सुखमनी साहिब – ४



असटपदी : १० - १२ 
(१०)
सलोकु
उसतति करहि अनेक जन अंतु पारावार
नानक रचना प्रभि रची बहु बिधि अनिक प्रकार ॥१॥
असटपदी
कई कोटि होए पूजारी
कई कोटि आचार बिउहारी
कई कोटि भए तीरथ वासी
कई कोटि बन भ्रमहि उदासी
कई कोटि बेद के स्रोते
कई कोटि तपीसुर होते
कई कोटि आतम धिआनु धारहि
कई कोटि कबि काबि बीचारहि
कई कोटि नवतन नाम धिआवहि
नानक करते का अंतु पावहि ॥१॥
कई कोटि भए अभिमानी
कई कोटि अंध अगिआनी
कई कोटि किरपन कठोर
कई कोटि अभिग आतम निकोर
कई कोटि पर दरब कउ हिरहि
कई कोटि पर दूखना करहि
कई कोटि माइआ स्रम माहि
कई कोटि परदेस भ्रमाहि
जितु जितु लावहु तितु तितु लगना
नानक करते की जानै करता रचना ॥२॥
कई कोटि सिध जती जोगी
कई कोटि राजे रस भोगी
कई कोटि पंखी सरप उपाए
कई कोटि पाथर बिरख निपजाए
कई कोटि पवण पाणी बैसंतर
कई कोटि देस भू मंडल
कई कोटि ससीअर सूर नख्यत्र
कई कोटि देव दानव इंद्र सिरि छत्र
सगल समग्री अपनै सूति धारै
नानक जिसु जिसु भावै तिसु तिसु निसतारै ॥३॥
कई कोटि राजस तामस सातक
कई कोटि बेद पुरान सिम्रिति अरु सासत
कई कोटि कीए रतन समुद
कई कोटि नाना प्रकार जंत
कई कोटि कीए चिर जीवे
कई कोटि गिरी मेर सुवरन थीवे
कई कोटि जख्य किंनर पिसाच
कई कोटि भूत प्रेत सूकर म्रिगाच
सभ ते नेरै सभहू ते दूरि
नानक आपि अलिपतु रहिआ भरपूरि ॥४॥
कई कोटि पाताल के वासी
कई कोटि नरक सुरग निवासी
कई कोटि जनमहि जीवहि मरहि
कई कोटि बहु जोनी फिरहि
कई कोटि बैठत ही खाहि
कई कोटि घालहि थकि पाहि
कई कोटि कीए धनवंत
कई कोटि माइआ महि चिंत
जह जह भाणा तह तह राखे
नानक सभु किछु प्रभ कै हाथे ॥५॥
कई कोटि भए बैरागी
राम नाम संगि तिनि लिव लागी
कई कोटि प्रभ कउ खोजंते
आतम महि पारब्रहमु लहंते
कई कोटि दरसन प्रभ पिआस
तिन कउ मिलिओ प्रभु अबिनास
कई कोटि मागहि सतसंगु
पारब्रहम तिन लागा रंगु
जिन कउ होए आपि सुप्रसंन
नानक ते जन सदा धनि धंनि ॥६॥
कई कोटि खाणी अरु खंड
कई कोटि अकास ब्रहमंड
कई कोटि होए अवतार
कई जुगति कीनो बिसथार
कई बार पसरिओ पासार
सदा सदा इकु एकंकार
कई कोटि कीने बहु भाति
प्रभ ते होए प्रभ माहि समाति
ता का अंतु जानै कोइ
आपे आपि नानक प्रभु सोइ ॥७॥
कई कोटि पारब्रहम के दास
तिन होवत आतम परगास
कई कोटि तत के बेते
सदा निहारहि एको नेत्रे
कई कोटि नाम रसु पीवहि
अमर भए सद सद ही जीवहि
कई कोटि नाम गुन गावहि
आतम रसि सुखि सहजि समावहि
अपुने जन कउ सासि सासि समारे
नानक ओइ परमेसुर के पिआरे ॥८॥१०॥

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(११)
सलोकु
करण कारण प्रभु एकु है दूसर नाही कोइ
नानक तिसु बलिहारणै जलि थलि महीअलि सोइ ॥१॥
असटपदी
करन करावन करनै जोगु
जो तिसु भावै सोई होगु
खिन महि थापि उथापनहारा
अंतु नही किछु पारावारा
हुकमे धारि अधर रहावै
हुकमे उपजै हुकमि समावै
हुकमे ऊच नीच बिउहार
हुकमे अनिक रंग परकार
करि करि देखै अपनी वडिआई
नानक सभ महि रहिआ समाई ॥१॥
प्रभ भावै मानुख गति पावै
प्रभ भावै ता पाथर तरावै
प्रभ भावै बिनु सास ते राखै
प्रभ भावै ता हरि गुण भाखै
प्रभ भावै ता पतित उधारै
आपि करै आपन बीचारै
दुहा सिरिआ का आपि सुआमी
खेलै बिगसै अंतरजामी
जो भावै सो कार करावै
नानक द्रिसटी अवरु आवै ॥२॥
कहु मानुख ते किआ होइ आवै
जो तिसु भावै सोई करावै
इस कै हाथि होइ ता सभु किछु लेइ
जो तिसु भावै सोई करेइ
अनजानत बिखिआ महि रचै
जे जानत आपन आप बचै
भरमे भूला दह दिसि धावै
निमख माहि चारि कुंट फिरि आवै
करि किरपा जिसु अपनी भगति देइ
नानक ते जन नामि मिलेइ ॥३॥
खिन महि नीच कीट कउ राज
पारब्रहम गरीब निवाज
जा का द्रिसटि कछू आवै
तिसु ततकाल दह दिस प्रगटावै
जा कउ अपुनी करै बखसीस
ता का लेखा गनै जगदीस
जीउ पिंडु सभ तिस की रासि
घटि घटि पूरन ब्रहम प्रगास
अपनी बणत आपि बनाई
नानक जीवै देखि बडाई ॥४॥
इस का बलु नाही इसु हाथ
करन करावन सरब को नाथ
आगिआकारी बपुरा जीउ
जो तिसु भावै सोई फुनि थीउ
कबहू ऊच नीच महि बसै
कबहू सोग हरख रंगि हसै
कबहू निंद चिंद बिउहार
कबहू ऊभ अकास पइआल
कबहू बेता ब्रहम बीचार
नानक आपि मिलावणहार ॥५॥
कबहू निरति करै बहु भाति
कबहू सोइ रहै दिनु राति
कबहू महा क्रोध बिकराल
कबहूं सरब की होत रवाल
कबहू होइ बहै बड राजा
कबहु भेखारी नीच का साजा
कबहू अपकीरति महि आवै
कबहू भला भला कहावै
जिउ प्रभु राखै तिव ही रहै
गुर प्रसादि नानक सचु कहै ॥६॥
कबहू होइ पंडितु करे बख्यानु
कबहू मोनिधारी लावै धिआनु
कबहू तट तीरथ इसनान
कबहू सिध साधिक मुखि गिआन
कबहू कीट हसति पतंग होइ जीआ
अनिक जोनि भरमै भरमीआ
नाना रूप जिउ स्वागी दिखावै
जिउ प्रभ भावै तिवै नचावै
जो तिसु भावै सोई होइ
नानक दूजा अवरु कोइ ॥७॥
कबहू साधसंगति इहु पावै
उसु असथान ते बहुरि आवै
अंतरि होइ गिआन परगासु
उसु असथान का नही बिनासु
मन तन नामि रते इक रंगि
सदा बसहि पारब्रहम कै संगि
जिउ जल महि जलु आइ खटाना
तिउ जोती संगि जोति समाना
मिटि गए गवन पाए बिस्राम
नानक प्रभ कै सद कुरबान ॥८॥११॥

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(१२)
सलोकु
सुखी बसै मसकीनीआ आपु निवारि तले
बडे बडे अहंकारीआ नानक गरबि गले ॥१॥
असटपदी
जिस कै अंतरि राज अभिमानु
सो नरकपाती होवत सुआनु
जो जानै मै जोबनवंतु
सो होवत बिसटा का जंतु
आपस कउ करमवंतु कहावै
जनमि मरै बहु जोनि भ्रमावै
धन भूमि का जो करै गुमानु
सो मूरखु अंधा अगिआनु
करि किरपा जिस कै हिरदै गरीबी बसावै
नानक ईहा मुकतु आगै सुखु पावै ॥१॥
धनवंता होइ करि गरबावै
त्रिण समानि कछु संगि जावै
बहु लसकर मानुख ऊपरि करे आस
पल भीतरि ता का होइ बिनास
सभ ते आप जानै बलवंतु
खिन महि होइ जाइ भसमंतु
किसै बदै आपि अहंकारी
धरम राइ तिसु करे खुआरी
गुर प्रसादि जा का मिटै अभिमानु
सो जनु नानक दरगह परवानु ॥२॥
कोटि करम करै हउ धारे
स्रमु पावै सगले बिरथारे
अनिक तपसिआ करे अहंकार
नरक सुरग फिरि फिरि अवतार
अनिक जतन करि आतम नही द्रवै
हरि दरगह कहु कैसे गवै
आपस कउ जो भला कहावै
तिसहि भलाई निकटि आवै
सरब की रेन जा का मनु होइ
कहु नानक ता की निरमल सोइ ॥३॥
जब लगु जानै मुझ ते कछु होइ
तब इस कउ सुखु नाही कोइ
जब इह जानै मै किछु करता
तब लगु गरभ जोनि महि फिरता
जब धारै कोऊ बैरी मीतु
तब लगु निहचलु नाही चीतु
जब लगु मोह मगन संगि माइ
तब लगु धरम राइ देइ सजाइ
प्रभ किरपा ते बंधन तूटै
गुर प्रसादि नानक हउ छूटै ॥४॥
सहस खटे लख कउ उठि धावै
त्रिपति आवै माइआ पाछै पावै
अनिक भोग बिखिआ के करै
नह त्रिपतावै खपि खपि मरै
बिना संतोख नही कोऊ राजै
सुपन मनोरथ ब्रिथे सभ काजै
नाम रंगि सरब सुखु होइ
बडभागी किसै परापति होइ
करन करावन आपे आपि
सदा सदा नानक हरि जापि ॥५॥
करन करावन करनैहारु
इस कै हाथि कहा बीचारु
जैसी द्रिसटि करे तैसा होइ
आपे आपि आपि प्रभु सोइ
जो किछु कीनो सु अपनै रंगि
सभ ते दूरि सभहू कै संगि
बूझै देखै करै बिबेक
आपहि एक आपहि अनेक
मरै बिनसै आवै जाइ
नानक सद ही रहिआ समाइ ॥६॥
आपि उपदेसै समझै आपि
आपे रचिआ सभ कै साथि
आपि कीनो आपन बिसथारु
सभु कछु उस का ओहु करनैहारु
उस ते भिंन कहहु किछु होइ
थान थनंतरि एकै सोइ
अपुने चलित आपि करणैहार
कउतक करै रंग आपार
मन महि आपि मन अपुने माहि
नानक कीमति कहनु जाइ ॥७॥
सति सति सति प्रभु सुआमी
गुर परसादि किनै वखिआनी
सचु सचु सचु सभु कीना
कोटि मधे किनै बिरलै चीना
भला भला भला तेरा रूप
अति सुंदर अपार अनूप
निरमल निरमल निरमल तेरी बाणी
घटि घटि सुनी स्रवन बख्याणी
पवित्र पवित्र पवित्र पुनीत
नामु जपै नानक मनि प्रीति ॥८॥१२॥

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