असटपदी : ७ - ९
(७)
सलोकु ॥
अगम अगाधि पारब्रहमु सोइ ॥
जो जो कहै सु मुकता होइ ॥
सुनि मीता नानकु बिनवंता ॥
साध जना की अचरज कथा ॥१॥
असटपदी ॥
साध कै संगि मुख ऊजल होत ॥
साधसंगि मलु सगली खोत ॥
साध कै संगि मिटै अभिमानु ॥
साध कै संगि प्रगटै सुगिआनु ॥
साध कै संगि बुझै प्रभु नेरा ॥
साधसंगि सभु होत निबेरा ॥
साध कै संगि पाए नाम रतनु ॥
साध कै संगि एक ऊपरि जतनु ॥
साध की महिमा बरनै कउनु प्रानी ॥
नानक साध की सोभा प्रभ माहि समानी ॥१॥
साध कै संगि अगोचरु मिलै ॥
साध कै संगि सदा परफुलै ॥
साध कै संगि आवहि बसि पंचा ॥
साधसंगि अम्रित रसु भुंचा ॥
साधसंगि होइ सभ की रेन ॥
साध कै संगि मनोहर बैन ॥
साध कै संगि न कतहूं धावै ॥
साधसंगि असथिति मनु पावै ॥
साध कै संगि माइआ ते भिंन ॥
साधसंगि नानक प्रभ सुप्रसंन ॥२॥
साधसंगि दुसमन सभि मीत ॥
साधू कै संगि महा पुनीत ॥
साधसंगि किस सिउ नही बैरु ॥
साध कै संगि न बीगा पैरु ॥
साध कै संगि नाही को मंदा ॥
साधसंगि जाने परमानंदा ॥
साध कै संगि नाही हउ तापु ॥
साध कै संगि तजै सभु आपु ॥
आपे जानै साध बडाई ॥
नानक साध प्रभू बनि आई ॥३॥
साध कै संगि न कबहू धावै ॥
साध कै संगि सदा सुखु पावै ॥
साधसंगि बसतु अगोचर लहै ॥
साधू कै संगि अजरु सहै ॥
साध कै संगि बसै थानि ऊचै ॥
साधू कै संगि महलि पहूचै ॥
साध कै संगि द्रिड़ै सभि धरम ॥
साध कै संगि केवल पारब्रहम ॥
साध कै संगि पाए नाम निधान ॥
नानक साधू कै कुरबान ॥४॥
साध कै संगि सभ कुल उधारै ॥
साधसंगि साजन मीत कुट्मब निसतारै ॥
साधू कै संगि सो धनु पावै ॥
जिसु धन ते सभु को वरसावै ॥
साधसंगि धरम राइ करे सेवा ॥
साध कै संगि सोभा सुरदेवा ॥
साधू कै संगि पाप पलाइन ॥
साधसंगि अम्रित गुन गाइन ॥
साध कै संगि स्रब थान गमि ॥
नानक साध कै संगि सफल जनम ॥५॥
साध कै संगि नही कछु घाल ॥
दरसनु भेटत होत निहाल ॥
साध कै संगि कलूखत हरै ॥
साध कै संगि नरक परहरै ॥
साध कै संगि ईहा ऊहा सुहेला ॥
साधसंगि बिछुरत हरि मेला ॥
जो इछै सोई फलु पावै ॥
साध कै संगि न बिरथा जावै ॥
पारब्रहमु साध रिद बसै ॥
नानक उधरै साध सुनि रसै ॥६॥
साध कै संगि सुनउ हरि नाउ ॥
साधसंगि हरि के गुन गाउ ॥
साध कै संगि न मन ते बिसरै ॥
साधसंगि सरपर निसतरै ॥
साध कै संगि लगै प्रभु मीठा ॥
साधू कै संगि घटि घटि डीठा ॥
साधसंगि भए आगिआकारी ॥
साधसंगि गति भई हमारी ॥
साध कै संगि मिटे सभि रोग ॥
नानक साध भेटे संजोग ॥७॥
साध की महिमा बेद न जानहि ॥
जेता सुनहि तेता बखिआनहि ॥
साध की उपमा तिहु गुण ते दूरि ॥
साध की उपमा रही भरपूरि ॥
साध की सोभा का नाही अंत ॥
साध की सोभा सदा बेअंत ॥
साध की सोभा ऊच ते ऊची ॥
साध की सोभा मूच ते मूची ॥
साध की सोभा साध बनि आई ॥
नानक साध प्रभ भेदु न भाई ॥८॥७॥
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(८)
सलोकु ॥
मनि साचा मुखि साचा सोइ ॥
अवरु न पेखै एकसु बिनु कोइ ॥
नानक इह लछण ब्रहम गिआनी होइ ॥१॥
असटपदी ॥
ब्रहम गिआनी सदा निरलेप ॥
जैसे जल महि कमल अलेप ॥
ब्रहम गिआनी सदा निरदोख ॥
जैसे सूरु सरब कउ सोख ॥
ब्रहम गिआनी कै द्रिसटि समानि ॥
जैसे राज रंक कउ लागै तुलि पवान ॥
ब्रहम गिआनी कै धीरजु एक ॥
जिउ बसुधा कोऊ खोदै कोऊ चंदन लेप ॥
ब्रहम गिआनी का इहै गुनाउ ॥
नानक जिउ पावक का सहज सुभाउ ॥१॥
ब्रहम गिआनी निरमल ते निरमला ॥
जैसे मैलु न लागै जला ॥
ब्रहम गिआनी कै मनि होइ प्रगासु ॥
जैसे धर ऊपरि आकासु ॥
ब्रहम गिआनी कै मित्र सत्रु समानि ॥
ब्रहम गिआनी कै नाही अभिमान ॥
ब्रहम गिआनी ऊच ते ऊचा ॥
मनि अपनै है सभ ते नीचा ॥
ब्रहम गिआनी से जन भए ॥
नानक जिन प्रभु आपि करेइ ॥२॥
ब्रहम गिआनी सगल की रीना ॥
आतम रसु ब्रहम गिआनी चीना ॥
ब्रहम गिआनी की सभ ऊपरि मइआ ॥
ब्रहम गिआनी ते कछु बुरा न भइआ ॥
ब्रहम गिआनी सदा समदरसी ॥
ब्रहम गिआनी की द्रिसटि अम्रितु बरसी ॥
ब्रहम गिआनी बंधन ते मुकता ॥
ब्रहम गिआनी की निरमल जुगता ॥
ब्रहम गिआनी का भोजनु गिआन ॥
नानक ब्रहम गिआनी का ब्रहम धिआनु ॥३॥
ब्रहम गिआनी एक ऊपरि आस ॥
ब्रहम गिआनी का नही बिनास ॥
ब्रहम गिआनी कै गरीबी समाहा ॥
ब्रहम गिआनी परउपकार उमाहा ॥
ब्रहम गिआनी कै नाही धंधा ॥
ब्रहम गिआनी ले धावतु बंधा ॥
ब्रहम गिआनी कै होइ सु भला ॥
ब्रहम गिआनी सुफल फला ॥
ब्रहम गिआनी संगि सगल उधारु ॥
नानक ब्रहम गिआनी जपै सगल संसारु ॥४॥
ब्रहम गिआनी कै एकै रंग ॥
ब्रहम गिआनी कै बसै प्रभु संग ॥
ब्रहम गिआनी कै नामु आधारु ॥
ब्रहम गिआनी कै नामु परवारु ॥
ब्रहम गिआनी सदा सद जागत ॥
ब्रहम गिआनी अह्मबुधि तिआगत ॥
ब्रहम गिआनी कै मनि परमानंद ॥
ब्रहम गिआनी कै घरि सदा अनंद ॥
ब्रहम गिआनी सुख सहज निवास ॥
नानक ब्रहम गिआनी का नही बिनास ॥५॥
ब्रहम गिआनी ब्रहम का बेता ॥
ब्रहम गिआनी एक संगि हेता ॥
ब्रहम गिआनी कै होइ अचिंत ॥
ब्रहम गिआनी का निरमल मंत ॥
ब्रहम गिआनी जिसु करै प्रभु आपि ॥
ब्रहम गिआनी का बड परताप ॥
ब्रहम गिआनी का दरसु बडभागी पाईऐ ॥
ब्रहम गिआनी कउ बलि बलि जाईऐ ॥
ब्रहम गिआनी कउ खोजहि महेसुर ॥
नानक ब्रहम गिआनी आपि परमेसुर ॥६॥
ब्रहम गिआनी की कीमति नाहि ॥
ब्रहम गिआनी कै सगल मन माहि ॥
ब्रहम गिआनी का कउन जानै भेदु ॥
ब्रहम गिआनी कउ सदा अदेसु ॥
ब्रहम गिआनी का कथिआ न जाइ अधाख्यरु ॥
ब्रहम गिआनी सरब का ठाकुरु ॥
ब्रहम गिआनी की मिति कउनु बखानै ॥
ब्रहम गिआनी की गति ब्रहम गिआनी जानै ॥
ब्रहम गिआनी का अंतु न पारु ॥
नानक ब्रहम गिआनी कउ सदा नमसकारु ॥७॥
ब्रहम गिआनी सभ स्रिसटि का करता ॥
ब्रहम गिआनी सद जीवै नही मरता ॥
ब्रहम गिआनी मुकति जुगति जीअ का दाता ॥
ब्रहम गिआनी पूरन पुरखु बिधाता ॥
ब्रहम गिआनी अनाथ का नाथु ॥
ब्रहम गिआनी का सभ ऊपरि हाथु ॥
ब्रहम गिआनी का सगल अकारु ॥
ब्रहम गिआनी आपि निरंकारु ॥
ब्रहम गिआनी की सोभा ब्रहम गिआनी बनी ॥
नानक ब्रहम गिआनी सरब का धनी ॥८॥८॥
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(९)
सलोकु ॥
उरि धारै जो अंतरि नामु ॥
सरब मै पेखै भगवानु ॥
निमख निमख ठाकुर नमसकारै ॥
नानक ओहु अपरसु सगल निसतारै ॥१॥
असटपदी ॥
मिथिआ नाही रसना परस ॥
मन महि प्रीति निरंजन दरस ॥
पर त्रिअ रूपु न पेखै नेत्र ॥
साध की टहल संतसंगि हेत ॥
करन न सुनै काहू की निंदा ॥
सभ ते जानै आपस कउ मंदा ॥
गुर प्रसादि बिखिआ परहरै ॥
मन की बासना मन ते टरै ॥
इंद्री जित पंच दोख ते रहत ॥
नानक कोटि मधे को ऐसा अपरस ॥१॥
बैसनो सो जिसु ऊपरि सुप्रसंन ॥
बिसन की माइआ ते होइ भिंन ॥
करम करत होवै निहकरम ॥
तिसु बैसनो का निरमल धरम ॥
काहू फल की इछा नही बाछै ॥
केवल भगति कीरतन संगि राचै ॥
मन तन अंतरि सिमरन गोपाल ॥
सभ ऊपरि होवत किरपाल ॥
आपि द्रिड़ै अवरह नामु जपावै ॥
नानक ओहु बैसनो परम गति पावै ॥२॥
भगउती भगवंत भगति का रंगु ॥
सगल तिआगै दुसट का संगु ॥
मन ते बिनसै सगला भरमु ॥
करि पूजै सगल पारब्रहमु ॥
साधसंगि पापा मलु खोवै ॥
तिसु भगउती की मति ऊतम होवै ॥
भगवंत की टहल करै नित नीति ॥
मनु तनु अरपै बिसन परीति ॥
हरि के चरन हिरदै बसावै ॥
नानक ऐसा भगउती भगवंत कउ पावै ॥३॥
सो पंडितु जो मनु परबोधै ॥
राम नामु आतम महि सोधै ॥
राम नाम सारु रसु पीवै ॥
उसु पंडित कै उपदेसि जगु जीवै ॥
हरि की कथा हिरदै बसावै ॥
सो पंडितु फिरि जोनि न आवै ॥
बेद पुरान सिम्रिति बूझै मूल ॥
सूखम महि जानै असथूलु ॥
चहु वरना कउ दे उपदेसु ॥
नानक उसु पंडित कउ सदा अदेसु ॥४॥
बीज मंत्रु सरब को गिआनु ॥
चहु वरना महि जपै कोऊ नामु ॥
जो जो जपै तिस की गति होइ ॥
साधसंगि पावै जनु कोइ ॥
करि किरपा अंतरि उर धारै ॥
पसु प्रेत मुघद पाथर कउ तारै ॥
सरब रोग का अउखदु नामु ॥
कलिआण रूप मंगल गुण गाम ॥
काहू जुगति कितै न पाईऐ धरमि ॥
नानक तिसु मिलै जिसु लिखिआ धुरि करमि ॥५॥
जिस कै मनि पारब्रहम का निवासु ॥
तिस का नामु सति रामदासु ॥
आतम रामु तिसु नदरी आइआ ॥
दास दसंतण भाइ तिनि पाइआ ॥
सदा निकटि निकटि हरि जानु ॥
सो दासु दरगह परवानु ॥
अपुने दास कउ आपि किरपा करै ॥
तिसु दास कउ सभ सोझी परै ॥
सगल संगि आतम उदासु ॥
ऐसी जुगति नानक रामदासु ॥६॥
प्रभ की आगिआ आतम हितावै ॥
जीवन मुकति सोऊ कहावै ॥
तैसा हरखु तैसा उसु सोगु ॥
सदा अनंदु तह नही बिओगु ॥
तैसा सुवरनु तैसी उसु माटी ॥
तैसा अम्रितु तैसी बिखु खाटी ॥
तैसा मानु तैसा अभिमानु ॥
तैसा रंकु तैसा राजानु ॥
जो वरताए साई जुगति ॥
नानक ओहु पुरखु कहीऐ जीवन मुकति ॥७॥
पारब्रहम के सगले ठाउ ॥
जितु जितु घरि राखै तैसा तिन नाउ ॥
आपे करन करावन जोगु ॥
प्रभ भावै सोई फुनि होगु ॥
पसरिओ आपि होइ अनत तरंग ॥
लखे न जाहि पारब्रहम के रंग ॥
जैसी मति देइ तैसा परगास ॥
पारब्रहमु करता अबिनास ॥
सदा सदा सदा दइआल ॥
सिमरि सिमरि नानक भए निहाल ॥८॥९॥
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