सुखमनी साहिब - १



असटपदी : १ -
(१)
गउड़ी सुखमनी मः
सलोकु
सतिगुर प्रसादि
आदि गुरए नमह
जुगादि गुरए नमह
सतिगुरए नमह
स्री गुरदेवए नमह ॥१॥
असटपदी
सिमरउ सिमरि सिमरि सुखु पावउ
कलि कलेस तन माहि मिटावउ
सिमरउ जासु बिसु्मभर एकै
नामु जपत अगनत अनेकै
बेद पुरान सिम्रिति सुधाख्यर
कीने राम नाम इक आख्यर
किनका एक जिसु जीअ बसावै
ता की महिमा गनी आवै
कांखी एकै दरस तुहारो
नानक उन संगि मोहि उधारो ॥१॥
सुखमनी सुख अम्रित प्रभ नामु
भगत जना कै मनि बिस्राम रहाउ
प्रभ कै सिमरनि गरभि बसै
प्रभ कै सिमरनि दूखु जमु नसै
प्रभ कै सिमरनि कालु परहरै
प्रभ कै सिमरनि दुसमनु टरै
प्रभ सिमरत कछु बिघनु लागै
प्रभ कै सिमरनि अनदिनु जागै
प्रभ कै सिमरनि भउ बिआपै
प्रभ कै सिमरनि दुखु संतापै
प्रभ का सिमरनु साध कै संगि
सरब निधान नानक हरि रंगि ॥२॥
प्रभ कै सिमरनि रिधि सिधि नउ निधि
प्रभ कै सिमरनि गिआनु धिआनु ततु बुधि
प्रभ कै सिमरनि जप तप पूजा
प्रभ कै सिमरनि बिनसै दूजा
प्रभ कै सिमरनि तीरथ इसनानी
प्रभ कै सिमरनि दरगह मानी
प्रभ कै सिमरनि होइ सु भला
प्रभ कै सिमरनि सुफल फला
से सिमरहि जिन आपि सिमराए
नानक ता कै लागउ पाए ॥३॥
प्रभ का सिमरनु सभ ते ऊचा
प्रभ कै सिमरनि उधरे मूचा
प्रभ कै सिमरनि त्रिसना बुझै
प्रभ कै सिमरनि सभु किछु सुझै
प्रभ कै सिमरनि नाही जम त्रासा
प्रभ कै सिमरनि पूरन आसा
प्रभ कै सिमरनि मन की मलु जाइ
अम्रित नामु रिद माहि समाइ
प्रभ जी बसहि साध की रसना
नानक जन का दासनि दसना ॥४॥
प्रभ कउ सिमरहि से धनवंते
प्रभ कउ सिमरहि से पतिवंते
प्रभ कउ सिमरहि से जन परवान
प्रभ कउ सिमरहि से पुरख प्रधान
प्रभ कउ सिमरहि सि बेमुहताजे
प्रभ कउ सिमरहि सि सरब के राजे
प्रभ कउ सिमरहि से सुखवासी
प्रभ कउ सिमरहि सदा अबिनासी
सिमरन ते लागे जिन आपि दइआला
नानक जन की मंगै रवाला ॥५॥
प्रभ कउ सिमरहि से परउपकारी
प्रभ कउ सिमरहि तिन सद बलिहारी
प्रभ कउ सिमरहि से मुख सुहावे
प्रभ कउ सिमरहि तिन सूखि बिहावै
प्रभ कउ सिमरहि तिन आतमु जीता
प्रभ कउ सिमरहि तिन निरमल रीता
प्रभ कउ सिमरहि तिन अनद घनेरे
प्रभ कउ सिमरहि बसहि हरि नेरे
संत क्रिपा ते अनदिनु जागि
नानक सिमरनु पूरै भागि ॥६॥
प्रभ कै सिमरनि कारज पूरे
प्रभ कै सिमरनि कबहु झूरे
प्रभ कै सिमरनि हरि गुन बानी
प्रभ कै सिमरनि सहजि समानी
प्रभ कै सिमरनि निहचल आसनु
प्रभ कै सिमरनि कमल बिगासनु
प्रभ कै सिमरनि अनहद झुनकार
सुखु प्रभ सिमरन का अंतु पार
सिमरहि से जन जिन कउ प्रभ मइआ
नानक तिन जन सरनी पइआ ॥७॥
हरि सिमरनु करि भगत प्रगटाए
हरि सिमरनि लगि बेद उपाए
हरि सिमरनि भए सिध जती दाते
हरि सिमरनि नीच चहु कुंट जाते
हरि सिमरनि धारी सभ धरना
सिमरि सिमरि हरि कारन करना
हरि सिमरनि कीओ सगल अकारा
हरि सिमरन महि आपि निरंकारा
करि किरपा जिसु आपि बुझाइआ
नानक गुरमुखि हरि सिमरनु तिनि पाइआ ॥८॥१॥
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(२)
सलोकु
दीन दरद दुख भंजना घटि घटि नाथ अनाथ
सरणि तुम्हारी आइओ नानक के प्रभ साथ ॥१॥
असटपदी
जह मात पिता सुत मीत भाई
मन ऊहा नामु तेरै संगि सहाई
जह महा भइआन दूत जम दलै
तह केवल नामु संगि तेरै चलै
जह मुसकल होवै अति भारी
हरि को नामु खिन माहि उधारी
अनिक पुनहचरन करत नही तरै
हरि को नामु कोटि पाप परहरै
गुरमुखि नामु जपहु मन मेरे
नानक पावहु सूख घनेरे ॥१॥
सगल स्रिसटि को राजा दुखीआ
हरि का नामु जपत होइ सुखीआ
लाख करोरी बंधु परै
हरि का नामु जपत निसतरै
अनिक माइआ रंग तिख बुझावै
हरि का नामु जपत आघावै
जिह मारगि इहु जात इकेला
तह हरि नामु संगि होत सुहेला
ऐसा नामु मन सदा धिआईऐ
नानक गुरमुखि परम गति पाईऐ ॥२॥
छूटत नही कोटि लख बाही
नामु जपत तह पारि पराही
अनिक बिघन जह आइ संघारै
हरि का नामु ततकाल उधारै
अनिक जोनि जनमै मरि जाम
नामु जपत पावै बिस्राम
हउ मैला मलु कबहु धोवै
हरि का नामु कोटि पाप खोवै
ऐसा नामु जपहु मन रंगि
नानक पाईऐ साध कै संगि ॥३॥
जिह मारग के गने जाहि कोसा
हरि का नामु ऊहा संगि तोसा
जिह पैडै महा अंध गुबारा
हरि का नामु संगि उजीआरा
जहा पंथि तेरा को सिञानू
हरि का नामु तह नालि पछानू
जह महा भइआन तपति बहु घाम
तह हरि के नाम की तुम ऊपरि छाम
जहा त्रिखा मन तुझु आकरखै
तह नानक हरि हरि अम्रितु बरखै ॥४॥
भगत जना की बरतनि नामु
संत जना कै मनि बिस्रामु
हरि का नामु दास की ओट
हरि कै नामि उधरे जन कोटि
हरि जसु करत संत दिनु राति
हरि हरि अउखधु साध कमाति
हरि जन कै हरि नामु निधानु
पारब्रहमि जन कीनो दान
मन तन रंगि रते रंग एकै
नानक जन कै बिरति बिबेकै ॥५॥
हरि का नामु जन कउ मुकति जुगति
हरि कै नामि जन कउ त्रिपति भुगति
हरि का नामु जन का रूप रंगु
हरि नामु जपत कब परै भंगु
हरि का नामु जन की वडिआई
हरि कै नामि जन सोभा पाई
हरि का नामु जन कउ भोग जोग
हरि नामु जपत कछु नाहि बिओगु
जनु राता हरि नाम की सेवा
नानक पूजै हरि हरि देवा ॥६॥
हरि हरि जन कै मालु खजीना
हरि धनु जन कउ आपि प्रभि दीना
हरि हरि जन कै ओट सताणी
हरि प्रतापि जन अवर जाणी
ओति पोति जन हरि रसि राते
सुंन समाधि नाम रस माते
आठ पहर जनु हरि हरि जपै
हरि का भगतु प्रगट नही छपै
हरि की भगति मुकति बहु करे
नानक जन संगि केते तरे ॥७॥
पारजातु इहु हरि को नाम
कामधेन हरि हरि गुण गाम
सभ ते ऊतम हरि की कथा
नामु सुनत दरद दुख लथा
नाम की महिमा संत रिद वसै
संत प्रतापि दुरतु सभु नसै
संत का संगु वडभागी पाईऐ
संत की सेवा नामु धिआईऐ
नाम तुलि कछु अवरु होइ
नानक गुरमुखि नामु पावै जनु कोइ ॥८॥२॥
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(३)
सलोकु
बहु सासत्र बहु सिम्रिती पेखे सरब ढढोलि
पूजसि नाही हरि हरे नानक नाम अमोल ॥१॥
असटपदी
जाप ताप गिआन सभि धिआन
खट सासत्र सिम्रिति वखिआन
जोग अभिआस करम ध्रम किरिआ
सगल तिआगि बन मधे फिरिआ
अनिक प्रकार कीए बहु जतना
पुंन दान होमे बहु रतना
सरीरु कटाइ होमै करि राती
वरत नेम करै बहु भाती
नही तुलि राम नाम बीचार
नानक गुरमुखि नामु जपीऐ इक बार ॥१॥
नउ खंड प्रिथमी फिरै चिरु जीवै
महा उदासु तपीसरु थीवै
अगनि माहि होमत परान
कनिक अस्व हैवर भूमि दान
निउली करम करै बहु आसन
जैन मारग संजम अति साधन
निमख निमख करि सरीरु कटावै
तउ भी हउमै मैलु जावै
हरि के नाम समसरि कछु नाहि
नानक गुरमुखि नामु जपत गति पाहि ॥२॥
मन कामना तीरथ देह छुटै
गरबु गुमानु मन ते हुटै
सोच करै दिनसु अरु राति
मन की मैलु तन ते जाति
इसु देही कउ बहु साधना करै
मन ते कबहू बिखिआ टरै
जलि धोवै बहु देह अनीति
सुध कहा होइ काची भीति
मन हरि के नाम की महिमा ऊच
नानक नामि उधरे पतित बहु मूच ॥३॥
बहुतु सिआणप जम का भउ बिआपै
अनिक जतन करि त्रिसन ना ध्रापै
भेख अनेक अगनि नही बुझै
कोटि उपाव दरगह नही सिझै
छूटसि नाही ऊभ पइआलि
मोहि बिआपहि माइआ जालि
अवर करतूति सगली जमु डानै
गोविंद भजन बिनु तिलु नही मानै
हरि का नामु जपत दुखु जाइ
नानक बोलै सहजि सुभाइ ॥४॥
चारि पदारथ जे को मागै
साध जना की सेवा लागै
जे को आपुना दूखु मिटावै
हरि हरि नामु रिदै सद गावै
जे को अपुनी सोभा लोरै
साधसंगि इह हउमै छोरै
जे को जनम मरण ते डरै
साध जना की सरनी परै
जिसु जन कउ प्रभ दरस पिआसा
नानक ता कै बलि बलि जासा ॥५॥
सगल पुरख महि पुरखु प्रधानु
साधसंगि जा का मिटै अभिमानु
आपस कउ जो जाणै नीचा
सोऊ गनीऐ सभ ते ऊचा
जा का मनु होइ सगल की रीना
हरि हरि नामु तिनि घटि घटि चीना
मन अपुने ते बुरा मिटाना
पेखै सगल स्रिसटि साजना
सूख दूख जन सम द्रिसटेता
नानक पाप पुंन नही लेपा ॥६॥
निरधन कउ धनु तेरो नाउ
निथावे कउ नाउ तेरा थाउ
निमाने कउ प्रभ तेरो मानु
सगल घटा कउ देवहु दानु
करन करावनहार सुआमी
सगल घटा के अंतरजामी
अपनी गति मिति जानहु आपे
आपन संगि आपि प्रभ राते
तुम्हरी उसतति तुम ते होइ
नानक अवरु जानसि कोइ ॥७॥
सरब धरम महि स्रेसट धरमु
हरि को नामु जपि निरमल करमु
सगल क्रिआ महि ऊतम किरिआ
साधसंगि दुरमति मलु हिरिआ
सगल उदम महि उदमु भला
हरि का नामु जपहु जीअ सदा
सगल बानी महि अम्रित बानी
हरि को जसु सुनि रसन बखानी
सगल थान ते ओहु ऊतम थानु
नानक जिह घटि वसै हरि नामु ॥८॥३॥
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