7. पाप मोचनी
एकादशी
(चैत्र कृ्ष्ण एकादशी)
पाप मोचनी एकादशी व्रत
चैत्र मास के
कृ्ष्ण पक्ष की
एकादशी को किया
जाता है. पापमोचनी एकादशी व्रत
व्यक्ति को उसके
सभी पापों से
मुक्त कर उसके
लिये मोक्ष के
मार्ग खोलती है.
इस एकादशी को
पापो को नष्ट
करने वाली, एकादशी
के रुप में
भी जाना जाता
है. वर्ष 2011 में
पापमोचनी एकादशी व्रत 30 मार्च
के दिन किया
जायेगा. इस एकादशी
के दिन भगवान
विष्णु जी का
पूजन करना चाहिए.
अगर कोई व्यक्ति
इस पूजा को
षोडशोपचार के रुप
में करने पर
व्रत के शुभ
फलों में वृ्द्धि
होती है.
पापमोचनी एकादशी व्रत विधि:
एकादशी व्रत में
श्री विष्णु जी
का पूजन किया
जाता है. पापमोचनी
एकादशी व्रत करने
के लिये उपवासक
को इससे पूर्व
की तिथि में
सात्विक भोजन करना
चाहिए. एकादशी व्रत की
अवधि 24 घंटों की होती
है. इसलिए इस
व्रत को प्रारम्भ
करने से पूर्व
स्वयं को व्रत
के लिये मानसिक
रुप से तैयार
कर लेना चाहिए.
एकाद्शी व्रत में
दिन के समय
में श्री विष्णु
जी का स्मरण
करना चाहिए. और
रात्रि में भी
पूरी रात जाकर
श्री विष्णु का
पाठ करते हुए
जागरण करना चाहिए.
व्रत के दिन
सूर्योदय काल में
उठना चाहिए. और
स्नान आदि सभी
कार्यो से निवृ्त
होने के बाद
व्रत का संकल्प
करना चाहिए. संकल्प
लेने के बाद
भगवान विष्णु की
पूजा करनी चाहिए. पूजा
करने के बाद
भगवान विष्णु की
प्रतिमा के सामने
बैठ्कर श्रीमद भागवत कथा
का पाठ करना
चाहिए. इस तिथि
के दिन व्रत
करने के बाद
जागरण करने से
कई गुणा फल
प्राप्त होता है.
व्रत की रात्रि
में भी निराहर
रहकर, जागरण करने
से व्रत के
पुन्य फलों में
वृ्द्धि होती है.
व्रत के दिन
भोग विलास की
कामना का त्याग
करना चाहिए. इस
अवधि में मन
में किसी भी
प्रकार के बुरे
विचार को लाने
से बचना चाहिए. व्रत
करने पर व्रत
की कथा का
श्रवण अवश्य करना
चाहिए.
एकादशी व्रत का
समापन द्वादशी तिथि
के दिन प्रात:काल में
स्नान करने के
बाद, भगवान श्री
विष्णु कि पूजा
करने के बाद
ब्राह्माणों को भोजन
व दक्षिणा देकर
करना चाहिए. यह
सब कार्य करने
के बाद ही
स्वयं भोजन करना
चाहिए.
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा:
प्राचीन समय की
बात है, चित्ररथ
नाम का एक
वन था. इस
वन में गंधर्व
कन्याएं और देवता
सभी विहार करते
थें. एक बार
मेधावी नामक ऋषि
इस वन में
तपस्या कर रहा
था. तभी वहां
से एक मंजुघोषा
नामक अप्सरा ऋषि
को देख कर
उनपर मोहित हो
गई. मंजूघोषा ने
अपने रुप-रंग
और नृ्त्य से
ऋषि को मोहित
करने का प्रयास
किया. उस समय
में कामदेव भी
वहां से गुजर
रहे थें, उन्होने
भी अप्सरा की
इस कार्य में
सहयोग किया. जिसके
फलस्वरुप अप्सरा ऋषि की
तपस्या भंग करने
में सफल हो
गई.
कुछ वर्षो के बाद
जब ऋषि का
मोहभंग हुआ, तो
ऋषि को स्मरण
हुआ कि वे
तो शिव तपस्या
कर रहे थें.
अपनी इस अवस्था
का कारण उन्होने
अप्सरा को माना.
और उन्होने अप्सरा
को पिशाचिनी होने
का श्राप दे
दिया. शाप सुनकर
मंजूघोषा ने कांपते
हुए इस श्राप
से मुक्त होने
का उपाय पूछा.
तब ऋषि ने
उसे पापमोचनी एकादशी
व्रत करने को
कहा. स्वयं ऋषि
भी अपने पाप
का प्रायश्चित करने
के लिये इस
व्रत को करने
लगें. दोनों का
व्रत पूरा होने
पर, दोनों को
ही अपने पापों
से मुक्ति मिली.
तभी से पापमोचनी
एकादशी का व्रत
करने की प्रथा
चली आ रही
है. यह व्रत
व्यक्ति के सभी
जाने- अनजाने में
किये गये पापों
से मुक्ति दिलाता
है.
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एकादशी की पावन आरती
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष में "उत्पन्ना" होती
।
शुक्ल पक्ष में "मोक्षदायिनी", पापों को धोती ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
पौष के कृ्ष्णपक्ष की, "सफला" नाम कहैं।
शुक्लपक्ष में होय "पुत्रदा", आनन्द अधिक लहैं ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
नाम "षटतिला" माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में "जया" कहावै, विजय सदा पावै ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"विजया" फागुन कृ्ष्णपक्ष में शुक्ला "आमलकी" ।
"पापमोचनी" कृ्ष्ण पक्ष में, चैत्र मास बल की ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
चैत्र शुक्ल में नाम "कामदा" धन देने वाली ।
नाम "बरुथिनी" कृ्ष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
शुक्ल पक्ष में होये"मोहिनी", "अपरा" ज्येष्ठ कृ्ष्णपक्षी ।
नाम"निर्जला" सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"योगिनी" नाम आषाढ में जानों, कृ्ष्णपक्ष करनी ।
"देवशयनी" नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"कामिका" श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय "पवित्रा", आनन्द से रहिए।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"अजा" भाद्रपद कृ्ष्णपक्ष की, "परिवर्तिनी" शुक्ला।
"इन्द्रा" आश्चिन कृ्ष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"पापांकुशा" है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी ।
"रमा" मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"देवोत्थानी" शुक्लपक्ष की, दु:खनाशक मैया।
लौंद मास में करूँ विनती पार करो नैया ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
"परमा" कृ्ष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल लौंद में होय "पद्मिनी", दु:ख दारिद्र हरनी ।।
ऊँ जय एकादशी…।।
जो कोई आरती एकाद्शी की, भक्ति सहित गावै ।
जन "गुरदिता" स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
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