की समृद्धि के लिए
७. शनि प्रदोष – पुत्र प्राप्ति के लिए
त्रयोदशी/प्रदोष व्रत का माहात्म्य
प्रदोष अथवा त्रयोदशी का व्रत मनुष्य को संतोषी व सुखी बनाता है । इस व्रत से सम्पूर्ण पापों का नाश होता है । इस व्रत के प्रभाव से विधवा स्त्री अधर्म से दूर रहती है और विवाहित स्त्रियों का सुहाग अटल रहता है । वार के अनुसार जो व्रत किया जाए, तदनुसार ही उसका फल प्राप्त होता है । सूत जी कथनानुसार- त्रयोदशी का व्रत करने वाले को सौ गाय-दान करने का फल प्राप्त होता है ।
उद्यापन
विधि-विधान से इस व्रत को करने पर सभी कष्ट दूर होते हैं और इच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है । धर्मालुओं को ग्यारह त्रयोदशी अथवा वर्ष भर की २६ त्रयोदशी के व्रत करने के उपरान्त उद्यापन करना चाहिए ।
विधि-विधान से इस व्रत को करने पर सभी कष्ट दूर होते हैं और इच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है । धर्मालुओं को ग्यारह त्रयोदशी अथवा वर्ष भर की २६ त्रयोदशी के व्रत करने के उपरान्त उद्यापन करना चाहिए ।
प्रदोष व्रत विधि:
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो भगवान शंकर का स्मरण करें । निराहार रहें । सायंकाल, सूर्यास्त से एक घण्टा पूर्व, स्नानादि कर्मों से निवृत्त हो श्वेत वस्त्र धारण करें । पूजन स्थल को स्वच्छ जल और गाय के गोबर से लीपकर मंडप को भली-भांति सजाकर पांच रंगों को मिलाकर पद्म पुष्प की आकृति बनाकर कुशा के आसन पर उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और शंकर भगवान का पूजन करें ।
‘ॐ नमः शिवाय’ इस पंचाक्षर मन्त्र का जाप करते हुए जल चढ़ावें और ऋतुफल अर्पित करें । जल चढ़ाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जलधारा टूटे नहीं । इसी प्रकार मंत्र का जप लयबद्ध हो । जल चढ़ाते समय यदि आंखें खुली हुई हैं, तो दृष्टि जलधारा पर टिकी हो और यदि भाव में आंखें मुंद गयी हों, तो ध्यान जप के शब्दों-अर्थों के साथ चल रहा हो । यदि मंत्र के उच्चारण में गूंज पैदा कर सकें अर्थात् मंत्र यदि ओंठ, कंठ और नाभिप्रदेश से समन्वित रूप से उठे, तो यह और प्रभावी होगा ।
स्कन्ध पुराण में कहा गया है कि जो स्त्री-पुरुष विधि-विधान के साथ यह व्रत एवं उद्यापन करते हैं, भगवान शंकर-पार्वती उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं । फलस्वरूप उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है ।
त्रयोदशी व्रत उद्यापन
विधि:
*कार्य सिद्धि के उपरान्त त्रयोदशी के दिन ही उद्यापन करें ।
*एक दिन पूर्व गणेश पूजन करें ।
*रात्रि में भजन-कीर्तन द्वारा जागरण करें ।
*प्रातः स्नानादि के उपरान्त रंगीन पद्म-पुष्प अथवा वस्त्रों से मंडप को सजाएं ।
*मंडप में शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करें ।
*हवन में खीर की आहुति देते हुए ‘ॐ उमा सहित शिवाय नमः’ मन्त्र का 108 बार जप करें ।
*हवन के बाद आरती उतारें और शान्ति पाठ करें ।
*तत्पश्चात्
दो ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा यथाशक्ति दान दें ।
*ब्राह्मणों का आशीर्वाद लें ।
स्कन्ध पुराण में कहा गया है कि जो स्त्री-पुरुष विधि-विधान के साथ यह व्रत एवं उद्यापन करते हैं, भगवान शंकर-पार्वती उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं । फलस्वरूप उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है ।
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