असटपदी : १ - ३
(१)
गउड़ी सुखमनी मः ५ ॥
सलोकु ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
आदि गुरए नमह ॥
जुगादि गुरए नमह ॥
सतिगुरए नमह ॥
स्री गुरदेवए नमह ॥१॥
असटपदी ॥
सिमरउ सिमरि सिमरि सुखु पावउ ॥
कलि कलेस तन माहि मिटावउ ॥
सिमरउ जासु बिसु्मभर एकै ॥
नामु जपत अगनत अनेकै ॥
बेद पुरान सिम्रिति सुधाख्यर ॥
कीने राम नाम इक आख्यर ॥
किनका एक जिसु जीअ बसावै ॥
ता की महिमा गनी न आवै ॥
कांखी एकै दरस तुहारो ॥
नानक उन संगि मोहि उधारो ॥१॥
सुखमनी सुख अम्रित प्रभ नामु ॥
भगत जना कै मनि बिस्राम ॥ रहाउ ॥
प्रभ कै सिमरनि गरभि न बसै ॥
प्रभ कै सिमरनि दूखु जमु नसै ॥
प्रभ कै सिमरनि कालु परहरै ॥
प्रभ कै सिमरनि दुसमनु टरै ॥
प्रभ सिमरत कछु बिघनु न लागै ॥
प्रभ कै सिमरनि अनदिनु जागै ॥
प्रभ कै सिमरनि भउ न बिआपै ॥
प्रभ कै सिमरनि दुखु न संतापै ॥
प्रभ का सिमरनु साध कै संगि ॥
सरब निधान नानक हरि रंगि ॥२॥
प्रभ कै सिमरनि रिधि सिधि नउ निधि ॥
प्रभ कै सिमरनि गिआनु धिआनु ततु बुधि ॥
प्रभ कै सिमरनि जप तप पूजा ॥
प्रभ कै सिमरनि बिनसै दूजा ॥
प्रभ कै सिमरनि तीरथ इसनानी ॥
प्रभ कै सिमरनि दरगह मानी ॥
प्रभ कै सिमरनि होइ सु भला ॥
प्रभ कै सिमरनि सुफल फला ॥
से सिमरहि जिन आपि सिमराए ॥
नानक ता कै लागउ पाए ॥३॥
प्रभ का सिमरनु सभ ते ऊचा ॥
प्रभ कै सिमरनि उधरे मूचा ॥
प्रभ कै सिमरनि त्रिसना बुझै ॥
प्रभ कै सिमरनि सभु किछु सुझै ॥
प्रभ कै सिमरनि नाही जम त्रासा ॥
प्रभ कै सिमरनि पूरन आसा ॥
प्रभ कै सिमरनि मन की मलु जाइ ॥
अम्रित नामु रिद माहि समाइ ॥
प्रभ जी बसहि साध की रसना ॥
नानक जन का दासनि दसना ॥४॥
प्रभ कउ सिमरहि से धनवंते ॥
प्रभ कउ सिमरहि से पतिवंते ॥
प्रभ कउ सिमरहि से जन परवान ॥
प्रभ कउ सिमरहि से पुरख प्रधान ॥
प्रभ कउ सिमरहि सि बेमुहताजे ॥
प्रभ कउ सिमरहि सि सरब के राजे ॥
प्रभ कउ सिमरहि से सुखवासी ॥
प्रभ कउ सिमरहि सदा अबिनासी ॥
सिमरन ते लागे जिन आपि दइआला ॥
नानक जन की मंगै रवाला ॥५॥
प्रभ कउ सिमरहि से परउपकारी ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन सद बलिहारी ॥
प्रभ कउ सिमरहि से मुख सुहावे ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन सूखि बिहावै ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन आतमु जीता ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन निरमल रीता ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन अनद घनेरे ॥
प्रभ कउ सिमरहि बसहि हरि नेरे ॥
संत क्रिपा ते अनदिनु जागि ॥
नानक सिमरनु पूरै भागि ॥६॥
प्रभ कै सिमरनि कारज पूरे ॥
प्रभ कै सिमरनि कबहु न झूरे ॥
प्रभ कै सिमरनि हरि गुन बानी ॥
प्रभ कै सिमरनि सहजि समानी ॥
प्रभ कै सिमरनि निहचल आसनु ॥
प्रभ कै सिमरनि कमल बिगासनु ॥
प्रभ कै सिमरनि अनहद झुनकार ॥
सुखु प्रभ सिमरन का अंतु न पार ॥
सिमरहि से जन जिन कउ प्रभ मइआ ॥
नानक तिन जन सरनी पइआ ॥७॥
हरि सिमरनु करि भगत प्रगटाए ॥
हरि सिमरनि लगि बेद उपाए ॥
हरि सिमरनि भए सिध जती दाते ॥
हरि सिमरनि नीच चहु कुंट जाते ॥
हरि सिमरनि धारी सभ धरना ॥
सिमरि सिमरि हरि कारन करना ॥
हरि सिमरनि कीओ सगल अकारा ॥
हरि सिमरन महि आपि निरंकारा ॥
करि किरपा जिसु आपि बुझाइआ ॥
नानक गुरमुखि हरि सिमरनु तिनि पाइआ ॥८॥१॥
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(२)
सलोकु ॥
दीन दरद दुख भंजना घटि घटि नाथ अनाथ ॥
सरणि तुम्हारी आइओ नानक के प्रभ साथ ॥१॥
असटपदी ॥
जह मात पिता सुत मीत न भाई ॥
मन ऊहा नामु तेरै संगि सहाई ॥
जह महा भइआन दूत जम दलै ॥
तह केवल नामु संगि तेरै चलै ॥
जह मुसकल होवै अति भारी ॥
हरि को नामु खिन माहि उधारी ॥
अनिक पुनहचरन करत नही तरै ॥
हरि को नामु कोटि पाप परहरै ॥
गुरमुखि नामु जपहु मन मेरे ॥
नानक पावहु सूख घनेरे ॥१॥
सगल स्रिसटि को राजा दुखीआ ॥
हरि का नामु जपत होइ सुखीआ ॥
लाख करोरी बंधु न परै ॥
हरि का नामु जपत निसतरै ॥
अनिक माइआ रंग तिख न बुझावै ॥
हरि का नामु जपत आघावै ॥
जिह मारगि इहु जात इकेला ॥
तह हरि नामु संगि होत सुहेला ॥
ऐसा नामु मन सदा धिआईऐ ॥
नानक गुरमुखि परम गति पाईऐ ॥२॥
छूटत नही कोटि लख बाही ॥
नामु जपत तह पारि पराही ॥
अनिक बिघन जह आइ संघारै ॥
हरि का नामु ततकाल उधारै ॥
अनिक जोनि जनमै मरि जाम ॥
नामु जपत पावै बिस्राम ॥
हउ मैला मलु कबहु न धोवै ॥
हरि का नामु कोटि पाप खोवै ॥
ऐसा नामु जपहु मन रंगि ॥
नानक पाईऐ साध कै संगि ॥३॥
जिह मारग के गने जाहि न कोसा ॥
हरि का नामु ऊहा संगि तोसा ॥
जिह पैडै महा अंध गुबारा ॥
हरि का नामु संगि उजीआरा ॥
जहा पंथि तेरा को न सिञानू ॥
हरि का नामु तह नालि पछानू ॥
जह महा भइआन तपति बहु घाम ॥
तह हरि के नाम की तुम ऊपरि छाम ॥
जहा त्रिखा मन तुझु आकरखै ॥
तह नानक हरि हरि अम्रितु बरखै ॥४॥
भगत जना की बरतनि नामु ॥
संत जना कै मनि बिस्रामु ॥
हरि का नामु दास की ओट ॥
हरि कै नामि उधरे जन कोटि ॥
हरि जसु करत संत दिनु राति ॥
हरि हरि अउखधु साध कमाति ॥
हरि जन कै हरि नामु निधानु ॥
पारब्रहमि जन कीनो दान ॥
मन तन रंगि रते रंग एकै ॥
नानक जन कै बिरति बिबेकै ॥५॥
हरि का नामु जन कउ मुकति जुगति ॥
हरि कै नामि जन कउ त्रिपति भुगति ॥
हरि का नामु जन का रूप रंगु ॥
हरि नामु जपत कब परै न भंगु ॥
हरि का नामु जन की वडिआई ॥
हरि कै नामि जन सोभा पाई ॥
हरि का नामु जन कउ भोग जोग ॥
हरि नामु जपत कछु नाहि बिओगु ॥
जनु राता हरि नाम की सेवा ॥
नानक पूजै हरि हरि देवा ॥६॥
हरि हरि जन कै मालु खजीना ॥
हरि धनु जन कउ आपि प्रभि दीना ॥
हरि हरि जन कै ओट सताणी ॥
हरि प्रतापि जन अवर न जाणी ॥
ओति पोति जन हरि रसि राते ॥
सुंन समाधि नाम रस माते ॥
आठ पहर जनु हरि हरि जपै ॥
हरि का भगतु प्रगट नही छपै ॥
हरि की भगति मुकति बहु करे ॥
नानक जन संगि केते तरे ॥७॥
पारजातु इहु हरि को नाम ॥
कामधेन हरि हरि गुण गाम ॥
सभ ते ऊतम हरि की कथा ॥
नामु सुनत दरद दुख लथा ॥
नाम की महिमा संत रिद वसै ॥
संत प्रतापि दुरतु सभु नसै ॥
संत का संगु वडभागी पाईऐ ॥
संत की सेवा नामु धिआईऐ ॥
नाम तुलि कछु अवरु न होइ ॥
नानक गुरमुखि नामु पावै जनु कोइ ॥८॥२॥
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(३)
सलोकु ॥
बहु सासत्र बहु सिम्रिती पेखे सरब ढढोलि ॥
पूजसि नाही हरि हरे नानक नाम अमोल ॥१॥
असटपदी ॥
जाप ताप गिआन सभि धिआन ॥
खट सासत्र सिम्रिति वखिआन ॥
जोग अभिआस करम ध्रम किरिआ ॥
सगल तिआगि बन मधे फिरिआ ॥
अनिक प्रकार कीए बहु जतना ॥
पुंन दान होमे बहु रतना ॥
सरीरु कटाइ होमै करि राती ॥
वरत नेम करै बहु भाती ॥
नही तुलि राम नाम बीचार ॥
नानक गुरमुखि नामु जपीऐ इक बार ॥१॥
नउ खंड प्रिथमी फिरै चिरु जीवै ॥
महा उदासु तपीसरु थीवै ॥
अगनि माहि होमत परान ॥
कनिक अस्व हैवर भूमि दान ॥
निउली करम करै बहु आसन ॥
जैन मारग संजम अति साधन ॥
निमख निमख करि सरीरु कटावै ॥
तउ भी हउमै मैलु न जावै ॥
हरि के नाम समसरि कछु नाहि ॥
नानक गुरमुखि नामु जपत गति पाहि ॥२॥
मन कामना तीरथ देह छुटै ॥
गरबु गुमानु न मन ते हुटै ॥
सोच करै दिनसु अरु राति ॥
मन की मैलु न तन ते जाति ॥
इसु देही कउ बहु साधना करै ॥
मन ते कबहू न बिखिआ टरै ॥
जलि धोवै बहु देह अनीति ॥
सुध कहा होइ काची भीति ॥
मन हरि के नाम की महिमा ऊच ॥
नानक नामि उधरे पतित बहु मूच ॥३॥
बहुतु सिआणप जम का भउ बिआपै ॥
अनिक जतन करि त्रिसन ना ध्रापै ॥
भेख अनेक अगनि नही बुझै ॥
कोटि उपाव दरगह नही सिझै ॥
छूटसि नाही ऊभ पइआलि ॥
मोहि बिआपहि माइआ जालि ॥
अवर करतूति सगली जमु डानै ॥
गोविंद भजन बिनु तिलु नही मानै ॥
हरि का नामु जपत दुखु जाइ ॥
नानक बोलै सहजि सुभाइ ॥४॥
चारि पदारथ जे को मागै ॥
साध जना की सेवा लागै ॥
जे को आपुना दूखु मिटावै ॥
हरि हरि नामु रिदै सद गावै ॥
जे को अपुनी सोभा लोरै ॥
साधसंगि इह हउमै छोरै ॥
जे को जनम मरण ते डरै ॥
साध जना की सरनी परै ॥
जिसु जन कउ प्रभ दरस पिआसा ॥
नानक ता कै बलि बलि जासा ॥५॥
सगल पुरख महि पुरखु प्रधानु ॥
साधसंगि जा का मिटै अभिमानु ॥
आपस कउ जो जाणै नीचा ॥
सोऊ गनीऐ सभ ते ऊचा ॥
जा का मनु होइ सगल की रीना ॥
हरि हरि नामु तिनि घटि घटि चीना ॥
मन अपुने ते बुरा मिटाना ॥
पेखै सगल स्रिसटि साजना ॥
सूख दूख जन सम द्रिसटेता ॥
नानक पाप पुंन नही लेपा ॥६॥
निरधन कउ धनु तेरो नाउ ॥
निथावे कउ नाउ तेरा थाउ ॥
निमाने कउ प्रभ तेरो मानु ॥
सगल घटा कउ देवहु दानु ॥
करन करावनहार सुआमी ॥
सगल घटा के अंतरजामी ॥
अपनी गति मिति जानहु आपे ॥
आपन संगि आपि प्रभ राते ॥
तुम्हरी उसतति तुम ते होइ ॥
नानक अवरु न जानसि कोइ ॥७॥
सरब धरम महि स्रेसट धरमु ॥
हरि को नामु जपि निरमल करमु ॥
सगल क्रिआ महि ऊतम किरिआ ॥
साधसंगि दुरमति मलु हिरिआ ॥
सगल उदम महि उदमु भला ॥
हरि का नामु जपहु जीअ सदा ॥
सगल बानी महि अम्रित बानी ॥
हरि को जसु सुनि रसन बखानी ॥
सगल थान ते ओहु ऊतम थानु ॥
नानक जिह घटि वसै हरि नामु ॥८॥३॥
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