असटपदी : १० - १२
(१०)
सलोकु ॥
उसतति करहि अनेक जन अंतु न पारावार ॥
नानक रचना प्रभि रची बहु बिधि अनिक प्रकार ॥१॥
असटपदी ॥
कई कोटि होए पूजारी ॥
कई कोटि आचार बिउहारी ॥
कई कोटि भए तीरथ वासी ॥
कई कोटि बन भ्रमहि उदासी ॥
कई कोटि बेद के स्रोते ॥
कई कोटि तपीसुर होते ॥
कई कोटि आतम धिआनु धारहि ॥
कई कोटि कबि काबि बीचारहि ॥
कई कोटि नवतन नाम धिआवहि ॥
नानक करते का अंतु न पावहि ॥१॥
कई कोटि भए अभिमानी ॥
कई कोटि अंध अगिआनी ॥
कई कोटि किरपन कठोर ॥
कई कोटि अभिग आतम निकोर ॥
कई कोटि पर दरब कउ हिरहि ॥
कई कोटि पर दूखना करहि ॥
कई कोटि माइआ स्रम माहि ॥
कई कोटि परदेस भ्रमाहि ॥
जितु जितु लावहु तितु तितु लगना ॥
नानक करते की जानै करता रचना ॥२॥
कई कोटि सिध जती जोगी ॥
कई कोटि राजे रस भोगी ॥
कई कोटि पंखी सरप उपाए ॥
कई कोटि पाथर बिरख निपजाए ॥
कई कोटि पवण पाणी बैसंतर ॥
कई कोटि देस भू मंडल ॥
कई कोटि ससीअर सूर नख्यत्र ॥
कई कोटि देव दानव इंद्र सिरि छत्र ॥
सगल समग्री अपनै सूति धारै ॥
नानक जिसु जिसु भावै तिसु तिसु निसतारै ॥३॥
कई कोटि राजस तामस सातक ॥
कई कोटि बेद पुरान सिम्रिति अरु सासत ॥
कई कोटि कीए रतन समुद ॥
कई कोटि नाना प्रकार जंत ॥
कई कोटि कीए चिर जीवे ॥
कई कोटि गिरी मेर सुवरन थीवे ॥
कई कोटि जख्य किंनर पिसाच ॥
कई कोटि भूत प्रेत सूकर म्रिगाच ॥
सभ ते नेरै सभहू ते दूरि ॥
नानक आपि अलिपतु रहिआ भरपूरि ॥४॥
कई कोटि पाताल के वासी ॥
कई कोटि नरक सुरग निवासी ॥
कई कोटि जनमहि जीवहि मरहि ॥
कई कोटि बहु जोनी फिरहि ॥
कई कोटि बैठत ही खाहि ॥
कई कोटि घालहि थकि पाहि ॥
कई कोटि कीए धनवंत ॥
कई कोटि माइआ महि चिंत ॥
जह जह भाणा तह तह राखे ॥
नानक सभु किछु प्रभ कै हाथे ॥५॥
कई कोटि भए बैरागी ॥
राम नाम संगि तिनि लिव लागी ॥
कई कोटि प्रभ कउ खोजंते ॥
आतम महि पारब्रहमु लहंते ॥
कई कोटि दरसन प्रभ पिआस ॥
तिन कउ मिलिओ प्रभु अबिनास ॥
कई कोटि मागहि सतसंगु ॥
पारब्रहम तिन लागा रंगु ॥
जिन कउ होए आपि सुप्रसंन ॥
नानक ते जन सदा धनि धंनि ॥६॥
कई कोटि खाणी अरु खंड ॥
कई कोटि अकास ब्रहमंड ॥
कई कोटि होए अवतार ॥
कई जुगति कीनो बिसथार ॥
कई बार पसरिओ पासार ॥
सदा सदा इकु एकंकार ॥
कई कोटि कीने बहु भाति ॥
प्रभ ते होए प्रभ माहि समाति ॥
ता का अंतु न जानै कोइ ॥
आपे आपि नानक प्रभु सोइ ॥७॥
कई कोटि पारब्रहम के दास ॥
तिन होवत आतम परगास ॥
कई कोटि तत के बेते ॥
सदा निहारहि एको नेत्रे ॥
कई कोटि नाम रसु पीवहि ॥
अमर भए सद सद ही जीवहि ॥
कई कोटि नाम गुन गावहि ॥
आतम रसि सुखि सहजि समावहि ॥
अपुने जन कउ सासि सासि समारे ॥
नानक ओइ परमेसुर के पिआरे ॥८॥१०॥
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
(११)
सलोकु ॥
करण कारण प्रभु एकु है दूसर नाही कोइ ॥
नानक तिसु बलिहारणै जलि थलि महीअलि सोइ ॥१॥
असटपदी ॥
करन करावन करनै जोगु ॥
जो तिसु भावै सोई होगु ॥
खिन महि थापि उथापनहारा ॥
अंतु नही किछु पारावारा ॥
हुकमे धारि अधर रहावै ॥
हुकमे उपजै हुकमि समावै ॥
हुकमे ऊच नीच बिउहार ॥
हुकमे अनिक रंग परकार ॥
करि करि देखै अपनी वडिआई ॥
नानक सभ महि रहिआ समाई ॥१॥
प्रभ भावै मानुख गति पावै ॥
प्रभ भावै ता पाथर तरावै ॥
प्रभ भावै बिनु सास ते राखै ॥
प्रभ भावै ता हरि गुण भाखै ॥
प्रभ भावै ता पतित उधारै ॥
आपि करै आपन बीचारै ॥
दुहा सिरिआ का आपि सुआमी ॥
खेलै बिगसै अंतरजामी ॥
जो भावै सो कार करावै ॥
नानक द्रिसटी अवरु न आवै ॥२॥
कहु मानुख ते किआ होइ आवै ॥
जो तिसु भावै सोई करावै ॥
इस कै हाथि होइ ता सभु किछु लेइ ॥
जो तिसु भावै सोई करेइ ॥
अनजानत बिखिआ महि रचै ॥
जे जानत आपन आप बचै ॥
भरमे भूला दह दिसि धावै ॥
निमख माहि चारि कुंट फिरि आवै ॥
करि किरपा जिसु अपनी भगति देइ ॥
नानक ते जन नामि मिलेइ ॥३॥
खिन महि नीच कीट कउ राज ॥
पारब्रहम गरीब निवाज ॥
जा का द्रिसटि कछू न आवै ॥
तिसु ततकाल दह दिस प्रगटावै ॥
जा कउ अपुनी करै बखसीस ॥
ता का लेखा न गनै जगदीस ॥
जीउ पिंडु सभ तिस की रासि ॥
घटि घटि पूरन ब्रहम प्रगास ॥
अपनी बणत आपि बनाई ॥
नानक जीवै देखि बडाई ॥४॥
इस का बलु नाही इसु हाथ ॥
करन करावन सरब को नाथ ॥
आगिआकारी बपुरा जीउ ॥
जो तिसु भावै सोई फुनि थीउ ॥
कबहू ऊच नीच महि बसै ॥
कबहू सोग हरख रंगि हसै ॥
कबहू निंद चिंद बिउहार ॥
कबहू ऊभ अकास पइआल ॥
कबहू बेता ब्रहम बीचार ॥
नानक आपि मिलावणहार ॥५॥
कबहू निरति करै बहु भाति ॥
कबहू सोइ रहै दिनु राति ॥
कबहू महा क्रोध बिकराल ॥
कबहूं सरब की होत रवाल ॥
कबहू होइ बहै बड राजा ॥
कबहु भेखारी नीच का साजा ॥
कबहू अपकीरति महि आवै ॥
कबहू भला भला कहावै ॥
जिउ प्रभु राखै तिव ही रहै ॥
गुर प्रसादि नानक सचु कहै ॥६॥
कबहू होइ पंडितु करे बख्यानु ॥
कबहू मोनिधारी लावै धिआनु ॥
कबहू तट तीरथ इसनान ॥
कबहू सिध साधिक मुखि गिआन ॥
कबहू कीट हसति पतंग होइ जीआ ॥
अनिक जोनि भरमै भरमीआ ॥
नाना रूप जिउ स्वागी दिखावै ॥
जिउ प्रभ भावै तिवै नचावै ॥
जो तिसु भावै सोई होइ ॥
नानक दूजा अवरु न कोइ ॥७॥
कबहू साधसंगति इहु पावै ॥
उसु असथान ते बहुरि न आवै ॥
अंतरि होइ गिआन परगासु ॥
उसु असथान का नही बिनासु ॥
मन तन नामि रते इक रंगि ॥
सदा बसहि पारब्रहम कै संगि ॥
जिउ जल महि जलु आइ खटाना ॥
तिउ जोती संगि जोति समाना ॥
मिटि गए गवन पाए बिस्राम ॥
नानक प्रभ कै सद कुरबान ॥८॥११॥
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
(१२)
सलोकु ॥
सुखी बसै मसकीनीआ आपु निवारि तले ॥
बडे बडे अहंकारीआ नानक गरबि गले ॥१॥
असटपदी ॥
जिस कै अंतरि राज अभिमानु ॥
सो नरकपाती होवत सुआनु ॥
जो जानै मै जोबनवंतु ॥
सो होवत बिसटा का जंतु ॥
आपस कउ करमवंतु कहावै ॥
जनमि मरै बहु जोनि भ्रमावै ॥
धन भूमि का जो करै गुमानु ॥
सो मूरखु अंधा अगिआनु ॥
करि किरपा जिस कै हिरदै गरीबी बसावै ॥
नानक ईहा मुकतु आगै सुखु पावै ॥१॥
धनवंता होइ करि गरबावै ॥
त्रिण समानि कछु संगि न जावै ॥
बहु लसकर मानुख ऊपरि करे आस ॥
पल भीतरि ता का होइ बिनास ॥
सभ ते आप जानै बलवंतु ॥
खिन महि होइ जाइ भसमंतु ॥
किसै न बदै आपि अहंकारी ॥
धरम राइ तिसु करे खुआरी ॥
गुर प्रसादि जा का मिटै अभिमानु ॥
सो जनु नानक दरगह परवानु ॥२॥
कोटि करम करै हउ धारे ॥
स्रमु पावै सगले बिरथारे ॥
अनिक तपसिआ करे अहंकार ॥
नरक सुरग फिरि फिरि अवतार ॥
अनिक जतन करि आतम नही द्रवै ॥
हरि दरगह कहु कैसे गवै ॥
आपस कउ जो भला कहावै ॥
तिसहि भलाई निकटि न आवै ॥
सरब की रेन जा का मनु होइ ॥
कहु नानक ता की निरमल सोइ ॥३॥
जब लगु जानै मुझ ते कछु होइ ॥
तब इस कउ सुखु नाही कोइ ॥
जब इह जानै मै किछु करता ॥
तब लगु गरभ जोनि महि फिरता ॥
जब धारै कोऊ बैरी मीतु ॥
तब लगु निहचलु नाही चीतु ॥
जब लगु मोह मगन संगि माइ ॥
तब लगु धरम राइ देइ सजाइ ॥
प्रभ किरपा ते बंधन तूटै ॥
गुर प्रसादि नानक हउ छूटै ॥४॥
सहस खटे लख कउ उठि धावै ॥
त्रिपति न आवै माइआ पाछै पावै ॥
अनिक भोग बिखिआ के करै ॥
नह त्रिपतावै खपि खपि मरै ॥
बिना संतोख नही कोऊ राजै ॥
सुपन मनोरथ ब्रिथे सभ काजै ॥
नाम रंगि सरब सुखु होइ ॥
बडभागी किसै परापति होइ ॥
करन करावन आपे आपि ॥
सदा सदा नानक हरि जापि ॥५॥
करन करावन करनैहारु ॥
इस कै हाथि कहा बीचारु ॥
जैसी द्रिसटि करे तैसा होइ ॥
आपे आपि आपि प्रभु सोइ ॥
जो किछु कीनो सु अपनै रंगि ॥
सभ ते दूरि सभहू कै संगि ॥
बूझै देखै करै बिबेक ॥
आपहि एक आपहि अनेक ॥
मरै न बिनसै आवै न जाइ ॥
नानक सद ही रहिआ समाइ ॥६॥
आपि उपदेसै समझै आपि ॥
आपे रचिआ सभ कै साथि ॥
आपि कीनो आपन बिसथारु ॥
सभु कछु उस का ओहु करनैहारु ॥
उस ते भिंन कहहु किछु होइ ॥
थान थनंतरि एकै सोइ ॥
अपुने चलित आपि करणैहार ॥
कउतक करै रंग आपार ॥
मन महि आपि मन अपुने माहि ॥
नानक कीमति कहनु न जाइ ॥७॥
सति सति सति प्रभु सुआमी ॥
गुर परसादि किनै वखिआनी ॥
सचु सचु सचु सभु कीना ॥
कोटि मधे किनै बिरलै चीना ॥
भला भला भला तेरा रूप ॥
अति सुंदर अपार अनूप ॥
निरमल निरमल निरमल तेरी बाणी ॥
घटि घटि सुनी स्रवन बख्याणी ॥
पवित्र पवित्र पवित्र पुनीत ॥
नामु जपै नानक मनि प्रीति ॥८॥१२॥
No comments:
Post a Comment