सुखमनी साहिब – ६




असटपदी : १६ - १८
(१६)
सलोकु
रूपु रेख रंगु किछु त्रिहु गुण ते प्रभ भिंन
तिसहि बुझाए नानका जिसु होवै सुप्रसंन ॥१॥
असटपदी
अबिनासी प्रभु मन महि राखु
मानुख की तू प्रीति तिआगु
तिस ते परै नाही किछु कोइ
सरब निरंतरि एको सोइ
आपे बीना आपे दाना
गहिर ग्मभीरु गहीरु सुजाना
पारब्रहम परमेसुर गोबिंद
क्रिपा निधान दइआल बखसंद
साध तेरे की चरनी पाउ
नानक कै मनि इहु अनराउ ॥१॥
मनसा पूरन सरना जोग
जो करि पाइआ सोई होगु
हरन भरन जा का नेत्र फोरु
तिस का मंत्रु जानै होरु
अनद रूप मंगल सद जा कै
सरब थोक सुनीअहि घरि ता कै
राज महि राजु जोग महि जोगी
तप महि तपीसरु ग्रिहसत महि भोगी
धिआइ धिआइ भगतह सुखु पाइआ
नानक तिसु पुरख का किनै अंतु पाइआ ॥२॥
जा की लीला की मिति नाहि
सगल देव हारे अवगाहि
पिता का जनमु कि जानै पूतु
सगल परोई अपुनै सूति
सुमति गिआनु धिआनु जिन देइ
जन दास नामु धिआवहि सेइ
तिहु गुण महि जा कउ भरमाए
जनमि मरै फिरि आवै जाए
ऊच नीच तिस के असथान
जैसा जनावै तैसा नानक जान ॥३॥
नाना रूप नाना जा के रंग
नाना भेख करहि इक रंग
नाना बिधि कीनो बिसथारु
प्रभु अबिनासी एकंकारु
नाना चलित करे खिन माहि
पूरि रहिओ पूरनु सभ ठाइ
नाना बिधि करि बनत बनाई
अपनी कीमति आपे पाई
सभ घट तिस के सभ तिस के ठाउ
जपि जपि जीवै नानक हरि नाउ ॥४॥
नाम के धारे सगले जंत
नाम के धारे खंड ब्रहमंड
नाम के धारे सिम्रिति बेद पुरान
नाम के धारे सुनन गिआन धिआन
नाम के धारे आगास पाताल
नाम के धारे सगल आकार
नाम के धारे पुरीआ सभ भवन
नाम कै संगि उधरे सुनि स्रवन
करि किरपा जिसु आपनै नामि लाए
नानक चउथे पद महि सो जनु गति पाए ॥५॥
रूपु सति जा का सति असथानु
पुरखु सति केवल परधानु
करतूति सति सति जा की बाणी
सति पुरख सभ माहि समाणी
सति करमु जा की रचना सति
मूलु सति सति उतपति
सति करणी निरमल निरमली
जिसहि बुझाए तिसहि सभ भली
ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਸੁਖਦਾਈ
सति नामु प्रभ का सुखदाई
बिस्वासु सति नानक गुर ते पाई ॥६॥
सति बचन साधू उपदेस
सति ते जन जा कै रिदै प्रवेस
सति निरति बूझै जे कोइ
नामु जपत ता की गति होइ
आपि सति कीआ सभु सति
आपे जानै अपनी मिति गति
जिस की स्रिसटि सु करणैहारु
अवर बूझि करत बीचारु
करते की मिति जानै कीआ
नानक जो तिसु भावै सो वरतीआ ॥७॥
बिसमन बिसम भए बिसमाद
जिनि बूझिआ तिसु आइआ स्वाद
प्रभ कै रंगि राचि जन रहे
गुर कै बचनि पदारथ लहे
ओइ दाते दुख काटनहार
जा कै संगि तरै संसार
जन का सेवकु सो वडभागी
जन कै संगि एक लिव लागी
गुन गोबिद कीरतनु जनु गावै
गुर प्रसादि नानक फलु पावै ॥८॥१६॥

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(१७)
 सलोकु  
आदि सचु जुगादि सचु
है भि सचु नानक होसी भि सचु ॥१॥
असटपदी
चरन सति सति परसनहार
पूजा सति सति सेवदार
दरसनु सति सति पेखनहार
नामु सति सति धिआवनहार
आपि सति सति सभ धारी
आपे गुण आपे गुणकारी
सबदु सति सति प्रभु बकता
सुरति सति सति जसु सुनता
बुझनहार कउ सति सभ होइ
नानक सति सति प्रभु सोइ ॥१॥
सति सरूपु रिदै जिनि मानिआ
करन करावन तिनि मूलु पछानिआ
जा कै रिदै बिस्वासु प्रभ आइआ
ततु गिआनु तिसु मनि प्रगटाइआ
भै ते निरभउ होइ बसाना
जिस ते उपजिआ तिसु माहि समाना
बसतु माहि ले बसतु गडाई
ता कउ भिंन कहना जाई
बूझै बूझनहारु बिबेक
नाराइन मिले नानक एक ॥२॥
ठाकुर का सेवकु आगिआकारी
ठाकुर का सेवकु सदा पूजारी
ठाकुर के सेवक कै मनि परतीति
ठाकुर के सेवक की निरमल रीति
ठाकुर कउ सेवकु जानै संगि
प्रभ का सेवकु नाम कै रंगि
सेवक कउ प्रभ पालनहारा
सेवक की राखै निरंकारा
सो सेवकु जिसु दइआ प्रभु धारै
नानक सो सेवकु सासि सासि समारै ॥३॥
अपुने जन का परदा ढाकै
अपने सेवक की सरपर राखै
अपने दास कउ देइ वडाई
अपने सेवक कउ नामु जपाई
अपने सेवक की आपि पति राखै
ता की गति मिति कोइ लाखै
प्रभ के सेवक कउ को पहूचै
प्रभ के सेवक ऊच ते ऊचे
जो प्रभि अपनी सेवा लाइआ
नानक सो सेवकु दह दिसि प्रगटाइआ ॥४॥
नीकी कीरी महि कल राखै
भसम करै लसकर कोटि लाखै
जिस का सासु काढत आपि
ता कउ राखत दे करि हाथ
मानस जतन करत बहु भाति
तिस के करतब बिरथे जाति
मारै राखै अवरु कोइ
सरब जीआ का राखा सोइ
काहे सोच करहि रे प्राणी
जपि नानक प्रभ अलख विडाणी ॥५॥
बारं बार बार प्रभु जपीऐ
पी अम्रितु इहु मनु तनु ध्रपीऐ
नाम रतनु जिनि गुरमुखि पाइआ
तिसु किछु अवरु नाही द्रिसटाइआ
नामु धनु नामो रूपु रंगु
नामो सुखु हरि नाम का संगु
नाम रसि जो जन त्रिपताने
मन तन नामहि नामि समाने
ऊठत बैठत सोवत नाम
कहु नानक जन कै सद काम ॥६॥
बोलहु जसु जिहबा दिनु राति
प्रभि अपनै जन कीनी दाति
करहि भगति आतम कै चाइ
प्रभ अपने सिउ रहहि समाइ
जो होआ होवत सो जानै
प्रभ अपने का हुकमु पछानै
तिस की महिमा कउन बखानउ
तिस का गुनु कहि एक जानउ
आठ पहर प्रभ बसहि हजूरे
कहु नानक सेई जन पूरे ॥७॥
मन मेरे तिन की ओट लेहि
मनु तनु अपना तिन जन देहि
जिनि जनि अपना प्रभू पछाता
सो जनु सरब थोक का दाता
तिस की सरनि सरब सुख पावहि
तिस कै दरसि सभ पाप मिटावहि
अवर सिआनप सगली छाडु
तिसु जन की तू सेवा लागु
आवनु जानु होवी तेरा
नानक तिसु जन के पूजहु सद पैरा ॥८॥१७॥
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 (१८)
सलोकु
सति पुरखु जिनि जानिआ सतिगुरु तिस का नाउ
तिस कै संगि सिखु उधरै नानक हरि गुन गाउ ॥१॥
असटपदी
सतिगुरु सिख की करै प्रतिपाल
सेवक कउ गुरु सदा दइआल
सिख की गुरु दुरमति मलु हिरै
गुर बचनी हरि नामु उचरै
सतिगुरु सिख के बंधन काटै
गुर का सिखु बिकार ते हाटै
सतिगुरु सिख कउ नाम धनु देइ
गुर का सिखु वडभागी हे
सतिगुरु सिख का हलतु पलतु सवारै
नानक सतिगुरु सिख कउ जीअ नालि समारै ॥१॥
गुर कै ग्रिहि सेवकु जो रहै
गुर की आगिआ मन महि सहै
आपस कउ करि कछु जनावै
हरि हरि नामु रिदै सद धिआवै
मनु बेचै सतिगुर कै पासि
तिसु सेवक के कारज रासि
सेवा करत होइ निहकामी
तिस कउ होत परापति सुआमी
अपनी क्रिपा जिसु आपि करेइ
नानक सो सेवकु गुर की मति लेइ ॥२॥
बीस बिसवे गुर का मनु मानै
सो सेवकु परमेसुर की गति जानै
सो सतिगुरु जिसु रिदै हरि नाउ
अनिक बार गुर कउ बलि जाउ
सरब निधान जीअ का दाता
आठ पहर पारब्रहम रंगि राता
ब्रहम महि जनु जन महि पारब्रहमु
एकहि आपि नही कछु भरमु
सहस सिआनप लइआ जाईऐ
नानक ऐसा गुरु बडभागी पाईऐ ॥३॥
सफल दरसनु पेखत पुनीत
भेटत संगि राम गुन रवे
पारब्रहम की दरगह गवे
सुनि करि बचन करन आघाने
मनि संतोखु आतम पतीआने
पूरा गुरु अख्यओ जा का मंत्र
अम्रित द्रिसटि पेखै होइ संत
गुण बिअंत कीमति नही पाइ
नानक जिसु भावै तिसु लए मिलाइ ॥४॥
जिहबा एक उसतति अनेक
सति पुरख पूरन बिबेक
काहू बोल पहुचत प्रानी
अगम अगोचर प्रभ निरबानी
निराहार निरवैर सुखदाई
ता की कीमति किनै पाई
अनिक भगत बंदन नित करहि
चरन कमल हिरदै सिमरहि
सद बलिहारी सतिगुर अपने
नानक जिसु प्रसादि ऐसा प्रभु जपने ॥५॥
इहु हरि रसु पावै जनु कोइ
अम्रितु पीवै अमरु सो होइ
उसु पुरख का नाही कदे बिनास
जा कै मनि प्रगटे गुनतास
आठ पहर हरि का नामु लेइ
सचु उपदेसु सेवक कउ देइ
मोह माइआ कै संगि लेपु
मन महि राखै हरि हरि एकु
अंधकार दीपक परगासे
नानक भरम मोह दुख तह ते नासे ॥६॥
तपति माहि ठाढि वरताई
अनदु भइआ दुख नाठे भाई
जनम मरन के मिटे अंदेसे
साधू के पूरन उपदेसे
भउ चूका निरभउ होइ बसे
सगल बिआधि मन ते खै नसे
जिस का सा तिनि किरपा धारी
साधसंगि जपि नामु मुरारी
थिति पाई चूके भ्रम गवन
सुनि नानक हरि हरि जसु स्रवन ॥७॥
निरगुनु आपि सरगुनु भी ओही
कला धारि जिनि सगली मोही
अपने चरित प्रभि आपि बनाए
अपुनी कीमति आपे पाए
हरि बिनु दूजा नाही कोइ
सरब निरंतरि एको सोइ
ओति पोति रविआ रूप रंग
भए प्रगास साध कै संग
रचि रचना अपनी कल धारी
अनिक बार नानक बलिहारी ॥८॥१८॥
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